Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 के सामने अब मुश्किल दौर की चुनौती, अगले 12 दिन बेहद अहम
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Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 के सामने अब मुश्किल दौर की चुनौती, अगले 12 दिन बेहद अहम

Chandrayaan-3  Journey:  चंद्रयान-3 इस समय चांद की कक्षा में चक्कर लगा रहा है लेकिन अगले 12 दिन अहम साबित होने वाले हैं. 17 अगस्त को जब चंद्रयान-3 को 100 किमी X 100 किमी की गोलाकार कक्षा में दाखिल कराया जाएगा उस समय नासा और कोरियाई स्पेस एजेंसी के ऑर्बिटर से टकराव टालना भी अहम होगा.

 Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 के सामने अब मुश्किल दौर की चुनौती, अगले 12 दिन बेहद अहम

चन्द्रयान 3 के लिए अब कठिन और जटिल फेज की शुरुआत हो चुकी है. अगले कुछ दिन बाद भारत का चंद्रयान-3 मिशन कठिन चरण में प्रवेश करने जा रहा है. अगले 12 दिन इस मिशन की कामयाबी के अहम हैं, यह चरण काम बनने और बिगड़ने के लिहाज से महत्वपूर्ण है. चंद्रमा की कक्षा में दाखिल हो चुका चंद्रयान 14 अगस्त को चांद की सतह से अपनी दूरी को और घटाएगा. इस समय चन्द्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में 174 x 1437 किमी के दायरे में है.  9 अगस्त को चंद्रमा की सतह से चन्द्रयान-3 की अधिकतम दूरी को 4313 किमी से घटाकर 1437 किमी किया गया था.अगले 6 दिनों में यानि 17 अगस्त तक इसे 100 किमी x 100 किमी की कक्षा में स्थापित किया जाना है.17 अगस्त ही वो दिन होगा जब मौजूदा प्रोपल्शन मोड्यूल से चन्द्रयान-3 का विक्रम लैंडर अलग होगा।

100 किमी x 100 किमी कक्षा में ले जाना बड़ी चुनौती

17 अगस्त को चन्द्रयान की 100 किमी x 100 किमी कक्षा में ले जाने से पहले एक बड़ी चुनौती होगी. इस कक्षा में पहले से मौजूद नासा और कोरियाई स्पेस एजेंसी के ऑर्बिटर के साथ टकराव को टालना भी अहम है. इसी कक्षा में ISRO के चन्द्रयान2 का ऑर्बिटर भी मौजूद है. इसके अलावा चन्द्रयान-1 और जापान का OUNA अब बेकार हो चुके हैं लेकिन चन्द्रमा की कक्षा में मौजूद हैं. चन्द्रयान-3 को इनसे भी बचना होगा.आधा दर्जन अंतरिक्ष यान पहले से चंद्रमा की 100 km x 100 किमी कक्षा में मौजूद हैं. धरती से 3.70 लाख किमी से अधिक की दूरी पर अंतरिक्ष यान के बीच टकराव टालने के लिए मार्ग निर्धारण और परिवर्तन बेहद जटिल प्रक्रिया है. सी चूक का मतलब होगा न केवल एक बड़ा हादसा बल्कि अन्य देश के साथ राजनयिक संकट भी होगा.

ISRO के सामने बड़ी जिम्मेदारी

ISRO के  सामने अपनी गणनाओं को दुरुस्त रख निगरानी रखे की जिम्मेदार के साथ साथ दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ भी तालमेल रखने की जिम्मेदारी है. सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल स्पेस ऑपरेशन्स मैनेजमेंट (IS4OM) टीम लगातार हर लूनर ऑरबिट लोअरिंग ( लैंडिंग से पहले चन्द्रमा की कक्षा घटाने) के ऑपरेशन की बारीकी से निगरानी कर रहा है. ISRO अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे इंटर एजेंसी स्पेस डेबरी कोऑर्डिनेशन कमेटी IADC के साथ भी सम्पर्क में है. 2019 में छोड़े गए चन्द्रयान2 के ऑर्बिटर को अब तक 3 बार टकराव टालने के लिए रास्ता बदलने के मनूवर करने पड़े हैं. चन्द्रयान3 को सफर में रूस के LUNA-25 से भी सावधान रखना होगा जो 16 अगस्त को चंद्रमा की 100km x 100km की कक्षा में पहुंचेगा. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 21-23 अगस्त तक पहुंचने की उम्मीद है. जबकि चन्द्रयान-3 को 23-24 अगस्त के बीच सॉफ्ट लैंडिंग करना है.

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