अहमदाबाद में ISRO के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर में 22 मार्च को इस तकनीक का प्रयोग किया गया, जो आने वाले समय में इंटरनेट की दुनिया बदल देगा और सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित भेजना आसान हो जाएगा.
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नई दिल्ली: आज हम आपको ISRO की नई क्रांति के बारे में बताएंगे. ISRO ने कम्युनिकेशन यानी संचार की एक ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जिसे हैक नहीं किया जा सकता. आप इस तकनीक को साइबर हमलों की नई वैक्सीन भी कह सकते हैं, जिसका आज हम सरल भाषा में आपके लिए विश्लेषण करेंगे.
अहमदाबाद में ISRO के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर में 22 मार्च को इस तकनीक का प्रयोग किया गया, जो आने वाले समय में इंटरनेट की दुनिया बदल देगा और सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित भेजना आसान हो जाएगा. सरल शब्दों में कहें तो मोबाइल फोन या कप्यूटर को हैक करना या बैंक फ्रॉड जैसे खतरों से आपको बचाने के लिए ये तकनीक एक सेफ्टी वॉल की तरह काम करेगी. इसीलिए हम इसे साइबर हमलों की नई वैक्सीन कह रहे हैं.
ISRO ने देश में पहली बार इस तरह की तकनीक विकसित की है. वैज्ञानिकों की भाषा में इसे क्वांटम कम्युनिकेशन सिस्टम कहते हैं, जो पुराने इंटरनेट से कई गुना ज्यादा सुरक्षित है. सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि ये तकनीक काम कैसे करती है. असल में मोबाइल फोन और कम्प्यूटर जैसे डिवाइसेज को कमांड देने के लिए बाइनरी कोड का इस्तेमाल होता है. ये कोड एक तरह से कम्प्यूटर की भाषा है, जो सिर्फ 1 और 0 को पहचानता है. जब हम इंटरनेट के माध्यम से कोई वीडियो, ऑडियो या मैसेज भेजते हैं, तो वो इसी कोड से डिकोड किए जाते हैं.
ये काफी जटिल प्रक्रिया होती है. हालांकि फिर भी हैकर, इसे हैक कर लेते हैं, जिससे आपकी जानकारी उनके पास चली जाती है. अगर हैकर चाहे तो सैटेलाइट को दिए कमांड को भी हैक कर उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसलिए दुनिया के कई देश सैटेलाइट की सुरक्षा को लेकर परेशान हैं.
हैकिंग से बचने के लिए ही ISRO ने इस तकनीक का सहारा लिया है. ये तकनीक इनक्रिप्टेड सूचना को साझा करने का सबसे सशक्त तरीका है और ये क्वांटम फिजिक्स के नियमों पर आधारित है. इनक्रिप्टेड सूचना का अर्थ उस जानकारी से जो आपने किसी ऐप या दूसरे माध्यम से एक व्यक्ति को भेजी है और उस जानकारी को आप और वही व्यक्ति देख और पढ़ सकते हैं.
भारत के लिए ये तकनीक क्यों जरूरी है. इसे आप लोक सभा में गृह मंत्रालय द्वारा पेश की गई एक नई रिपोर्ट से भी समझ सकते हैं. इसके मुताबिक, 2020 में 11 लाख से ज्यादा साइबर हमले हुए, जबकि 2019 में लगभग 4 लाख हमले हुए यानी सिर्फ एक साल में साइबर हमले तीन गुना बढ़ गए. अहम बात ये है कि अब भारत उन पांच देशों में शामिल हो गया है. जहां सबसे ज्यादा साइबर अटैक होते हैं. देश में 2015 में 24 करोड़ मोबाइल फोन इस्तेमाल किए जा रहे थे, जबकि 2020 में इनकी संख्या 76 करोड़ हो चुकी है. यानी सिर्फ 5 सालों में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या 52 करोड़ बढ़ गई.
मोबाइल फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ने से साइबर अटैक के मामले भी बढ़े हैं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रतिदिन एक करोड़ लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन करते हैं. यह ट्रांजैक्शन 5 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि अगले 5 वर्षों में यह 15 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा. इन हमलों से 2019 में भारत को 1.25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
साइबर अटैक सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बढ़े हैं. इससे यूरोप, साउथ ईस्टए शिया और अमेरिका जैसे देशों में साइबर इंश्योरेंस का चलन बढ़ा है. यानी लोग अपने मोबाइल फोन का इंश्योरेंस करा सकते हैं. जिससे अगर कोई उसकी जानकारी हैक करता है, तो उसके एवज में होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई इंश्योरेंस कंपनी करती है. साइबर इंश्योरेंस का बाजार जनरल इंश्योरेंस के बराबर पहुंच गया है. हालांकि हमारे देश में यह अभी ज्यादा लोकप्रिय नहीं है.
इंटरनेट गैजेट, कम्प्यूटर और लैपटॉप को बीमा कंपनी कवर करती है. कंपनी वादा करती है कि अगर कोई आपकी पहचान चुराकर आर्थिक नुकसान करता है या फिर कम्प्यूटर और मोबाइल फोन में किसी प्रकार के Malware या Phishing से साइबर हमला करता है तो उससे होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी करेगी. आर्थिक नुकसान की राशि बीमा कराते समय ही तय की जाती है.