CJI ने भ्रष्टाचार मामले में पलटा 2 जजों की बेंच का फैसला, प्रशांत भूषण से हुई तीखी बहस
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CJI ने भ्रष्टाचार मामले में पलटा 2 जजों की बेंच का फैसला, प्रशांत भूषण से हुई तीखी बहस

2 सदस्यीय पीठ ने जजों को कथित तौर पर रिश्वत दिए जाने से जुड़े मामले पर सुनवाई के लिये 5 जजों की एक पीठ का गठन किया था. इस मामले में ओडिशा हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस इशरत मसरूर कुद्दुसी एक आरोपी हैं.

CJI ने भ्रष्टाचार मामले में पलटा 2 जजों की बेंच का फैसला, प्रशांत भूषण से हुई तीखी बहस

नई दिल्ली: शीर्ष न्यायपालिका में चल रही खींचतान शुक्रवार (10 नवंबर) को सतह पर आ गई जब उच्चतम न्यायालय ने कथित तौर पर न्यायाधीशों से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले पर सुनवाई करने के लिये बड़ी पीठ गठित करने के दो न्यायाधीशों की पीठ के एक आदेश को पलट दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि पीठ गठित करने और मामले आवंटित करने का विशेषाधिकार सिर्फ प्रधान न्यायाधीश के पास है. यह टकराव एक पीठ के गठन में सर्वोच्चता के मुद्दे को लेकर था. न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने एक आदेश के जरिये गुरुवार (9 नवंबर) को कथित तौर पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के प्राधिकार को कम कर दिया था. दो सदस्यीय पीठ ने न्यायाधीशों को कथित तौर पर रिश्वत दिए जाने से जुड़े मामले पर सुनवाई के लिये पांच न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया था. इस मामले में ओडिशा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति इशरत मसरूर कुद्दुसी एक आरोपी हैं.

  1. दो जजों की पीठ ने सीजेआई दीपक मिश्रा के प्राधिकार को कम कर दिया था.
  2. कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण और सीजेआई दीपक मिश्रा के बीच तीखी बहस भी हुई.
  3. सीजेआई ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की चेतावनी भी दी.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर प्रधान न्यायाधीश के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं. उन्होंने एक एनजीओ और एक अधिवक्ता द्वारा दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय के पांच शीर्ष न्यायाधीशों वाली पीठ गठित करने का आदेश दिया था. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ भी आरोप हैं. हालांकि, एक नाटकीय घटनाक्रम में सीजेआई ने अपनी अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया और दो न्यायाधीशों वाली पीठ के गुरुवार (9 नवंबर) के आदेश को पलट दिया.

पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि कोई पीठ गठित करने और मामले आवंटित करने का विशेषाधिकार सिर्फ प्रधान न्यायाधीश के पास है. पांच सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताभ राय और न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर भी शामिल थे. तेजी से हुए एक घटनाक्रम के तहत पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपराह्न तीन बजे इस सवाल पर अविलंब सुनवाई शुरू की कि किसी खास मामले पर सुनवाई करने के लिये खास न्यायाधीशों की पीठ गठित करने का निर्देश कौन दे सकता है.

पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जा सकता जिसमें सीजेआई को खास संख्या वाली पीठ गठित करने का निर्देश दिया जाए.’’ पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि न तो दो न्यायाधीशों और न ही तीन न्यायाधीशों वाली पीठ सीजेआई को कोई खास पीठ गठित करने का निर्देश दे सकती है.

पांच सदस्यीय पीठ ने दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘‘यह कहना अनावश्यक है कि कोई भी न्यायाधीश खुद से किसी मामले पर विचार नहीं कर सकता है जब तक कि उसे सीजेआई ने आवंटित नहीं किया हो क्योंकि सीजेआई न्यायालय के मुखिया हैं.’’ मामले पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों और याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण के बीच गर्मा-गरम बहस हुई.

सीजेआई ने सख्त टिप्पणी में कहा, ‘‘इस आदेश (संविधान पीठ) के विपरीत दिया गया कोई भी आदेश महत्वपूर्ण नहीं रहेगा और इसे रद्द समझा जाएगा.’’ उन्होंने मीडिया के मामले को रिपोर्ट करने से रोकने के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा कि वह ‘वाक्, अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता’ में भरोसा रखते हैं.

पीठ ने कहा कि अगर कानून के सिद्धांतों, न्यायिक अनुशासन और अदालत के शिष्टाचार का पालन नहीं किया गया तो न्याय प्रशासन के साथ-साथ संस्थान के कामकाज में ‘अराजकता’ और ‘अव्यवस्था’ होगी. कल के आदेश से नाराज सीजेआई ने संबंधित न्यायाधीशों का नाम लिए बगैर कहा कि अदालत में रोजाना सैकड़ों मामले सूचीबद्ध होते हैं और अगर इस तरह से आदेश दिया गया तो अदालत कामकाज नहीं कर सकती है.

उच्चतम न्यायालय बार संघ (एससीबीए) अध्यक्ष आर एस सूरी, उपाध्यक्ष अजीत सिन्हा, सचिव गौरव भाटिया समेत इसके सदस्यों और अशोक भान, अमन सिन्हा समेत कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने याचिका में लगाए गए आरोपों का जोरदार प्रतिवाद किया और कहा कि न्यायाधीशों को ‘धमकाने’ के किसी भी प्रयास के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये.

एससीबीए सदस्यों ने पीठ से मामले में अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘‘आतंकित करके आदेश पाने को इस अदालत को बर्दाश्त नहीं करना चाहिये. इस तरह के किसी भी प्रयास के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है.’’ खचाखच भरे अदालत कक्ष में आरोपों की झड़ी लग रही थी. भूषण ने अपनी आवाज तेज करते हुए सीजेआई से मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने को कहा क्योंकि सीबीआई की प्राथमिकी में कथित तौर पर उनका भी नाम है.

सीजेआई ने बदले में भूषण से प्राथमिकी की सामग्री को पढ़ने को कहा और उन्हें अपना आपा खोने के खिलाफ चेतावनी दी. भूषण के साथ याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता कामिनी जायसवाल भी थीं. सीजेआई ने कहा, ‘‘मेरे खिलाफ निराधार आरोप लगाने के बावजूद हम आपको रियायत दे रहे हैं और आप उससे इंकार नहीं कर सकते. आप आपा खो सकते हैं लेकिन हम नहीं.’’ भूषण ने कथित तौर पर न्यायाधीशों से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिये एसआईटी के गठन की मांग करते हुए कहा कि सीजेआई का नाम इसमें है. भूषण एनजीओ ‘कैंपेन फॉर जूडिशियल एकाउन्टैबिलिटी’ और जायसवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

सीजेआई ने कहा, ‘‘मेरे खिलाफ कौन सी प्राथमिकी. यह बकवास है. प्राथमिकी में मुझे नामजद करने वाला एक भी शब्द नहीं है. हमारे आदेश को पहले पढ़ें. मुझे दुख होता है. आप अब अवमानना के लिये जिम्मेदार हैं.’’ भूषण ने पीठ को उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करने की चुनौती दी और कहा कि उन्हें बोलने की अनुमति दिये बिना इस तरीके से सुनवाई नहीं चल सकती.

भूषण को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने भी फटकार लगाई. उन्होंने कहा कि निचली अदालतों के वर्तमान न्यायिक अधिकारी, उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों, उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है क्योंकि उन्हें छूट प्राप्त है. उन्होंने कहा कि उनके समक्ष दायर याचिका की सामग्री अवमाननाकारी है. 

भूषण सुनवाई के दौरान न्यायालय से यह आरोप लगाते हुए बाहर निकल गए कि अदालत ने सबको सुना, लेकिन उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है. अदालत कक्ष से निकलने के दौरान उनके साथ वस्तुत: धक्का-मुक्की हुई. सीजेआई ने कहा कि उन्होंने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन कर दिया है क्योंकि इससे पहले दिन में इसी रिश्वतखोरी के आरोपों पर एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि उचित आदेश के लिये मामले को सीजेआई के समक्ष रखा जाना चाहिये. सुनवाई के अंत में बार संघ के एक सदस्य ने मीडिया को मामले की रिपोर्टिंग करने से रोकने का आदेश देने का अनुरोध किया. उन्होंने दावा किया कि यह संस्थान की छवि को धूमिल करेगा, जो ‘न्याय का मंदिर’ है.

सीजेआई ने मौखिक दलील को स्वीकार करने से मना करते हुए कहा, ‘‘मेरा वाक्, अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता में भरोसा है.’’ सीजेआई मिश्रा ने कहा, ‘‘पहली नजर में मेरी हमेशा राय रही है कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिये. मैं प्रेस को रोकने के लिये कोई भी आदेश नहीं देने जा रहा हूं.’’ संविधान पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि न्यायाधीशों के नाम पर कथित तौर पर रिश्वत लिये जाने से संबंधित याचिकाओं पर दो सप्ताह बाद उचित पीठ सुनवाई करेगी. सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में कथित भ्रष्टाचार के मामले में ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश इशरत मसरूर कुद्दुसी समेत कई लोगों को आरोपी के तौर पर नामजद किया है. 

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