खुली जेल की अवधारणा में कैदी जेल परिसर के बाहर काम कर सकता है और आजीविका अर्जित कर शाम को लौट सकता है.
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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार (12 दिसंबर) को गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि देशभर में खुले कारावास स्थापित करने की व्यावहारिकता पर चर्चा करने के लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के कारागार महानिदेशक या महानिरीक्षकों की बैठक बुलाई जाए. खुली जेल की अवधारणा में कैदी जेल परिसर के बाहर काम कर सकता है और आजीविका अर्जित कर शाम को लौट सकता है. दोषियों को समाज से घुलने-मिलने का मौका देने के लिए और उनके मनोवैज्ञानिक दबाव को कम करने के लिए यह अवधारणा प्रभाव में आई थी. शीर्ष अदालत ने गृह मंत्रालय से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र भेजकर इस बारे में उनके जवाब मांगने को कहा कि क्या वे खुली जेल खोलने के पक्षधर हैं और वे उनका प्रबंधन कैसे संभालेंगे.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के संबंधित अधिकारी चार सप्ताह के अंदर अपने जवाब गृह मंत्रालय को देंगे जिसके बाद इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए फरवरी के पहले सप्ताह में बैठक बुलाई जाए. सुनवाई के दौरान न्यायमित्र के रूप में अदालत की मदद कर रहे एक वकील ने कहा कि देश में इस समय 63 खुली जेल हैं जिनमें करीब छह हजार कैदी हैं.
पीठ ने यह भी कहा कि खुले कारावासों की अवधारणा जेलों में कैदियों की संख्या अत्यधिक होने की समस्या को भी कम कर सकती है. हम चाहते हैं कि गृह मंत्रालय इसका अध्ययन करे. एटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि इस पहलू पर प्राथमिक रूप से राज्यों को विचार करना है और केंद्र सरकार इसके लिए दिशानिर्देश बना सकती है. जब पीठ को राजस्थान में खुली जेल प्रणाली के बारे में सूचित किया गया तो वेणुगोपाल ने कहा कि यह दूसरे राज्यों के लिए भी मददगार साबित हो सकता है.