समलैंगिकों के बीच सहमति से संबंधों को आईपीसी के तहत अपराध की श्रेणी में रखने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तय सुनवाई टालने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है.
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नई दिल्ली, सुमित कुमार : समलैंगिकों के बीच सहमति से संबंधों को आईपीसी के तहत अपराध की श्रेणी में रखने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तय सुनवाई टालने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. केंद्र ने दस जुलाई को होने वाली सुनवाई को स्थगित करने की मांग करते हुए कहा था कि समलैंगिक संबंधों पर जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए उसे समय चाहिए।
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पांच सदस्यीय पीठ करेगी सुनवाई
उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित पांच सदस्यीय संविधान पीठ समलैंगिक यौन संबंधों के मुद्दे पर 10 जुलाई से सुनवाई शुरू करेगी. उच्चतम न्यायालय ने 2013 में समलैंगिकों के बीच यौन संबंधों को अपराध माना था. वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में अपने एक फैसले में कहा था कि आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध नहीं माने जाएंगे. उच्च न्यायालय के इस आदेश पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर रोक लगाते हुए समलैंगिक यौन संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध माने जाने का फैसला दिया था.
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पुनवर्चिार याचिकाएं हुईं खारिज
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद इस मामले पर दुबारा सुनवाई करने के लिए कई बार पुनवर्चिार याचिकाएं दायर की गईं. पर न्यायालय ने उन्हें खारिज कर दिया. इसके बाद सुधारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर की गईं. इसका उद्देश्य मूल फैसले में सुधार कराना था. सुप्रीम कोर्ट सुधारात्मक याचिकाओं की सुनवाई के लिए राजी हो गया. सुनवाई के लिए पांच सदस्यों की संविधानिक पीठ बनाई गई है. नवगठित पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा करेंगे और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा इसके सदस्य होंगे.