आज हम कलाम साहब के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे और आपको बताएंगे कि भारत के 20 करोड़ मुसलमान और भारत के युवा उनके जीवन से क्या सीख सकते हैं.
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नई दिल्ली: जीवन में वही व्यक्ति सफल होता है जो अपनी असफलता से सीखता है और इसका सबसे अच्छा उदाहरण पेश किया था. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 15 अक्टूबर को एपीजे अब्दुल कलाम की 89वीं जयंती मनाई गई. आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी हमें बताती है कि जीवन अपार संभावानाओं का नाम है. डॉक्टर कलाम बचपन में अपने परिवार का खर्च उठाने के लिए अखबार बेचा करते थे और एक दिन वो भारत के राष्ट्रपति बन गए. इस दौरान उन्होंने विज्ञान की दुनिया में भी भारत का नाम रोशन किया और एक सच्चे राष्ट्रभक्त के तौर पर उन्होंने सैन्य शक्ति के मामले में भारत को एक बहुत मजबूत राष्ट्र में बदल दिया.
इसलिए आज हम कलाम साहब के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे और आपको बताएंगे कि भारत के 20 करोड़ मुसलमान और भारत के युवा उनके जीवन से क्या सीख सकते हैं. इस्लाम और विज्ञान मिलकर कैसे कलाम बन सकता है.
सीखने की दिशा में पहला प्रयास
डॉक्टर अब्दुल कलाम कहते थे अगर आप असफल भी हो जाएं तो आपको उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि उनकी नजर में अंग्रेजी के शब्द फेल का अर्थ असफलता नहीं था, बल्कि वो कहते थे कि इसका अर्थ है- First Attempt In Learning. यानी असफलता सीखने की दिशा में पहला प्रयास है.
सफलता को लेकर उनका कहना था कि अपनी पहली सफलता पर जश्न मनाने की जरूरत नहीं है और इसके बाद आपको आराम से बैठ नहीं जाना चाहिए क्योंकि, अगर आप अपने दूसरे प्रयास में असफल हो गए तो लोग कहेंगे कि आपको पहली सफलता सिर्फ किस्मत से हासिल हुई थी. सफलता और असफलता पर कलाम साहब द्वारा कही गईं यही दो बातें हमारे आज के विश्लेषण का आधार हैं.
एक महान वैज्ञानिक और सबको प्यार करने वाला राष्ट्रपति
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. डॉक्टर कलाम बचपन से ही प्लेन उड़ाना चाहते थे. जब वो पांचवीं कक्षा में पढ़ते में तब आसमान में उड़ती हुई चिड़िया को देखकर उन्होंने अपने शिक्षक सुब्रमण्यम अय्यर से सवाल पूछा था कि ये चिड़िया आसमान में कैसे उड़ती हैं ? उनकी यही जिज्ञासा कुछ वर्षों के बाद उन्हें देहरादून ले आई. जहां उन्हें भारतीय वायुसेना का पायलट बनने के लिए इंटरव्यू दिया. 25 उम्मीदवारों में उन्होंने 9वां स्थान हासिल किया था लेकिन उस समय वैकेंसी सिर्फ 8 सीटों की थी. यानी कलाम साहब पायलट बनने के अपने पहले प्रयास में असफल हो गए थे. लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा, वो आगे बढ़ते रहे. वो ना सिर्फ भारत के सबसे महान वैज्ञानिकों में शामिल हुए, बल्कि देश के राष्ट्रपति भी बने. ऐसे राष्ट्रपति जिन्हें भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोग प्यार करते थे. यहां आपको ये भी समझना चाहिए कि अगर डॉक्टर कलाम अपने पहले ही प्रयास में पायलट बन जाते तो देश को एक महान वैज्ञानिक और सबको प्यार करने वाला राष्ट्रपति शायद नहीं मिल पाता.
किसी भी नागरिक के लिए मातृभूमि से बढ़कर कुछ नहीं
कलाम एक सच्चे मुसलमान थे. लेकिन उन्होंने अपनी राष्ट्रभक्ति से हर बार ये साबित किया कि देश के किसी भी नागरिक के लिए मातृभूमि से बढ़कर कुछ नहीं होना चाहिए. आज हमारे देश के उन मुसलमानों को डॉक्टर कलाम से सबक लेना चाहिए जो देश में रहते हए भी खुद को देश का हिस्सा नहीं मानते, ऐसे लोगों को कलाम साहब के रास्ते पर चलने की कोशिश करनी चाहिए जो इस देश में दो कानून और दो संविधान के पक्ष में हैं जो लोग मदरसों में पढ़ाई को अपना हक मानते हैं, उन्हें भी डॉक्टर कलाम के जीवन से सबक लेना चाहिए. डॉक्टर कलाम किसी मदरसे में नहीं पढ़े थे, लेकिन हमें यकीन है कि अगर वो ऐसा करते भी तो भी वो अपने लक्ष्य से नहीं भटकते. क्योंकि बुराई मदरसों में नहीं है, बुराई देश को अपना देश ना समझने वाली सोच में है. जो लोग आज नागरिकता कानून का विरोध करते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि कैसे एक मुसलमान देशभक्त अपने व्यक्तित्व के दम पर देश का पहला नागरिक यानी राष्ट्रपति बन गया.
यानी नागरिकता का भाव कानून से नहीं, कर्म से आता है. भारत के जिन मुट्ठी भर मुसलमानों को हर चीज से समस्या होती है, उन्हें कलाम साहब के जीवन से ये सीखना चाहिए कि आपके आस पास का माहौल कैसा भी हो, आपको अपने सपनों से समझौता नहीं करना चाहिए और तमाम दबाव के बावजूद हमेशा बड़े सपने देखने चाहिए.
डॉक्टर कलाम सच्चे मुसलमान थे, लेकिन वो राष्ट्रभक्ति की राह पर चलते हुए देश के राष्ट्रपति बने. देश के मुसलमान चाहें तो कलाम साहब से ये सीख सकते हैं कि एक मुसलमान को अच्छा नागरिक भी होना चाहिए. यही बात कुरान में भी लिखी है और हमें लगता है कि मुसलमानों को ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोगों को ये बात सीखनी चाहिए.
देश की सेना को ताकतवर बनाने वाली मिसाइलों का निर्माण
डॉक्टर कलाम राष्ट्रवादी थे, पहले उन्होंने एक वैज्ञानिक की तरह देश की सेवा की, देश की सेना को ताकतवर बनाने वाली मिसाइलों का निर्माण किया और राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनके लिए देश ही सबसे पहले स्थान पर था. आप कह सकते हैं कि कलाम का असली अर्थ है, विज्ञान प्लस इस्लाम. यानी विज्ञान और इस्लाम एक साथ चल सकते हैं.
आप चाहें तो कलाम साहब और उनके जीवन को सेक्युलरिज्म की आदर्श परिभाषा कह सकते हैं. वो खुद एक मुसलमान थे, उन्होंने ईसाई स्कूल से पढ़ाई की और भारत की परंपराओं को पूरी तरह से अपनाया, वो भगवद्गीता भी पढ़ते थे और वीणा भी बजाते थे. उन्होंने कभी भी भारत की परंपराओं को हिंदू और मुसलमान में बांटने की कोशिश नहीं की.
अब आपको बताते हैं कि देश के युवा डॉक्टर कलाम के जीवन से क्या सीख सकते हैं-
-डॉ. कलाम एक मशहूर वैज्ञानिक थे, बाद में वो देश के राष्ट्रपति भी बने. लेकिन इन पदों पर रहने के बावजूद उनकी सादगी पर कोई असर नहीं पड़ा. एपीजे अब्दुल कलाम जीवन भर एक आम इंसान बने रहे और आजकल के युवा उनसे ये सीख जरूर ले सकते हैं.
-डॉक्टर कलाम ने कहा था- सपने वो होते हैं जो आपको सोने न दें. बड़े-बड़े सपने देखनेवाले भारत के युवाओं के लिए ये एक बड़ी सीख है. क्योंकि देश के ज्यादातर युवा अपने सपनों को पूरा करने से पहले ही हार मान लेते हैं. यानी किसी छोटी सी मुश्किल का भी वो मुकाबला नहीं कर पाते हैं.
-उनकी एक और बड़ी बात है, जीवन भर सीखते रहना. डॉक्टर कलाम मानते थे कि जीवन में सीखने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए.