DNA ANALYSIS: बिहार चुनाव में जनता ने इन मुद्दों को नकार दिया?
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DNA ANALYSIS: बिहार चुनाव में जनता ने इन मुद्दों को नकार दिया?

पहली बात ये है कि क्या बिहार (Bihar) के लोगों के लिए करप्शन अब कोई मुद्दा नहीं रहा और क्या भ्रष्टाचार (Corruption) को हमारा देश अब अपने जीवन का हिस्सा बना चुका है?

DNA ANALYSIS: बिहार चुनाव में जनता ने इन मुद्दों को नकार दिया?

नई दिल्ली: आज भारत में कई राजनैतिक परिवारों की किस्मत दांव पर लगी हुई है. आज बिहार चुनाव के नतीजे आएंगे. ज्यादातर Exit Polls के मुताबिक इस बार बिहार में JDU और BJP को भारी नुकसान हो सकता है और लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव राजनीति के नए सितारे बनकर उभर सकते हैं. ये एग्जिट पोल सही साबित होंगे या गलत, ये कहा नहीं जा सकता लेकिन इनसे जो अहम बातें निकलकर आती हैं उनका विश्लेषण करना जरूरी है.

क्या बिहार के लोगों के लिए करप्शन अब कोई मुद्दा नहीं रहा?
पहली बात ये है कि क्या बिहार के लोगों के लिए करप्शन अब कोई मुद्दा नहीं रहा और क्या भ्रष्टाचार को हमारा देश अब अपने जीवन का हिस्सा बना चुका है और भ्रष्ट नेताओं से हमें कोई परेशानी नहीं है?

वर्ष 2019 के Corruption Index के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामले में बिहार पूरे देश में राजस्थान के बाद दूसरे नंबर पर है. बिहार के 75 प्रतिशत लोगों ने माना था कि उन्होंने अपना काम कराने के लिए कभी न कभी रिश्वत दी है. इसी सर्वे के मुताबिक 15 वर्ष पहले बिहार भ्रष्टाचार के मामले में पूरे देश में नंबर एक पर था यानी सरकारें आईं और गईं. लेकिन बिहार के लोगों को भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिली. हालांकि ये बात सही है बिहार में पिछले लंबे से समय से कोई ऐसा बड़ा घोटाला नहीं हुआ है जिसे लेकर सरकार विवादों में आई हो.

बिहार में कौन रिकॉर्ड बनाएगा अब सब इसका इंतज़ार कर रहे हैं. बिहार में वोटर्स की संख्या 7 करोड़ से ज्यादा है. यानी जितने वोट हासिल करके कोई उम्मीदवार पूरे अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाता है. उतने वोटर्स तो भारत के सिर्फ एक राज्य बिहार में रहते हैं.

बिहार में एक बार फिर से परिवारवाद की वापसी?
दूसरी बात ये है कि अगर एग्जिट पोल सही हैं तो ये माना जा सकता है कि बिहार में एक बार फिर से परिवारवाद की वापसी हो सकती है. लालू यादव और उनके परिवार ने वर्ष 1990 से 2005 तक बिहार पर शासन किया था और अब एक बार फिर लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव रेस में सबसे आगे चल रहे हैं.

लोगों ने इन दोनों ही मुद्दों को नकार दिया
तीसरी बात आप ये समझ सकते हैं कि बीजेपी ने बिहार के विधानसभा चुनावों में चीन का मुद्दा उठाया और लोगों को फ्री कोरोना वैक्सीन देने का वादा किया लेकिन अगर एग्जिट पोल सही निकले तो आप ये मान सकते हैं कि लोगों ने इन दोनों ही मुद्दों को नकार दिया.

इसके विपरीत तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने युवाओं को नौकरी देने का मुद्दा उठाया और अगर उनकी पार्टी जीत जाती है तो ये बात सभी नेताओं को साफ हो जानी चाहिए कि युवाओं की असली जरूरत क्या है.

नीतीश कुमार को महिलाओं से मिलने वाले वोटों से बहुत उम्मीद है क्योंकि उनका मानना है कि बिहार में शराबबंदी कराकर उन्होंने बिहार की महिलाओं का जीवन सुधारा है. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि जिन घरों में युवा बेरोज़गार हैं वहां की महिलाओं ने भी शायद रोजगार के मुद्दे पर ही वोट दिया होगा.

 चुनावों में सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मुद्दा
चौथी बात ये है कि इन चुनावों में सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मुद्दा नहीं चल पाया. ये एक ऐसा मुद्दा है जो सोशल मीडिया पर तो रोज ट्रेंड करता है. लेकिन इन चुनावों में ये मुद्दा टेक ऑफ तक नहीं कर पाया जबकि चुनाव से पहले इसका खूब राजनीतिकरण करने की कोशिश हुई थी.

पांचवी बात ये है कि अगर तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी RJD बड़ी सफलता हासिल कर लेती है तो आप मान सकते हैं बिहार के लोगों ने लालू यादव और उनके परिवार के 15 साल के शासन और उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को भुला दिया है.

बिहार चुनाव के नतीजों का असर
छठी बात ये है कि बिहार चुनाव के नतीजे जैसे भी आएंगे उनका असर अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा.

एक दिन में 17 रैलियां करने का रिकॉर्ड
बिहार विधानसभा चुनावों में जिस नेता की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो हैं लालू यादव के 31 वर्ष के पुत्र तेजस्वी यादव. जो लालू के दोनों पुत्रों में सबसे छोटे हैं. खास बात ये कि तेजस्वी यादव ने इस बार बिहार में एक दिन में 17 रैलियां करने का रिकॉर्ड बनाया है. लेकिन इन रैलियों में उन्होंने लंबे लंबे भाषण नहीं दिए, बल्कि उन्होंने T 20 अंदाज में रैलियां कीं. छोटे छोटे भाषण दिए और जनता से दोतरफा संवाद करने की कोशिश की.

IPL के अनुभव को इन चुनावों में भुनाने की कोशिश
तेजस्वी यादव क्रिकेटर रहे हैं और वो IPL के पहले सीजन में दिल्ली की टीम का हिस्सा भी रहे हैं. हालांकि उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला था. लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने IPL के अनुभव को इन चुनावों में भुनाने की कोशिश की है.

दूसरी खास बात ये है कि तेजस्वी यादव ने अपनी रैलियों में न तो अपने पिता की तस्वीरों का इस्तेमाल किया और न ही ज्यादातर मौकों पर उनका नाम लेना सही समझा. शायद तेजस्वी ये समझ गए थे कि जो युवा पीढ़ी है उसे लालू यादव के शासन के दौरान हुए घोटालों, अपराध और भ्रष्टाचार के बारे में पता ही नहीं होगा और जिन लोगों ने वो दौर देखा है. उन्हें उसकी याद न ही दिलाई जाए.

कुल मिलाकर बिहार का चुनाव बहुत दिलचस्प है और किसकी जीत होगी और किसकी हार ये कहना बहुत मुश्किल है. देखना होगा कि नीतीश कुमार अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा पाएंगे या नहीं?

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