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नई दिल्ली: Zee News देश का सबसे पुराना चैनल है. पिछले 26 वर्षों में ऐसी कोई खबर नहीं रही, जहां Zee News की टीम नहीं पहुंची हो. एक और बात है जो हमें अलग बनाती है, वो है हमारी राष्ट्रवाद की भावना. हमने हमेशा अपने राष्ट्र को सबसे ऊपर रखा है.
एक साल पहले 15 जून की शाम पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 45 वर्षों के लम्बे समय के बाद भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. उस समय LAC पर हुई इस झड़प को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी किसी के पास नहीं थी, लेकिन 16 जून को यानी इस संघर्ष के अगले दिन हमें कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं और तब Zee News ने इस खबर को देश और दुनिया को सबसे पहले बताया.
उस समय Zee News पहला ऐसा चैनल था, जिसने ये बताया कि भारत और चीन की सेना के बीच हुए ख़ूनी संघर्ष में हमारे 20 जवान शहीद हुए हैं. उस समय देश में काफी गुस्सा था और लोगों ने इस बात पर यकीन भी किया और बाद में ये खबर सही साबित भी हुई. लेकिन शायद आपको पता नहीं होगा कि उस दिन यानी 16 जून को इसी स्टूडियो से मैंने आपसे कहा था कि इस हिंसक झड़प में चीन के भी कई सैनिक मारे गए हैं और ये संख्या 40 से भी ज्यादा हो सकती है.
लेकिन दुख की बात ये है कि उस समय हमारे देश के मीडिया के एक बड़े हिस्से ने, विपक्ष के नेताओं ने और बुद्धीजीवियों ने हमारी उस बात को झुठलाया, भारतीय सेना के दावों को भी झुठलाया और चीन की कहानी पर तुरंत विश्वास कर लिया और चीन कई महीनों तक यही कहता रहा कि उसका कोई जवान नहीं मारा गया है.
चीन ने पूरे आठ महीने बाद इसी साल फरवरी 2021 में माना कि उसके चार जवान गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में मारे गए थे. हालांकि यहां चीन ने सच तो माना लेकिन मारे गए अपने सैनिकों की सही संख्या नहीं बताई.
वो ऐसे कि चीन ने कभी इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया. फरवरी 2021 में उसने गंलवान घाटी में वीरता के लिए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पांच जवानों को सम्मानित किया, जिनमें चार जवानों को उसने मरणोपरांत पुरस्कार दिया और एक जवान को जीवित बताया, जबकि सच ये है कि इस हिंसक झड़प में चीन के 40 से ज्यादा जवान मारे गए थे. अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने अपनी एक रिपोर्ट में भी विस्तार से इसकी जानकारी दी थी और बताया था कि चीन के 35 जवान इस संघर्ष में हताहत हुए थे.
यानी जो बात हमने गलवान घाटी की हिंसक झड़प के 24 घंटे बाद 16 जून को आपको बताई थी, वो जानकारी बिल्कुल सही थी. उस समय हमने इस हिंसक झड़प को अभूतपूर्व बताया था और आपसे ये भी कहा था कि इसके बाद अब भारत का रुख चीन के प्रति पूरी तरह बदलने वाला है और वैसा ही हुआ.
इसलिए आज गलवान घाटी में देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए जवानों को याद करने का दिन है, साथ ही ये समझने का भी दिन है कि कैसे गलवान घाटी के इस संघर्ष ने चीन को नुकसान पहुंचाया और भारत की रणनीति में बड़े और अहम बदलाव हुए. आज हम इन तमाम बातों पर आपके साथ चर्चा करेंगे.
हमारे देश के लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर है. उन्हें फिल्मों की कहानियां तो याद रहती हैं, फिल्मों के किरदार भी याद रहते हैं, किस मैच में किस खिलाड़ी ने कितने रन बनाए थे और कितने गोल किए थे, ये तक याद रहता है लेकिन हमारे देश के जवान जब इन्हीं लोगों के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं, तब हमारे देश में शुरुआत के दो चार दिन तो उन्हें याद किया जाता है, आंसू बहाए जाते है, हैशटैग ट्रेंड कराए जाते हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे लोग अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. इसलिए आज एक साल बाद इस कहानी को एक बार फिर से सुनाने का दिन है.
गलवान घाटी में हुए इस खूनी संघर्ष में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए थे. इन 20 शहीद जवानों में से 13 जवान बिहार रेजिमेंट के थे, पंजाब रेजिमेंट के 3 जवान थे, मीडियम रेजिमेंट के 2 जवान थे, माउंटेन ब्रिगेड का 1 एक जवान था और एक जवान फील्ड रेजिमेंट से था.
इनमें बिहार रेजिमेंट के शहीद कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू भी थे. इन्हीं के नेतृत्व में 15 जून की शाम 16 बिहार रेजिमेंट के जवानों का दल चीन के सैनिकों के साथ बातचीत के लिए गलवान घाटी के किनारे पहुंचा था. लेकिन बाद में चीन की PLA ने सुनियोजित तरीके से हमला कर दिया और कर्नल बी संतोष बाबू देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए.
शहीद संतोष बाबू तेलंगाना के सूर्यापेट जिले के रहने वाले थे और करीब डेढ़ वर्ष से वो लद्दाख में भारत और चीन की सीमा पर तैनात थे. इस पराक्रम के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया और उनकी पत्नी को तेलंगाना सरकार की तरफ से डिप्टी कल्क्टर बनाया गया है.
आज ये समझने का भी दिन है कि 15 जून की शाम गलवान घाटी में आखिर क्या हुआ था?
ये सीमा विवाद गलवान घाटी के पेट्रोलिंग पॉइंट 14 पर शुरू हुआ था, जहां चीन ने अप्रैल 2020 से अपने जवानों को तैनात करना शुरू कर दिया था. चीन ने उस समय LAC के पास तम्बू भी लगाए और क्योंकि, इस जगह तक भारतीय सेना पेट्रोलिंग करती थी. उसने चीन की सेना को पीछे जाने के लिए कहा और कई दिनों की बातचीत के बाद 6 जून 2020 को तय हुआ था कि चीन के सैनिक लद्दाख की गलवान घाटी से अपने इलाके में वापस लौटेंगे.
लेकिन जब 15 जून तक PLA के सैनिक पीछे नहीं हटे तो 16 बिहार रेजिमेंट की एक निहत्थी पेट्रोलिंग पार्टी ने चीन के साथ बातचीत शुरू की, लेकिन इसमें जब चीन ने ये स्पष्ट कर दिया कि वो गलवान घाटी से पीछे नहीं हटेगा तो सैनिकों के बीच तनाव बढ़ गया और फिर झड़प हुई. इस दौरान भारतीय सेना के कई जवान गलवान नदी में भी गिर गए थे.
असल में ये एक ऐसा इलाका है, जहां बहुत तीखी चोटियों और सीधी ढलान वाले पहाड़ हैं. यानी यहां पर संतुलन बनाना बहुत कठिन होता है. अब सोचिए अगर इन पहाड़ियों पर झड़प हो जाए तो फिर क्या होगा, सीधे आप खाईं में या फिर नदी में गिर जाएंगे. 15 जून को भी यही हुआ था और हमारे पास एक वीडियो भी है, जिससे आप इसे समझ सकते हैं. इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि नदी की तेज़ धारा के बीच हमारे कई जवान चीन के सैनिकों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं और अपना पराक्रम दिखा रहे हैं.
ये हिंसक झड़प 45 वर्ष बाद हुई थी. इससे पहले वर्ष 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग-ला में इस तरह का खूनी संघर्ष दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुआ था. यहां एक महत्वपूर्ण बात ये है कि हमने इस घटना के कुछ घंटों के बाद ही आपको बता दिया था कि चीन की सेना ने ये हमला सुनियोजित तरीके से किया है और ये बात बाद में साबित भी हुई.
कई रिपोर्ट्स में ये बात सामने आ चुकी है कि हिंसक झड़प वाले दिन चीन के सैनिकों ने पत्थर, कंटीली तार वाले डंडे और कीलों वाली रॉड से हमला किया था.
वर्ष 1996 में भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत दोनों देशों की सेना LAC के दो किलोमीटर के दायरे में न तो गोली चला सकती है और न ही कोई बम धमाका कर सकती है और यही वजह है कि इस तरह की घटनाओं में सेनाओं के बीच हाथापाई और झड़पें होती हैं लेकिन उस दिन चीन ने सुनियोजित तरीके से हमारे जवानों पर कंटीली तार वाले डंडों और कीलों वाली रॉड से हमला किया.
हालांकि भारतीय सेना के पराक्रम ने चीन को कभी कामयाब नहीं होने दिया.
आज आपको ये भी समझना चाहिए कि गलवान घाटी की इस हिंसक झड़प के बाद भारत ने चीन को कैसे चार मोर्चों पर घेरा?
इनमें पहला है चीन की बड़ी कंपनियों पर आर्थिक पाबंदियां, भारत सरकार ने इस हिंसक झड़प के दो हफ्ते बाद ही 29 जून 2020 को चीन के 59 मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था. इनमें Tik-Tok और Share It जैसे काफी लोकप्रिय एप्स भी थे. ये कार्रवाई आने वाले कई महीनों तक जारी रही. 3 सितम्बर 2020 को 118 एप्स, नवम्बर 2020 में 43 एप्स और इस साल जनवरी के महीने में चीन के 57 एप्स पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया. इस डिजिटल स्ट्राइक ने चीन को न सिर्फ परेशान किया, बल्कि इससे उसकी कंपनियों को भी भारी नुकसान हुआ.
उदाहरण के लिए खुद Tik-Tok ने बताया था कि इस कार्रवाई से उसे 6 बिलियन डॉलर यानी 45 हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान होने वाला है।
इनमें दूसरा मोर्चा है चीन के खिलाफ Diplomatic Mobilization यानी कूटनीतिक लामबंदी - इसके तहत भारत ने दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देशों के साथ सहयोग को बढ़ाया और रिश्ते मजबूत किए. QUAD यानी Quadrilateral Security Dialogue इनमें प्रमुख है. ये चार बड़े देश अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का एक समूह है और ये सभी देश चीन को बड़ा खतरा मानते हैं. इन चारों देशों में सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है जिसकी सीमा चीन से मिलती है और नवंबर 2020 में इन चार देशों ने मालाबार में नौसेना अभ्यास भी किया था.
यानी गलवान घाटी के बाद भारत ने चीन के खिलाफ कूटनीतिक लामबंदी की.
29 अगस्त 2020 की रात को पैंगोंग लेक के दक्षिणी छोर पर कैलाश हाइट्स पर अपनी जगह को सुरक्षित करके भारतीय सेना ने चीन को बड़ा झटका दिया. इसे भारत के साथ जारी तनाव के बीच टर्निंग पॉइंट भी माना गया क्योंकि, इससे चीन के कुछ इलाके सीधे भारत की रेंज में आ गए. बड़ी बात ये है कि पैंगोंग में चीन ने फिंगर 4 पर आकर जो बढ़त बनाई थी, वो इससे बराबर हो गई. यानी ये तीसरा मोर्च था, जिस पर चीन घिरा.
और चौथा मोर्चा है बातचीत का. तनाव के बावजूद नई दिल्ली का सम्पर्क चीन की राजधानी बीजिंग से नहीं टूटा. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन से बातचीत जारी रखी. सेना ने भी कमांडिंग स्तर की बातचीत को जारी रखा और डिप्लोमैट्स के बीच भी बातचीत चलती रही और इस तरह भारत गलवान घाटी के बाद चीन पर दबाव बनाता चला गया.
पिछले एक साल में एलएसी पर सैनिकों और साज़ोसामान दोनों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है. पूर्वी लद्दाख में होविट्ज़र तोपें एम-777 तैनात की गईं. इसके अलावा सेल्फ प्रोपेल्ड होविट्जर के 9 वज्र को भी इसी साल फरवरी में लद्दाख में तैनात किया गया है. सेना ने हेलीकॉप्टर अपाचे को भी लद्दाख में मोर्चे पर तैनात किया हुआ है.
दरअसल चीन को इस बात से परेशानी है कि भारत अपनी सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत कर रहा है. यही वजह है कि भारतीय सीमा में आकर इस तरह घुसपैठ करने की उसने कोशिश की थी. पूर्वी लद्दाख में लगातार सड़कों का निर्माण जारी है जिसमें रणनैतिक रूप से महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी तक जाने वाली सड़क भी शामिल है. ये सड़क चीन की परेशानी की सबसे बड़ी वजह है.
हालांकि चीन को रोकने के लिए अभी भारत को और कदम उठाने होंगे. हम ऐसे दो विकल्प के बारे में आपको बताते हैं.
इनमें पहला विकल्प है, आर्थिक, सैन्य और तकनीक के मामले में भारत चीन से थोड़ा पीछे है. ऐसे में इस संतुलन को बनाने के लिए जरूरी है कि भारत चीन की घेराबंदी के लिए ऐसे देशों को अपने साथ लाए, जो चीन को खतरा मानते हैं और जिनका चीन के साथ विवाद है. इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान और जर्मनी प्रमुख हैं. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है
दूसरा विकल्प है, चीन के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करना. भारत चीन के पड़ोसी देश रूस और वियतनाम के साथ सहयोग और बढ़ा सकता है. वियतनाम का तो चीन के साथ सीमा विवाद भी है, ऐसे में इस विषय को लेकर दोनों देश कॉमन एजेंडा तैयार कर सकते हैं. जापान भी चीन का पड़ोसी देश और जापान चीन की नीतियों के खिलाफ है.
आपको याद होगा पिछले साल जब गलवान घाड़ी में हिंसक झड़प हुई थी, तब जवानों का हौसला बाढ़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 जुलाई 2020 को लद्दाख पहुंचे थे. लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कभी अपने जवानों से नहीं मिले और इसी बात से आप समझ सकते हैं कि अपनी सेना के प्रति दोनों देशों कितने समर्पित हैं.
चीन पहले बिना किसी हमारी सीमा में घुस जाता था और तब चीन से लड़ने का दम सरकार में नहीं था. इस दौरान चीन ने हमारी 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली, लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज भारत ने चीन के सामने झुकने की बजाय सीना तान कर खड़े रहने की हिम्मत दिखाता है.