Bombay High Court की जज ने कहा, 'बच्ची का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना यौन हिंसा नहीं'
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Bombay High Court की जज ने कहा, 'बच्ची का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना यौन हिंसा नहीं'

Bombay High Court: जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला (Pushpa Ganediwala) ने 19 जनवरी को सुनाए गए अपने फैसले में शख्स को बरी करते हुए कहा था कि बच्ची के शरीर को कपड़ों के ऊपर से गलत इरादे से स्पर्श करने को यौन हिंसा नहीं कहा जा सकता. 

प्रतीकात्मक तस्वीर.

नागपुर: बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की एक न्यायाधीश ने एक फैसले में कहा है कि पांच साल की एक बच्ची का हाथ पकड़ना और उसके सामने पैंट की जिप खोलना यौन अपराध संरक्षण (POCSO) कानून के तहत 'यौन हिंसा' (Sexual Assault) नहीं है बल्कि ये ‘यौन उत्पीड़न’ (Sexual Harrasment) है. जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला (Pushpa Ganediwala) ने 50 वर्षीय एक व्यक्ति की एक अपील पर 15 जनवरी को अपने फैसले में यह टिप्पणी की थी. सत्र न्यायालय ने इस व्यक्ति को पांच साल की एक बच्ची के यौन हिंसा के आरोप में दोषी ठहराया है. व्यक्ति ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है.

जज को झेलनी पड़ रही भारी आलोचना

गौरतलब है कि जज ने इस फैसले के चार दिनों बाद पॉक्सो कानून (POCSO Act) के तहत शख्स को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि बच्ची की छाती को उसके कपड़ों के ऊपर से स्पर्श करने को यौन हिंसा नहीं कहा जा सकता. हालांकि, उन्हें अपने इस फैसले को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.

जस्टिस गनेदीवाला ने 19 जनवरी को सुनाए गए उक्त फैसले में शख्स को बरी करते हुए कहा था कि बच्ची के शरीर को कपड़ों के ऊपर से गलत इरादे से स्पर्श करने को यौन हिंसा नहीं कहा जा सकता. 

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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर लगाया रोक

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने बुधवार को अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल द्वारा यह मामला पेश किए जाने के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी. वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला बहुत ही परेशान करने वाला है.

वहीं, लिबनस कुजूर (39) को अक्टूबर 2020 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं- 354(1) (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) और 448 (घर में जबरन घुसना)- तथा पॉक्सो कानून की धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था और पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी.

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यौन हमले के आरोप साबित नहीं हुए 

जस्टिस गनेदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन ने यह साबित कर दिया है कि आरोपी ने पीड़िता के घर में उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने या यौन उत्पीड़न करने के मकसद से प्रवेश किया था, लेकिन वह (अभियोजन) आरोपी के ‘यौन हमला करने’ या ‘इरादतन या जानबूझ कर यौन हमला करना’ के आरोपों को साबित नहीं कर पाया है.

जस्टिस ने कहा, ‘पीड़िता का हाथ पकड़ने या उसके समक्ष गलत इरादे जाहिर करना, जैसा कि अभियोजन की गवाह (पीड़िता की मां ने देखा था), इस अदालत की राय में यौन हमले की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है.’ अदालत ने कहा कि मामले के तथ्य आरोपी की आपराधिक जवाबदेही तय करने के लिए अपर्याप्त हैं.

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पीड़िता की मां ने अपनी गवाही में कही ये बात 

अभियोजन के अनुसार कुजूर 12 फरवरी 2018 को बच्ची के घर उस वक्त गया था, जब उसकी मां घर पर नहीं थी. जब मां घर लौटी, तो उसने देखा की आरोपी उनकी बच्ची का हाथ पकड़े हुए है और अपनी पैंट का जिप खोलकर आपत्तिजनक स्थिति में था. पीड़िता की मां ने निचली अदालत में अपनी गवाही में कहा था कि उनकी बेटी ने उन्हें बताया था कि आरोपी ने उसे अपने साथ सोने के लिए कहा था.

हाई कोर्ट ने पॉक्सो कानून की धारा आठ और दस के तहत आरोपी की दोषसिद्धि खारिज कर दी थी लेकिन अन्य धाराओं के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी. अदालत ने यह भी कहा था कि आरोपी को यदि किसी अन्य मामले में हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है तो उसे रिहा कर दिया जाए.

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