अफगानिस्तान पहुंचने के बाद से ही दानिश सिद्दीकी अपने ट्विटर हैंडल पर काफी सक्रिय थे और उन्होंने 13 जुलाई को उन पर हुए तालिबान के हमले का एक वीडियो भी शेयर किया था. तब उन्होंने बताया था कि वो इस हमले में बाल बाल बच गए हैं, लेकिन इसके तीन दिन बाद ही उनकी तालिबान ने हत्या कर दी.
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नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान के आतंकवादियों ने एक भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की बेरहमी से हत्या कर दी. दानिश सिद्दीकी एक फोटो जर्नलिस्ट थे और वर्ष 2010 से वो अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम कर रहे थे.
पिछले दिनों जब पश्चिमी मीडिया के अखबारों में भारत में कोरोना मरीजों की जलती लाशों की तस्वीरें प्रकाशित हुई थीं, तब उनमें से बहुत सारी तस्वीरें दानिश सिद्दीकी ने ही खींची थीं. इसलिए आज भारत में उन्हें कई लोगों ने सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया और एक वर्ग ने उनकी हत्या पर खुशी भी मनाई, लेकिन हमें लगता है कि ऐसा करना सही नहीं है.
दानिश सिद्दीकी एक पत्रकार के तौर पर सिर्फ अपना फर्ज निभा रहे थे और उन्होंने अपना काम करते हुए ही जान गंवाई है इसलिए आज उन्हें ट्रोल करने का नहीं, श्रद्धांजलि देने का दिन है.
दानिश सिद्दीकी पिछले एक हफ्ते से अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष की मीडिया कवरेज कर रहे थे और उनके साथ वहां के एक सुरक्षाबल की टुकड़ी भी थी. अफगानिस्तान की सेना ने बताया है कि जब ये टुकड़ी कंधार के स्पिन बोल्डक शहर के एक बड़े इलाके को फिर से अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रही थी, उसी समय तालिबान के साथ उसकी मुठभेड़ हुई और इस मुठभेड़ में दानिश सिद्दीकी और अफगानिस्तान के कुछ सैनिक मारे गए.
कंधार का स्पिन बोल्डक वही शहर है, जो पाकिस्तान की सीमा से भी लगता है और आपको याद होगा, 14 जुलाई को हमने डीएनए में आपको बताया था कि तालिबान ने यहां कब्जा कर लिया है और पाकिस्तान की सीमा पर अपने झंडे भी लहराए हैं.
अफगानिस्तान पहुंचने के बाद से ही दानिश सिद्दीकी अपने ट्विटर हैंडल पर काफी सक्रिय थे और उन्होंने 13 जुलाई को उन पर हुए तालिबान के हमले का एक वीडियो भी शेयर किया था. तब उन्होंने बताया था कि वो इस हमले में बाल बाल बच गए हैं, लेकिन इसके तीन दिन बाद ही उनकी तालिबान ने हत्या कर दी.
भारत सरकार ने अब दानिश सिद्दीकी की हत्या के मामले को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उठाने की बात कही है.
कंधार के जिस शहर में इस पत्रकार की हत्या हुई, वहां पाकिस्तान का काफी प्रभाव है. पिछले दिनों अफगानिस्तान के एक नेता ने कहा था कि इस्लामाबाद से उन्हें ये धमकी मिली है कि अगर स्पिन बोल्डक शहर को उनकी सेना ने अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की तो पाकिस्तान की सेना इस इलाके में अफगानिस्तान की सेना पर एयर स्ट्राइक कर देगी. यानी इस इलाके में आज अगर तालिबान फिर से आया है तो इसकी एक वजह पाकिस्तान ही है और दानिश सिद्दीकी की हत्या के लिए उसे भी जिम्मेदार माना जा सकता है.
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी दानिश सिद्दीकी की हत्या पर दुख जताया है और उन्होंने ये भी कहा है कि पाकिस्तान की तरफ से 10 हजार जेहादी लड़ाके अफगानिस्तान में घुस आए हैं, जो किसी भी कीमत पर काबुल को अपने नियंत्रण में लेना चाहते हैं.
आप कह सकते हैं कि इस समय अफगानिस्तान, तालिबान और पाकिस्तान दोनों से एक साथ लड़ रहा है, और ये भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है.
पत्रकारिता की दुनिया में दानिश सिद्दीकी का करियर 12 वर्ष लम्बा था और वर्ष 2018 में उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, जो उन्हें म्यांमार के रोहिंग्या संकट की कवरेज के लिए मिला था. इसके अलावा दानिश सिद्दीकी ने दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों की भी कवरेज की थी और दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पास प्रदर्शन के दौरान, जिस हमलावर ने गोली चलाई थी, उसकी तस्वीर भी उन्होंने ही खींची थी. तब ये तस्वीर पश्चिमी मीडिया के कई अखबारों में छाई रही थी, लेकिन आज तालिबान ने उनकी हत्या कर दी.
आज ये खबर इस बात का भी संकेत है कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार का शासन लड़खड़ाने लगा है और तालिबान 2001 के बाद फिर से वापसी करने जा रहा है. लेकिन बड़ी बात ये है कि पश्चिमी देश ये सब होते हुए चुपचाप देख रहे हैं और NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (The North Atlantic Treaty Organization) के 30 देशों ने भी अपनी सेना को अफगानिस्तान से निकालना शुरू कर दिया है. इनमें से 27 देश तो यूरोप के ही हैं. NATO में अफगानिस्तान के लगभग साढ़े सात हजार सैनिक थे.
सोचिए, ये देश वैसे तो मानव अधिकारों पर लेक्चर देते हैं, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की क्रूरता पर खामोश बैठे हुए हैं.
अफगानिस्तान में तालिबान का शासन अभी आया भी नहीं है और उसने अभी से जेहादी फरमान जारी करना शुरू कर दिया है. अपने नए फरमान में तालिबान ने 15 साल से ऊपर की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवा महिलाओं की एक लिस्ट मांगी है, ताकि इन्हें तालिबान के आतंकवादियों को सौंपा जा सके और वो शादी के नाम पर इन महिलाओं का उत्पीड़न और बलात्कार कर सकें.
ये सब अफगानिस्तान में इसलिए हो रहा है, क्योंकि खुद को लोकतंत्र का चैम्पियन बताने वाला अमेरिका और NATO के देश वहां से अपनी सेना को वापस बुला रहे हैं. इसलिए आज इस खबर को आप एक आइना समझिए क्योंकि, इस आइने में आपको इन पश्चिमी देशों का असली चरित्र साफ साफ नजर आएगा.