CBI के शिकंजे में अरविंद केजरीवाल, लेकिन ED से कैसे अलग है सबसे बड़ी जांच एजेंसी का केस?
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CBI के शिकंजे में अरविंद केजरीवाल, लेकिन ED से कैसे अलग है सबसे बड़ी जांच एजेंसी का केस?

Arvind Kejriwal Corruption Case: उपराज्यपाल वीके सक्सेना की सिफारिश पर सीबीआई ने 2022 में उत्पाद शुल्क नीति में कथित अनियमितताओं की जांच शुरू की थी. हालांकि, तब सीबीआई ने अरविंद केजरीवाल से पूछताछ की थी, लेकिन मामले में आरोपी के रूप में नामजद नहीं किया गया था.

 CBI के शिकंजे में अरविंद केजरीवाल, लेकिन ED से कैसे अलग है सबसे बड़ी जांच एजेंसी का केस?

Difference Between CBI And ED Cace: दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी यानी उत्पाद शुल्क नीति  में अनियमितताओं से जुड़े केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) मामले में अरविंद केजरीवाल 12 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा केजरीवाल को हिरासत में लिए जाने की अब समाप्त हो चुकी उत्पाद शुल्क नीति से संबंधित मनी-लॉन्ड्रिंग मामले के कुछ दिनों बाद यह गिरफ्तारी हुई है. हालांकि शुरुआत में उन्हें अदालत से जमानत मिल गई थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी.

केजरीवाल के खिलाफ क्या हैं सीबीआई और ईडी के मामले?

सीबीआई और ईडी ने दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 में अनियमितताओं की जांच शुरू की थी. इस नीति का मकसद क्षेत्र के लिए राजस्व को अधिकतम स्तर तक बढ़ान और नकली शराब की बिक्री से निपटना था. इसकी प्रक्रिया में कई अनियमितताओं के कारण अगस्त 2022 में इस आबकारी नीति को रद्द कर दिया गया था. इस साल 21 मार्च को ईडी ने केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2022 (पीएमएलए) के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था. ईडी ने मई में इस मामले में केजरीवाल को आरोपी बनाते हुए पहला आरोपपत्र दायर किया था.

'साउथ लिकर लॉबी' से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत की मांग

मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 3 में छिपाना, कब्जा करना, अधिग्रहण करना, बेजा इस्तेमाल करना, बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करना या बेदाग संपत्ति के रूप में दावा करना अपराध के रूप में लिस्टेड है. नवंबर 2022 से ईडी द्वारा दायर आरोप पत्रों की कड़ी में आठवे दस्तावेज में दावा किया गया है कि केजरीवाल सीधे तौर पर उत्पाद शुल्क नीति तैयार करने में शामिल थे और उन्होंने 'साउथ लिकर लॉबी' से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत की मांग की थी.

पहले भी पूछताछ कर चुकी है सीबीआई, तब नहीं बनाया था आरोपी

शराब लॉबी का मतलब दक्षिण भारत के प्रभावशाली हस्तियों के एक समूह से है, जिन्होंने कथित तौर पर थोक कारोबार स्थापित करने के लिए अनुचित लाभ हासिल किया और बदले में राजनीतिक दलों को भुगतान किया. जुलाई में उपराज्यपाल वीके सक्सेना की सिफारिश पर सीबीआई ने उत्पाद शुल्क नीति 2022 में कथित अनियमितताओं की जांच शुरू की.  हालांकि, केजरीवाल से अप्रैल में सीबीआई ने पूछताछ की थी, लेकिन उन्हें मामले में आरोपी के रूप में नामजद नहीं किया गया था. जांच एजेंसी ने अब तक दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और भारत राष्ट्र समिति की विधायक के. कविता सहित 17 आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ चार आरोप पत्र दायर किए हैं.

सीबीआई ने अपनी रिमांड अर्जी में क्या-क्या कहा है?

सीबीआई ने केजरीवाल पर उत्पाद शुल्क नीति से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में हिरासत में पूछताछ के दौरान असहयोग और टाल-मटोल जवाब देने का आरोप लगाते हुए उनके लिए 14 दिन की न्यायिक हिरासत की मांग की. सीबीआई की पैरवी कर रहे वकील डीपी सिंह ने दलील दी कि पुलिस हिरासत रिमांड के दौरान केजरीवाल ने असहयोग किया और सबूतों के उलट गोलमोल जवाब दिए.

जांच एजेंसी ने कहा कि केजरीवाल यह नहीं बता सके कि संशोधित उत्पाद शुल्क नीति को कैबिनेट द्वारा कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान जल्दबाजी में मंजूरी क्यों दी गई. उसी दौरान मामले में शामिल शख्स दिल्ली में इनके करीबी सहयोगी विजय नायर से मिल रहे थे. एजेंसी ने तर्क दिया कि महत्वपूर्ण गवाहों से अभी पूछताछ की जानी बाकी है और दस्तावेजों और डिजिटल डेटा सहित अतिरिक्त सबूत जमा करने की जरूरत है.

अब अरविंद केजरीवाल को क्यों गिरफ्तार किया गया है?

सीबीआई के पास हमेशा से अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने का विकल्प था, लेकिन उसे कथित घोटाले में उनकी सीधी संलिप्तता पर मजबूत सबूत की जरूरत होगी. यह सीधा लिंक ईडी के मामले में भी संदिग्ध है. एक मीडिया रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को कथित अवैध रकम से जोड़ने के लिए पारस्परिक दायित्व का आरोप लगाते हुए एक मामला बनाया है. इसके अलावा, पीएमएलए के तहत जमानत सुरक्षित करना मुश्किल है. यह आरोपी को लंबे समय तक हिरासत में रखने की इजाजत देता है.

भ्रष्टाचार के मामलों में जमानत की प्रक्रिया क्या है? 

भ्रष्टाचार के मामले में कोई आरोपी सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत जमानत के लिए निचली अदालत में जा सकता है. कानूनन वह अग्रिम जमानत का भी हकदार है. हालांकि, साल 2014 के संशोधन के अनुसार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत किसी भी आरोपी को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि सरकारी वकील को जमानत आवेदन का विरोध करने का अवसर नहीं दिया गया हो.

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संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जमानत का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2022 में सतेंदर कुमार अंतिल बनाम सीबीआई मामले में केंद्र सरकार से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जमानत के अधिकार के अनुसार जमानत देने को सुव्यवस्थित करने के लिए एक अलग विधेयक बनाने को कहा था. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जमानत अर्जी पर फैसला लेते समय पांच फैक्टर्स पर विचार किया जाता है. ये हैं- 

(i) दोषसिद्धि के मामले में आरोप की प्रकृति और सजा की गंभीरता और अभियोजन द्वारा भरोसा की गई सामग्री की प्रकृति,
(ii) गवाहों के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका या शिकायतकर्ता या गवाहों को खतरे की आशंका,
(iii) मुकदमे के समय अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करने की उचित संभावना या उसके फरार होने की संभावना,
(iv) अभियुक्त का चरित्र, व्यवहार और स्थिति और वे परिस्थितियां जो अभियुक्त के लिए खास हैं,
(v) जनता या राज्य का व्यापक हित और इसी तरह के अन्य विचार.

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