कामराज का नाम सुनते ही कांग्रेस के गांधी-नेहरू परिवार के करीबी चुप्पी साध लेते हैं. इंदिरा गांधी के जमाने में तो कामराज का नाम तक लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी.
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नई दिल्ली: कामराज (K. Kamaraj) का नाम सुनते ही कांग्रेस (Congress) के गांधी-नेहरू परिवार के करीबी चुप्पी साध लेते हैं. इंदिरा गांधी के जमाने में तो कामराज का नाम तक लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी. आज का कांग्रेसी तो ये यकीन ही नहीं कर सकता कि कांग्रेस में कोई नेता इतना ताकतवर नेता भी हो सकता है जो सीधे-सीधे गांधी-नेहरू परिवार के खिलाफ खड़ा हो. लेकिन दूसरी तरफ इसी नेता को कांग्रेस के संगठन में सुधार के फॉर्मूले का जनक माना जाता है. आज भी कहा जाता है कि कामराज योजना लागू होनी चाहिए. आखिर कौन थे ये कामराज? जिनकी आज पुण्यतिथि है.
किंगमेकर थे कामराज
कामराज को पंडित नेहरू के बाद की राजनीति का किंगमेकर भी कहा जाता है. लाल बहादुर शास्त्री हों या इंदिरा गांधी, दोनों अगर भारत के प्रधानमंत्री बने तो उसके पीछे कामराज का ही हाथ था. ये वो वक्त था जब कामराज खुद पीएम बनना चाहते तो कोई भी रोकने वाला या ऐतराज जताने वाला नहीं था. इंदिरा गांधी को पहले पीएम बनने के लिए और बाद में कामराज को अपने रास्ते से हटाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी.
मिड-डे-मील योजना के जनक हैं कामराज
बहुत कम लोगों को पता होगा कि आज जिस मिड डे मील (Midday Meal Scheme) को लेकर इतना सारा बखेड़ा खड़ा होता है, भारत में स्कूलों में पहली मिड डे मील योजना कुमार स्वामी कामराज या के. कामराज ने तब शुरू की थी, जब वो मद्रास के मुख्यमंत्री थे. आजादी के आंदोलन में कई बार गिरफ्तार हुए कामराज ने तकरीबन 10 साल जेल में गुजारे. ऐसे में 1954 में मद्रास के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद उन्होंने मिड डे मील, फ्री यूनीफॉर्म जैसी कई योजनाओं के जरिए स्कूली व्यवस्था में कामराज ने इतना जबरदस्त सुधार किया कि जो साक्षरता ब्रिटिश राज में महज 7 फीसदी थी, वो 37 फीसदी तक पहुंच गई. चेन्नई के मरीना बीच पर आज जो कामराज का स्टेच्यू लगा है, वो उनके अकेले का नहीं है बल्कि बगल में दो बच्चों का स्टेच्यू भी है, जो कामराज के एजुकेशन फील्ड में किए गए काम को एक श्रद्धांजलि है.
जानिए क्या था ‘कामराज प्लान’?
कामराज लगातार तीन बार तब के मद्रास और आज के तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर चुने गए, लेकिन 1962 में चीन से हार के बाद कामराज को लगा कि बतौर पार्टी कांग्रेस जनता के बीच अपना भरोसा खोती जा रही है. 1963 में उन्होंने पंडित नेहरू को ये सुझाव दिया कि बड़े नेताओं, मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों को अपनी गद्दी छोड़कर पार्टी के सांगठनिक कार्य में लगाना होगा, तभी पार्टी मजबूत हो सकती है. ये सुझाव भारतीय राजनीति और कांग्रेस के इतिहास में ‘कामराज प्लान’ के नाम से जाना जाता है. इस प्लान के तहत 6 केन्द्रीय मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों ने अपनी पोस्ट से इस्तीफा दिया और कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी ले ली. जिनमें कई बड़े चेहरे शामिल थे, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, बीजू पटनायक, एसके पाटिल आदि. दरअसल गांधीजी और सरदार पटेल की मौत के बाद कांग्रेस धीरे-धीरे करप्शन के मकड़जाल में फंसने लगी थी, कई नेताओं पर आरोप लग रहे थे कि वो भाई-भतीजावाद फैला रहे हैं. कांग्रेस की छवि अब गिरने लगी थी, ईमानदार नेता चिंतित होने लगे थे.
कांग्रेस को दिखाई थी नई दिशा
नेहरूजी उस वक्त चीन से हार के बाद सदमे में थे और उनको लगा कि कामराज पार्टी को एक नई दिशा दे सकते हैं, उनको कोई बड़ी जिम्मेदारी देनी पड़ेगी. कामराज का इस्तीफा लेकर कांग्रेस का नेशनल प्रेसीडेंट चुन लिया गया, कामराज प्लान की वजह से कामराज की ताकत कांग्रेस के अंदर इतनी बढ़ गई कि नेहरू की मौत के बाद कांग्रेस में वो सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे, जबकि उनको राष्ट्रीय राजनीति में आए महज एक साल ही हुआ था.
पीएम बनने की क्षमता होने के बावजूद किया इनकार
जब पंडित नेहरू की मौत हुई तो गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक पीएम बनाने से लेकर मोरारजी देसाई और इंदिरा की बजाय शास्त्री जी को चुनने का फैसला हो या शास्त्री जी की मौत के बाद फिर मोरारजी देसाई की जगह इंदिरा को पीएम बनाने का फैसला हो, या फिर इंदिरा कैबिनेट में शास्त्री जी के कैबिनेट के मंत्रियों को समाहित करना हो, कामराज ने मजबूती से फैसले लिए. खुद पीएम बनने की ताकत होने के बावजूद उन्होंने ये कह दिया कि ‘मुझे ना हिंदी आती है और ना अंग्रेजी, मैं कैसे पीएम बन सकता हूं’. एक बार उन्होंने शास्त्री जी को और दूसरी बार इंदिरा गांधी को पीएम बनवाया, दोनों बार मोरारजी देसाई को किनारे किया गया.
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इस कारण राजनीति से दूर हो गए कामराज
लेकिन बाद में इंदिरा गांधी को हर काम में उनका फैसले लेने की आदत पसंद नहीं आई. इंदिरा ने उनके चुने राष्ट्रपति उम्मीदवार की जगह निर्दलीय वीवी गिरी को समर्थन देकर देश का राष्ट्रपति बनवा दिया. इंदिरा उनकी अगुवाई में चल रहे गैर हिंदी भाषी कांग्रेस नेताओं के सिंडीकेट को तोड़ना चाहती थीं. 1967 के चुनावों में कामराज खुद हार गए, बाद में कामराज के गुट के ही निंजालिंगप्पा प्रेसीडेंट बने, 1969 में उन्होंने इंदिरा को ही पार्टी से निकाल दिया. पार्टी दो भागों में बंट गई और कामराज गुट कांग्रेस (ओ) में चला गया, इंदिरा ने नई पार्टी बना ली. बाद में कामराज तमिलनाडु जाकर राष्ट्रीय राजनीति से दूर हो गए.
देश में लागू इमरजेंसी के दौरान हुई मृत्यु
दिलचस्प बात ये है कि देश में इमरजेंसी के वक्त 2 अक्टूबर 1975 को उनकी मौत हुई, तो ये वही दिन था जिस दिन 12 साल पहले यानी 1963 में उन्होंने तमिलनाडु की सीएम पोस्ट से इस्तीफा दिया था. दिलचस्प बात ये भी है कि इंदिरा से उनकी तमाम दुश्मनी रही, लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार ने ही उनकी मौत के अगले साल ही इमरजेंसी के दौरान यानी 1976 में उनको मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की. कहीं ना कहीं, इंदिरा गांधी भी ये समझती थीं कि कामराज ने कांग्रेस और देश की भलाई के लिए काफी कुछ किया था. लेकिन उन्होंने जीते जी कामराज को किनारे ही किए रखा. लेकिन कामराज की दक्षिण के राज्यों में काफी इज्जत थी और इंदिरा दक्षिणी राज्यों का दिल जीतना चाहती थीं.