DNA ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद किस दिशा में जाएगा किसान आंदोलन?
Advertisement
trendingNow1808474

DNA ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद किस दिशा में जाएगा किसान आंदोलन?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले को सुलझाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा भारतीय किसान यूनियन और देशभर के किसान संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे. अगर ऐसा हो गया तो ये आंदोलन किसी और दिशा में भी सकता है. 

DNA ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद किस दिशा में जाएगा किसान आंदोलन?

नई दिल्ली: किसानों के आंदोलन का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और कल 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी वही बात कही है जो हम कई दिनों से कह रहे थे. यानी ये मामला बातचीत के ज़रिए सुलझाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में ऐसी कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई जिनमें कहा गया है कि कोरोना वायरस के समय में इतनी बड़ी संख्या में आंदोलन करने वालों को एक जगह इकट्ठा होने की इजाज़त नहीं दी जा सकती और सड़कें ब्लॉक करके लाखों लोगों को परेशानी में नहीं डाला जा सकता, इसलिए इन सड़कों को खाली कराया जाए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को हल करने के लिए एक कमेटी बनाने की बात कही, जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देश भर के किसानों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.

इस ख़बर में ये एक बहुत बड़ा कैच है क्योंकि, अगर इस कमेटी में पंजाब के किसानों के अलावा पूरे देश के किसान प्रतिनिधि आ गए ये आंदोलन एक नई दिशा में चला जाएगा. इसलिए सबसे पहले ये समझ लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के आसपास चल रहा ये आंदोलन जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दे में बदल सकता है.

कृषि कानूनों का विरोध मुख्य रूप से पंजाब के किसान कर रहे
इस मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले को सुलझाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा भारतीय किसान यूनियन और देशभर के किसान संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे. अगर ऐसा हो गया तो ये आंदोलन किसी और दिशा में भी सकता है. क्योंकि अगर पंजाब के किसानों के अलावा इस कमेटी में देशभर के किसान आ गए और उन्होंने ये कह दिया कि वो नए कृषि कानूनों के पक्ष में हैं तो सोचिए क्या होगा ? बहुत संभव है कि ये आंदोलन कमज़ोर पड़ जाए, क्योंकि इन कानूनों का विरोध मुख्य रूप से पंजाब के किसान कर रहे हैं. पंजाब में किसानों की संख्या करीब 11 लाख है जबकि देश भर में 15 करोड़ किसान रहते हैं. यानी इस आंदोलन में बहुत कम संख्या में किसान हिस्सा ले रहे हैं.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें किसानों के उन नेताओं के नाम बताएं जो कोर्ट आ सकते हैं. क्योंकि बिना किसानों की बात सुने, कोर्ट कोई फैसला नहीं सुना सकता. आज 8 किसान नेता कोर्ट में किसानों का पक्ष रखेंगे.

सरकार की किसानों के साथ बातचीत से कोई नतीजा नहीं
इस बीच केंद्र सरकार की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि किसानों के साथ बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकला है क्योंकि, किसान सरकार से नए कृषि कानूनों को हटाने के मुद्दे पर हां या ना में जवाब चाहते हैं. इसलिए केंद्र सरकार के कई मंत्रियों के साथ बैठकों के बावजूद सभी दौर की बातचीत विफल रही. सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ये भी कहा कि किसानों के अलावा कुछ और लोग भी इस आंदोलन में दिलचस्पी लेने लगे हैं.

हालांकि सरकार ने ये भी भरोसा दिलाया कि वो कुछ भी ऐसा नहीं करेगी जो किसानों के हित में नहीं है.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अलावा दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की सरकारों को नोटिस जारी करके उनसे जवाब मांगा है.

अब सुप्रीम कोर्ट इस पर फैसला सुना सकता है कि किसानों द्वारा बंद की गई सड़कों को खाली कराया जाए या नहीं.

सुनवाई के बाद सरकार की तरफ़ से कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा, वो सरकार को मंज़ूर होगा. लेकिन किसानों ने साफ़ किया है कि वो कमेटी में अपने किसी प्रतिनिधि को नहीं भेजेंगे.

किसान संगठनों का क्या रुख होगा?
हालांकि कमेटी का सदस्य न बनने की बात कुछ किसान संगठनों ने कही है. बाकी के किसान संगठनों का क्या रुख होगा. ये देखने के लिए अभी थोड़ा इंतज़ार करना होगा. लेकिन अगर नई कमेटी में देशभर के सभी किसानों के प्रतिनिधि शामिल हो गए तो फिर इस आंदोलन का रुख कुछ भी हो सकता है क्योंकि, हाल ही में देशभर के 10 से भी ज्यादा किसान संगठनों ने नए कानूनों के पक्ष में अपना समर्थन जताया है. भारत में 50 से भी ज्यादा बड़े किसान संगठन है लेकिन दिल्ली के आस पास चल रहे इस आंदोलन में करीब 30 संगठन ही शामिल हैं.

किसान नेता संत राम सिंह ने की आत्महत्या
इस बीच एक किसान नेता संत राम सिंह ने सिंघु बार्डर के नजदीक खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली है. इनके पास से एक सुसाइड नोट मिला है. सुसाइड नोट में लिखा है कि उनसे किसानों का दर्द देखा नहीं जाता है, किसान सड़क पर बैठा है, बॉर्डर पर बैठा है, ज़ुल्म सहना भी पाप है और उसे देखना भी पाप है.

मीडिया सेल बनाने का भी फैसला
इस बीच किसान संगठनों ने अपना एक मीडिया सेल बनाने का भी फैसला किया है और अब किसान इस मीडिया सेल के सहारे सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाएंगे. ये बात हम कई दिनों से कह रहे थे कि किसानों को सड़कों से हटकर सोशल मीडिया पर अभियान चलाना चाहिए क्योंकि आंदोलन का यही तरीका ज्यादा बेहतर है. जैसा Mee Too आंदोलन के दौरान हुआ था.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news