Delhi Airport: दिल्ली के Runway 29-11 का है दिल की बीमारी से कनेक्शन! गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे लोग
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Delhi Airport: दिल्ली के Runway 29-11 का है दिल की बीमारी से कनेक्शन! गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे लोग

Delhi News: इंसान के कान 60 डेसीबल से ज्यादा का शोर सहन नहीं कर सकते. लगातार इससे ज्यादा शोर चिड़िचड़ाहट पैदा करता है. 60 डेसीबल के बाद हर 5 डेसीबल की बढ़ोतरी दिल की बीमारियों के खतरे 34% तक बढ़ा देती है. लेकिन इस इलाके में शोर वाली ये हिंसा कम होने का नाम नहीं ले रही.

फाइल

Voice Pollution Delhi: जर्मनी के वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता (Robert Koch )रॉबर्ट कोच ने 1910 में कहा था कि एक दिन इंसान के लिए शोर डायरिया और प्लेग से बड़ी महामारी बन जाएगा. और आज देखिए, हैजा और प्लेग अब महामारी नहीं रहे लेकिन शोर यानी ध्वनि प्रदूषण एक महामारी बन चुका है. ऐसी कई स्टडी हैं जो ये साबित करती हैं कि लगातार होने वाला ध्वनि प्रदूषण हार्ट अटैक दे सकता है. लगातार होने वाला ध्वनि प्रदूषण हाई बीपी दे सकता है, यही लगातार होने वाला तेज शोरगुल दिल और दिमाग की नसों में सूजन पैदा कर सकता है. वहीं यही प्रदूषण सुनने की क्षमता काफी घटा सकता है. 

'दिल्ली की ये जगह आपको बीमार कर सकती है'

आज World heart day है और इसलिए अब आपको ये बताएंगे कि दिल्ली के International Airport के Runway 29–11 का  दिल की बीमारी से क्या कनेक्शन है. हो सकता है कि Runway वाला ये खतरा आप लोगों के सिर पर भी मंडरा रहा हो इसलिए इस खबर को ध्यान से पढ़िए. 

दिल्ली के सबसे पॉश इलाके वसंत कुंज में रहने वाले सैकड़ों लोग हवाई जहाज के शोर से लड़ रहे हैं. दरअसल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे 29-11 पर लैंड करने वाले हवाई जहाज वसंत कुंज के सबसे नजदीक से होकर गुजरते हैं. जहां अमूमन हर दो मिनट पर शोर होता है. इस शोरगुल ने लोगों को दिन हो या रात बुरी तरह से परेशान कर रखा है. इस ध्वनि प्रदूषणा से परेशान होकर वसंत कुंज के निवासियों ने एयरपोर्ट अथॉरिटी और नागरिक उड्डयन मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है और कहा है कि या तो विमानों से होने वाले शोर को कम करें या उनके घरों को साउंड प्रूफ करने का खर्च सरकार उठाए. 

14 साल से जारी है लड़ाई

वसंत कुंज के निवासी पिछले 14 सालों से आरटीआई और अदालतों के ज़रिए ये लड़ाई लड़ रहे हैं. 2018 में NGT ने शोर कम करने के लिए एयरपोर्ट अथॉरिटी को कदम उठाने के निर्देश भी दिए. लेकिन ये आसमानी शोर, जमीन पर अब तक कहर बरपा रहा है. आपको बता दें कि सेंट्रल रोड रिसर्ट इंस्टीट्यूट (Central Road Research Institute) की ध्वनि प्रदूषण पर की गई एक रिसर्च में पाया गया कि जो लोग सड़क के किनारे बने घरों में रहते हैं वो कभी चैन से नहीं सो पाते. 

क्या कहते हैं मानक?

सामान्य तौर पर दो लोगों के बीच की बातचीत 40 से 50 डेसिबल होती है, लेकिन जो लोग सड़क के ट्रैफिक के आसपास रहते हैं, वो लगातार 60 डेसिबल की ध्वनि सुनें तो 17.1 प्रतिशत लोगों पर इसका बुरा असर पड़ता है. इसी तरह 70 डेसिबल ध्वनि हो, तो 29.4 प्रतिशत, 75 डेसिबल ध्वनि पर 39.6 प्रतिशत और 80 डेसिबल ध्वनि हो, तो 49.6 प्रतिशत लोगों पर बुरा असर पड़ता है, वो नींद ना आने और चिड़चिड़ेपन का शिकार हो जाते हैं. अब आप ट्रैफिक के साथ साथ विमान की लैंडिंग और टेक ऑफ का शोर भी इसमें जोड़ दें तो नतीजा क्या होगा ये अच्छी तरह समझा जा सकता है.  

तेज ध्वनि प्रदूषण से इन बीमारियों का खतरा

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 80 Decible से ज्यादा की आवाज ना सिर्फ कानों को नुकसान पहुंचाती है बल्कि इसका पूरे शरीर पर भी बुरा असर पड़ता है. ज्यादा ऊंची आवाज से Heart Rate और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. रात में होने वाला शोर, बुजुर्गों और छोटे बच्चों की नींद को प्रभावित करता है, इससे चिड़चिड़ापन और तनाव भी बढ़ जाता है. शोर आपकी काम करने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है. WHO के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण के कारण भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोगों की सुनने की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी है. हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको मिली हुई है, लेकिन शोर ना सुनने की आजादी किसी के पास नहीं है – इसलिए अपने दिल का ख्याल रखने की जिम्मेदारी हमें खुद उठानी पड़ेगी और ध्वनि प्रदूषण वाली हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना बहुत जरुरी है.  

स्थानीय लोगों का दर्द

मुसीबत का सबब बने रनवे के पास रहने वाले लोगों का कहना है कि इस शोर में अगर उन्हें कोई बात करनी हो, तो अक्सर आवाज ऊंची यानी तेज करनी पड़ती है.इस शोर में रात में भी चैन से सोना मुमकिन नहीं है. यहां रहने वाला कोई शख्स कान की बीमारी से, तो कोई हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी से परेशान है. एक्टिविस्ट अनिल सूद पिछले कई वर्षों से साउंड मीटर से शोर चेक कर रहे हैं और हर फोरम पर अपने कान और जान दोनों को बचाने की अर्जी लगा रहे  हैं. वहीं कुथ लोगों ने अपने घर को साउंड प्रूफ बनाने के लिए डबल ग्लेज ग्लास लगाए हैं लेकिन इससे भी उन्हें इस शोर वाली मुसीबत से छुटकारा नहीं मिल रहा है.

हर दो मिनट में आती है आफत!

वसंत कुंज के निवासियों ने आरटीआई, सुप्रीम कोर्ट, सरकार और एनजीटी सब जगह विमानों के इस शोर का हल ढूंढने की गुहार लगाई है. ये लड़ाई 2009 में शुरु हुई और अभी तक जारी है. इस दौरान एविएशन इंजीनियरिंग की बेहतर होती टेक्नोलॉजी ने इंजन के शोर को कुछ कम तो जरुर किया लेकिन फ्लाइट्स की तादाद बढ़ती रही इसलिए यहां हर 2 से 5 मिनट में होने वाला शोर जारी है. 

एम्स की स्टडी

एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग ने 2016 में वसंत कुंज के निवासियों पर एक स्टडी की थी. वसंत कुंज में 3,000 मरीजों के ब्लड सैंपल की जांच में 63 फीसदी लोगों में हाई बीपी पाया गया. 17 फीसदी लोगों में डायबिटीज, 28 फीसदी में हाई कोलेस्ट्रॉल, 46 फीसदी में बैड कोलेस्ट्रॉल देखा गया. स्टडी का मकसद है भारतीयों के अलग जेनेटिक मेकअप को समझना और उसी हिसाब से इलाज ढूंढना.  स्टडी अब भी जारी है.  

एक्सपर्ट  की राय

इस क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और यूके के कई देशों में रात को फ्लाइट्स उड़ाने पर प्रतिबंध रहता है. ताकि लोगों को सूकून की नींद मिल सके. लेकिन भारत में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है. दरअसल इंसान के कान 60 डेसीबल से ज्यादा का शोर सहन नहीं कर सकते. वहीं लगातार 60 डेसीबल से ज्यादा का शोर चिड़िचड़ाहट पैदा करता है. 60 डेसीबल में में हर 5 डेसीबल की बढ़ोतरी दिल की बीमारियों के खतरे 34% तक बढ़ा देती है. 85 डेसीबल का शोर सुनने की शक्ति स्थाई तौर पर कम कर सकता है. लेकिन इस इलाके में शोर वाली ये हिंसा कम होने का नाम नहीं ले रही.  

कैसे शोर में बदलती है आवाज?

अब आपको बताते हैं कि कैसे और कब एक आवाज, शोर में तब्दील हो जाती है. ध्वनि प्रदूषण (Voice Pollution) को मापने का पैमाना डेसिबिल (Decible) होता है और एक सामान्य व्यक्ति Zero Decible तक की आवाज भी सुन सकता है. ये पेड़ के पत्तों की सरसराहट 20 डेसीबल होती है. सामान्य तौर पर घर में आप जो बातचीत करते हैं, वो 30 से 50 Decible की होती है. मोटर साइकिल की आवाज 80 Decible होती है, अगर उसमें प्रेशर हॉर्न लगा हो तब ये आवाज़ और तेज़ भी हो सकती है. मेट्रो ट्रेन 100 Decible का शोर करती है, जिससे आपकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंच सकता है. बारात और पार्टियों में लाउडस्पीकर की आवाज 110 Decible तक होती है, जबकि सायरन की आवाज 130 Decible का शोर पैदा करती है. ये आवाजें आपके कान को स्थायी नुकसान भी पहंचा सकती हैं.  

पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक रिहायशी इलाकों में दिन के समय शोर 55 Decible से ज्यादा नहीं होना चाहिए जबकि रात में इसकी सीमा 45 Decible तय की गई है. इंडस्ट्रियल एरिया में ये लिमिट दिन में 65 और रात में 55 डेसीबल है. वहीं सेंसेटिव एरिया यानी स्कूल और अस्पताल के आस पास ये लिमिट दिन में 50 और रात में 40 डेसीबल तय की गई है.

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