दिलीप कुमार हिंदी सिनेमा के ओरिजनल खान थे, जबरदस्त लोकप्रियता के बावजूद उन्होंने अपने करियर को कभी प्रचार के कंधों पर नहीं टिकाया, बल्कि वो अपने साथ के लोगों के बीच सरल और सहज बने रहे
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नई दिल्ली: 7 जुलाई को हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार का निधन हो गया. आज हम आपको दिलीप साहब के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारियां देना चाहते हैं और ये भी बताएंगे कि आप दिलीप साहब के जीवन से क्या सीख सकते हैं. इन बातों से आप सीखेंगे कि जीवन में प्रतिष्ठा और पैसा हासिल करने के बाद भी कैसे खुद को संतुलित रखा जा सकता है.
वर्ष 1967 में दिलीप कुमार की एक मशहूर फिल्म आई थी, जिसका नाम था- 'राम और श्याम', इसमें दिलीप साहब ने राम और श्याम नाम के दो जुड़वां भाइयों का किरदार निभाया था. राम का किरदार एक शांत, आज्ञाकारी और रिस्क न लेने वाले व्यक्ति का था, जबकि श्याम का किरदार अपनी बात खुलकर रखने वाले, तेज़ तर्रार और खतरा मोल लेने वाले व्यक्ति का था, लेकिन दिलीप साहब असल जीवन में राम और श्याम दोनों के बीच संतुलन साधकर चलना जानते थे और शायद इसलिए वो अपने पिता की डांट से भी डरते थे, तो अपने से 22 साल छोटी सायरा बानो से शादी करके. दुनिया को ये कहने की हिम्मत भी रखते थे कि प्यार किया तो डरना क्या.
दिलीप कुमार का जन्म वर्ष 1922 में पेशावर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. आज भी दिलीप साहब का पुश्तैनी घर पेशावर के किस्सा ख्वानी इलाके में मौजूद है, जिसे कुछ वर्ष पहले पाकिस्तान की सरकार एक Protected Monument घोषित कर चुकी है. पेशावर में रहने वाले लोगों को जैसे ही दिलीप कुमार के निधन की खबर मिली. वैसे ही उनके पुश्तैनी घर के पास लोगों की भीड़ जमा हो गई और लोगों ने उनके पुश्तैनी घर के बाहर खड़े होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
भारत की तरह पाकिस्तान में भी शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो दिलीप साहब को नहीं जानता होगा या उनकी अदाकारी का प्रशसंक नहीं होगा और भारत और पाकिस्तान में बहुत कम ऐसे लोग रहे हैं जिनके जाने का गम दोनों देशों के लोगों के लिए एक जैसा होता है.
1998 में जब दिलीप साहब को पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज दिया गया था. तब दिलीप साहब इस सम्मान को लेने पाकिस्तान गए थे, इसके बाद वो पेशावर में अपनी पुश्तैनी हवेली को देखने गए, लेकिन जैसे ही लोगों को इसकी खबर लगी. बड़ी संख्या में लोग दिलीप साहब के पाकिस्तान वाले घर के बाहर जमा हो गए और लोगों की भीड़ को देखते हुए. दिलीप साहब को गाड़ी से उतरने की इजाजत नहीं दी गई और वो बिना अपना पुश्तैनी घर देखे ही वापस लौट आए, लेकिन आज उसी घर के बाहर लोग दिलीप साबह को याद कर रहे हैं.
अब आपको दिलीप कुमार के जीवन और उनकी फिल्मों से वो बातें (Do's and Don'ts) सीखनी चाहिए जिन्हें अपनाकर आप खुद को एक बेहतर इंसान बना सकते हैं.
'राम और श्याम' से 10 साल पहले दिलीप कुमार की एक और मशहूर फिल्म आई थी जिसका नाम था- 'नया दौर'. इस फिल्म में दिलीप कुमार टांगा चलाने वाले के किरदार में थे. इस फिल्म में उन्हें एक बस वाले से रेस लगाने की चुनौती मिलती है और अपनी रोज़ी रोटी बचाने के लिए दिलीप कुमार का किरदार इस चुनौती को स्वीकार कर लेता है. इस फिल्म में दिलीप कुमार के किरदार का नाम शंकर था और रेस जीतने के लिए शंकर अकेले दम पर 6 किलोमीटर लंबी एक नई सड़क का निर्माण भी करता है, ऐसी सड़क जिस पर टांगा आसानी से दौड़ सके.
फिल्म के आखिर में शंकर का टांगा बस को हरा देता है. ये फिल्म और इसमें दिलीप कुमार का किरदार हमें बताता है कि हर नया दौर अपने आप में नई चुनौतियां तो लेकर आता है, लेकिन अगर आप इस नए दौर का सामना करने के लिए अपनी तैयारी को बेहतर बनाते हैं और सफलता के लिए जी जान से जुट जाते हैं तो आपको जीत जरूर मिलती है.
दिलीप कुमार हिंदी सिनेमा के ओरिजनल खान थे, जबरदस्त लोकप्रियता के बावजूद उन्होंने अपने करियर को कभी प्रचार के कंधों पर नहीं टिकाया, बल्कि वो अपने साथ के लोगों के बीच सरल और सहज बने रहे और उनके चाहने वालों के बीच उनका सम्मान लगातार बढ़ता गया. यानी प्रचार आपको इंस्टेंट लोकप्रियता तो दिला सकता है, लेकिन लोकप्रियता की कुर्सी पर आप कितने लंबे समय तक बैठे रहेंगे. ये इस पर निर्भर करता है कि आप सफलता के शिखर पर होकर भी दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं.
दिलीप कुमार अपनी शानदार डायलॉग डिलिवरी के लिए जाने जाते थे. वो 'क्रांति' फिल्म के देशभक्त क्रांतिकारी की तरह बुलंद आवाज में भी डायलॉग बोल सकते थे, तो एक रोमांटिक हीरो के तौर पर बहुत आहिस्ता से अपने प्रेम का इजहार भी कर सकते थे. जीवन में भी आपको अपने स्वभाव को समय समय पर बदलने की जरूरत पड़ती है. कभी ऊंची आवाज में अपनी बात रखनी पड़ती है तो कभी शांत स्वर में, लेकिन सबसे जरूरी ये है कि आपका संवाद एकदम स्पष्ट होना चाहिए.
दिलीप कुमार अपनी देशभक्ति के लिए भी जाने जाते थे और अपार लोकप्रियता के बावजूद देश का मसला आने पर वो कभी देश का साथ देने से पीछे नहीं हटे. वो आजादी के बाद देश के सबसे बड़े सुपर स्टार थे, लेकिन उन्हें आजादी की कीमत भी पता थी और इसकी कद्र भी थी.
वर्ष 1999 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ. तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के उस समय के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन किया था और दिलीप साहब से उनकी बात कराई थी, तब दिलीप कुमार ने करगिल के मसले पर नवाज़ शरीफ से अपनी नाराजगी का इजहार किया था.
यानी दिलीप कुमार अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल सिर्फ अपने ही लिए नहीं बल्कि अपने देश के लिए भी करना जानते थे. आज जिन लोगों को सोशल मीडिया या फिल्मों के दम पर तुरंत लोकप्रियता मिल जाती है. उन्हें दिलीप साहब से सीखना चाहिए कि जब तक आप देश के काम नहीं आते, तब तक आपकी लोकप्रियता स्वार्थ के अलावा कुछ नहीं है.
और आखिरी बात दिलीप कुमार से आप सीख सकते हैं वो है, डिप्रेशन पर काबू पाना. दिलीप साहब को ट्रेजडी किंग के रूप में जाना जाता था क्योंकि, उनकी फिल्में ट्रेजडी से भरपूर होती थीं, लेकिन इन किरदारों की वजह से दिलीप कुमार अपने असली जीवन में भी डिप्रेशन में चले गए थे और दुखी रहने लगे थे, लेकिन तब दिलीप साहब ने इंग्लैंड जाकर मनोचिकित्सकों से अपना इलाज करवाने का फैसला किया और डॉक्टरों की राय पर वो फिल्मों में हल्के फुल्के किरदार भी करने लगे. यानी आप अपने काम को महत्व जरूर दें. उसे जी जान लगाकर पूरा करें, लेकिन समय समय पर खुद को अपने काम से अलग भी करें और इस बात का ख्याल रखें कि कहीं आपका काम आपके व्यक्तित्व को प्रभावित तो नहीं कर रहा.
जिस ज़माने में दिलीप कुमार ने साइकोलॉजिस्ट से मदद ली थी. तब भारत में ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी तक नहीं थी कि डिप्रेशन एक मानसिक समस्या है और आज भी बहुत कम लोग इसे बीमारी मानते हैं. इसलिए दिलीप साहब से सीख लेते हुए आप अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी शुरू कर सकते हैं.
आप दिलीप कुमार से दोस्ती कैसे निभाई जाती है ये भी सीख सकते हैं. दिलीप कुमार, अभिनेता सुनील दत्त के बहुत अच्छे दोस्त थे. हालांकि सुनील दत्त, दिलीप कुमार से छोटे थे और फिल्मों में भी उनके जूनियर थे, लेकिन दिलीप साहब ने इस दोस्ती के दौरान कभी सुनील दत्त को ये एहसास नहीं दिलाया कि वो उनके मुकाबले फिल्मों में नए हैं.