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नई दिल्ली: क्लाइमेट चेंज (Climate Change) की वजह से दुनियाभर में असर हुआ है और इस बीच भारत को बड़ा आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र (UN) के वैश्विक मौसम संस्थान (वर्ल्ड मीटिओरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन) ने अपनी सालाना प्रकाशित होने वाली 'स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया' रिपोर्ट में कहा है कि महाद्वीप के हर क्षेत्र में बढ़ते तापमान का प्रभाव पड़ा है.
विश्व मौसम संगठन (WMO) की इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन की वजह से देशों को होने वाले औसत आर्थिक नुकसानों का भी ब्योरा दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल चक्रवात, बाढ़ और सूखा जैसे प्राकृतिक आपदाओं की वजह से भारत को 87 अरब डॉलर यानी करीब 6.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
क्लाइमेट चेंज (Climate Change) की वजह से चीन को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और चीन की अर्थव्यवस्था को 2020 में जलवायु परिवर्तन से 238 अरब डॉलर यानी करीब 17 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इसके अलावा जापान को 83 अरब डॉलर यानी करीब 6.2 लाख करोड़ रुपये और दक्षिण कोरिया को 24 अरब डॉलर यानी 1.7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा.
संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक 'स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2020 एशिया के लिए रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष था. एशिया का औसत तापमान 1981-2010 की तुलना में 1.39 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है. WMO ने रिपोर्ट के जरिए कहा, 'जलवायु परिवर्तन और कठोर मौसम ने 2020 में पूरे एशिया पर प्रभाव डाला, जिसकी वजह से हजारों लोगों की जान चली गई और लाखों लोगों को शरणार्थी बनना पड़ा. इन स्थितियों से निपटने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए गए, जबकि इस दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरण को होने वाला नुकसान जारी रहा.'
WION की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का असर केवल वैश्विक तापमान में वृद्धि पर ही नहीं, चक्रवाती तूफान जैसी अन्य प्राकृतिक घटनाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से उच्च तीव्रता वाले चक्रवात बनते हैं, जो बदले में अधिक तबाही का कारण बनते हैं. 2020 में एशिया में बाढ़ और तूफान ने लगभग 50 मिलियन यानी 5 करोड़ लोगों को प्रभावित किया, जबकि 5000 से अधिक लोग मारे गए. अम्फान जैसे तूफान की वजह से भारत में 24 लाख और बांग्लादेश में 25 लाख विस्थापित होने को मजबूर हुए.
यूएन के मुताबिक क्लाइमेट चेंज की वजह से ग्लेशियर के खत्म होने का सिलसिला जारी है और यह धीरे-धीरे तेज हो रहा है. अगर यही रफ्तार बरकरार रही तो साल 2050 तक 20 से 40 फीसदी तक ग्लेशियर कम खत्म हो जाएंगे. इससे क्षेत्र में 75 करोड़ लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा. इसका सबसे बड़ा असर समुद्र के बढ़े जलस्तर, बरसात की अवधि और भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी घटनाओं पर पड़ेगा.
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