महाराष्‍ट्र में देसी नस्‍ल की गाय को ही राज्‍यमाता का दर्जा क्‍यों? जर्सी कैसे छूट गई
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महाराष्‍ट्र में देसी नस्‍ल की गाय को ही राज्‍यमाता का दर्जा क्‍यों? जर्सी कैसे छूट गई

Desi Cow Rajyamata Status: महाराष्ट्र में देसी नस्ल की गाय को राज्यमाता का दर्जा दिया गया है तो सवाल ये खड़ा होता है कि ये राज्यमाता का दर्जा सिर्फ देसी गाय को ही क्यों दिया गया? जर्सी जैसी दूसरी नस्लों को क्यों नहीं दिया गया? 

महाराष्‍ट्र में देसी नस्‍ल की गाय को ही राज्‍यमाता का दर्जा क्‍यों? जर्सी कैसे छूट गई

मुंबई: महाराष्ट्र में देसी नस्ल की गाय को राज्यमाता का दर्जा दिया गया है तो सवाल ये खड़ा होता है कि ये राज्यमाता का दर्जा सिर्फ देसी गाय को ही क्यों दिया गया? जर्सी जैसी दूसरी नस्लों को क्यों नहीं दिया गया?  इस बारे में विले पार्ले के संन्यास आश्रम स्थित गौशाला के गौसेवक धनराज पाटिल ने बताया कि देसी गाय की हिंदू धर्म में पौराणिक मान्यता बहुत ज़्यादा है. इसका दूध मीठा होता है इसीलिए इसे भगवान श्रीकृष्ण को भोग में चढ़ाया जाता है. इसका मूत्र भी कई रोगों को ठीक करता है. इसी वजह से सुबह-सुबह कई लोग आश्रम में आकर इसका मूत्र लेकर जाते हैं और उसका सेवन करते हैं. ये माना जाता है कि देसी गाय में 36 कोटि देवी-देवता वास करते हैं. 

देसी और जर्सी गायों के बीच का अंतर
30 साल से गाय की सेवा कर रहे धनराज ने देसी और जर्सी गायों के बीच का अंतर बताते हुए कहा कि देसी गाय के कान बड़े होते हैं. गर्दन का हिस्सा काफी ज़्यादा लटका हुआ होता है. पीठ का हिस्सा काफी ऊंचा होता है और सींग भी बड़े और घुमावदार होते हैं. वहीं जर्सी नस्ल की गाय के सींग और कान छोटे होते हैं. गर्दन का हिस्सा भी देसी गाय जितना लटका हुआ नहीं होता है और पीठ का हिस्सा भी उतना ज़्यादा उभरा हुआ नहीं होता है. लेकिन व्यापारिक तौर पर बात करें तो जहां जर्सी गाय एक दिन में दो बार में कुल 16 लीटर दूध देती है तो वहीं देसी गाय एक दिन में दो बार में कुल 7-8 लीटर दूध ही देती है. इसलिए लोग व्‍यापार के हिसाब से जर्सी गाय को ज़्यादा पालते हैं. देसी गाय को नहीं क्‍योंकि देसी गाय, जर्सी गाय की तुलना में कम दूध देती है. 

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महाराष्‍ट्र का फैसला
महाराष्ट्र सरकार ने वैदिक काल से देसी गायों के महत्व को देखते हुए सोमवार को उन्हें ‘राज्यमाता-गोमाता’ घोषित किया. यह घोषणा ऐसे समय में की गई है, जब राज्य विधानसभा चुनाव जल्द ही होने की संभावना है. सरकार द्वारा सोमवार को जारी एक अधिसूचना में कहा गया, ‘‘वैदिक काल से ही मानव जीवन में गाय का महत्व धार्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक है, इसीलिए इसे ‘कामधेनु’ कहा जाता है.’’

राज्य के कृषि, डेरी विकास, पशुपालन एवं मत्स्य पालन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि इस कदम के पीछे अन्य कारकों में मानव पोषण में देसी गाय के दूध का महत्व, आयुर्वेदिक एवं पंचगव्य उपचार के लिए उपयोग और जैविक खेती में गाय के गोबर से बने खाद का इस्तेमाल शामिल है.

एक अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार का यह फैसला भारतीय समाज में गाय के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है. उन्होंने कहा कि यह कदम भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य में सदियों से गायों की अभिन्न भूमिका को प्रदर्शित करता है. अधिकारी ने कहा कि यह निर्णय लेकर राज्य सरकार ने गाय के गोबर के कृषि लाभों को भी रेखांकित किया है जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है.

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