कोरोना: बेड अलॉटमेंट में भी VIP कल्चर का बोलबाला, डॉक्टर ने खोली 'सिस्टम' की पोल
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कोरोना: बेड अलॉटमेंट में भी VIP कल्चर का बोलबाला, डॉक्टर ने खोली 'सिस्टम' की पोल

कोरोना महामारी के दौर में लोगों को 'सिस्टम' के मकड़जाल से भी दोचार होना पड़ रहा है. जिनकी पैरवी है, उन्हें तो आसानी से बेड मिल रहे हैं. बाकी को भटकने को मजबूर होना पड़ रहा है.

एंबुलेंस से मरीज को उतारते परिजन

नई दिल्ली: अगर आपको कोरोना (Coronavirus) के हल्के लक्षण हैं तो आप अनावश्यक रूप से अस्पताल में भर्ती होने की कोशिश न करें. ऐसा करके आप अनजाने में किसी दूसरे जरूरतमंद मरीज के हिस्से का बेड हथिया रहे होते हैं. 

  1. बिना पैरवी के बेड मिलने हो रहे हैं मुश्किल
  2. एम्स के पूर्व डॉक्टर ने बयां की हकीकत
  3. वीआईपी लोगों के कॉल से अस्पताल मालिक परेशान

ZEE NEWS की सभी से अपील है कि बिना जरूरत अस्पताल का बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर य remdisivir जैसी दवाएं जमा ना करें. किसी जरूरतमंद को इसकी जरूरत आपसे ज्यादा हो सकती है. दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर का ही उदाहरण लीजिए. उन्हें कोरोनावायरस के लिए अस्पताल में बेड ढूंढना नामुमकिन सा हो गया था. काफी मशक्कत के बाद जाकर उन्हें एक बेड मिल पाया.  

बिना पैरवी के बेड मिलने हो रहे हैं मुश्किल

दिल्ली (Delhi) के कोविड-19  लोकनायक अस्पताल के बाहर कोरोना (Coronavirus) मरीजों को भर्ती के लिए इंतजार करना अब रोज की बात हो चुकी है. उन मरीजों को एंबुलेंस में लाने वाले दिलीप को भी समझ आ चुका है कि बिना पैरवी के आम आदमी को एडमिशन मिलना लगभग नामुमकिन है. ऐसे हालात दिलीप ने पहले कभी नहीं देखे थे. अब वह एंबुलेंस की नौकरी छोड़ देना चाहते हैं. 

लोकनायक अस्पताल के बाहर अपनी मां के लिए बेड का इंतजार कर रहे एक बेटे के आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. अस्पताल का बोर्ड बता रहा है कि बेड खाली नहीं है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर अभी किसी आला अधिकारी, नेता या मंत्री को कोरोना के इलाज के लिए बेड की जरूरत पड़ जाए तो क्या उसके साथ भी ऐसा ही होगा. 

एम्स के पूर्व डॉक्टर ने बयां की हकीकत

इसका जवाब आपको एम्स में काम कर चुके डॉ आदित्य गुप्ता के ट्वीट में मिल जाएगा. उनका दावा है कि जो अस्पताल फुल होने का दावा कर रहे हैं. वह भी बड़े-बड़े लोगों के लिए कुछ बेड खाली रखते हैं. फिर चाहे कोई जरूरतमंद अस्पताल के दरवाजे पर खड़ा खड़ा ही दम न तोड़ दे.

वे अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि गंभीर रूप से बीमार अपने पिता के एडमिशन के लिए उन्हें उसी एम्स अस्पताल में धक्के खाने पड़े. जहां कभी उन्होंने मरीजों का इलाज किया था. साथी डॉक्टरों की कोशिशों से उन्हें घंटो के इंतजार के बाद बेड मिल सका. तो इनका गुस्सा सोशल मीडिया पर छलक उठा. 

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वीआईपी लोगों के कॉल से अस्पताल मालिक परेशान

दिल्ली (Delhi) के आम आदमी ही नहीं अस्पतालों के मालिक और मैनेजमेंट संभाल रहे डॉक्टर भी वीआईपी फोन कॉल से परेशान हो चुके हैं. बतरा अस्पताल के एमडी डॉ एस सी एल गुप्ता ऑक्सीजन तलाशने के लिए दिल्ली सचिवालय पहुंचे. हालात कब सुधरेंगे, यह इन्हें भी नहीं पता. वह कहते हैं कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी है. अस्पताल चाह कर भी बेड की संख्या नहीं बढ़ा सकते. ऐसे में बेड की कितनी भारी किल्लत है, इसका आप अंदाजा लगा सकते हैं.  

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किसे बेड मिलेगा और कौन बाहर एंबुलेंस में दम तोड़ने को मजबूर होगा, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है. हालांकि अस्पताल का प्रबंधन दावा करता है कि वह वीआईपी कॉल के हिसाब से नहीं मरीज की हालत के हिसाब से बेड देते हैं. लेकिन अपने मरीज के लिए खुद ऑक्सीजन तलाशता आम आदमी अब वीआईपी कल्चर के कड़वे सच से रूबरू हो चुका है.

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