कभी राजनीति में नरेंद्र मोदी जैसा सद्भाव, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी दिखाया था. वर्ष 1994 में अटल बिहारी वाजपेयी, लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. लेकिन नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्हें चुना था.
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नई दिल्ली: हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि तीखापन स्वाद में होना चाहिए स्वभाव में नहीं. कल 9 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने नकारात्मक राजनीति को यही संदेश दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल संसद में भावुक हो गए, उनका गला रूंध गया और आंखों से आंसू निकलने लगे. थोड़ी देर के लिए वो खामोश हो गए. इसके बाद उन्होंने अपने आंसुओं की वजह भी बताई. राज्य सभा में जम्मू-कश्मीर के 4 सांसदों का कार्यकाल 15 फरवरी को खत्म हो रहा है. इनमें से एक विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद भी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलाम नबी आज़ाद से अपनी दोस्ती का जिक्र किया और कश्मीर में हुई एक आतंकी घटना की कहानी बताने के दौरान उनकी आंखों से आंसू छलक आए. जिन शब्दों और भावनाओं के साथ प्रधानमंत्री ने आज गुलाम नबी आज़ाद से अपनी दोस्ती को याद किया. वो भारत में सकारात्मक राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण है. हालांकि इसके साथ ही हमें डर है कि इसे देखने के बाद कांग्रेस में गुलाम नबी आज़ाद के बुरे दिन शुरू हो सकते हैं क्योंकि, कांग्रेस के कड़वे स्वभाव को मीठी मित्रता पसंद नहीं आती. कांग्रेस पार्टी में परिवार के आगे किसी नेता का कद, प्रतिष्ठा मायने नहीं रखती है और अगर कांग्रेस का कोई नेता प्रधानमंत्री मोदी या उनकी सरकार की तारीफ कर दे, तो फिर उस नेता के बुरे दिन शुरू हो जाते हैं. कांग्रेस में बने रहने के लिए नेताओं के DNA में परिवार भक्ति होनी जरूरी है. शायद इसीलिए प्रधानमंत्री को भी अपने दोस्त गुलाम नबी आज़ाद की चिंता हो रही है.
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जिस G-23 का जिक्र किया वो कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का एक समूह है. इस समूह में गुलाम नबी आज़ाद भी हैं और इस ग्रुप के ज्यादातर नेताओं को हाशिए पर धकेल दिया गया हैं, जिनमें शशि थरूर, जयराम रमेश और जनार्दन द्विवेदी प्रमुख हैं.
किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष का काम सिर्फ एक-दूसरे का विरोध करना नहीं है. आपसी सामंजस्य से भी देश को मिलकर आगे बढ़ाया जा सकता है और एक-दूसरे का सम्मान करके भी राजनीति हो सकती है. आरोप, अपशब्द, अपमान की सियासत आपको थोड़ी देर के लिए फायदा तो दिला सकती है, लेकिन इनसे वोट मिलने की गारंटी कभी नहीं होती है. ये कांग्रेस से बेहतर भला और कौन जान सकता है, जो लगातार 2 लोक सभा चुनाव सिर्फ इसलिए हारी, क्योंकि उसका सारा फोकस प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाना था.
गुलाम नबी आज़ाद अब भले राज्य सभा से रिटायर हो जाएंगे, लेकिन उनका लंबा राजनीतिक अनुभव देश के लिए हमेशा काम आएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए कहा कि उन्हें आगे भी गुलाम नबी आज़ाद के अनुभवों की जरूरत है.
कभी राजनीति में नरेंद्र मोदी जैसा सद्भाव, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी दिखाया था. वर्ष 1994 में अटल बिहारी वाजपेयी, लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. लेकिन नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्हें चुना था, ताकि कश्मीर पर पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा विफल किया जा सके और अटल जी ऐसा करने में सफल भी हुए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आंसुओं से भावुक गुलाम नबी आजाद जब धन्यवाद देने के लिए सदन में खड़े हुए तो उन्होंने तुष्टीकरण वाली मुस्लिम राजनीति के बारे में देश को बड़ा सच बताया. मुसलमानों को वोट समझ कर राजनीति करने वाले हर राजनेता को ये सच सुनना चाहिए क्योंकि, हिंदुस्तान में मुसलमानों को भड़काने वाले तो कई नेता हैं, लेकिन उन नेताओं की संख्या बहुत कम है, जिन्हें हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व है.
हमें उम्मीद है कि गुलाम नबी आजाद की ये बातें आज पूर्व उपराष्ट्रपति और कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता हामिद अंसारी ने भी सुनी होंगी और ये सुनकर उनके मन में जो गुस्सा है, वो थोड़ा कम हुआ होगा.
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कुछ दिन पहले उन्होंने ज़ी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं और उनमें डर की भावना है.
सोचिए, ये दावा उस व्यक्ति ने किया, जिसे देश ने सब कुछ दिया. वो 2 बार देश के उपराष्ट्रपति रहे. कई देशों में भारत के राजदूत रहे. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी रहे. लेकिन इसके बाद उन्होंने क्या किया? वो उस डरजीवी गैंग का हिस्सा बन गए, जो मुसलमानों को डराने वाली पॉलिटिक्स करता है.
भारत में अगर नकारात्मक राजनीति छोड़कर सकारात्मक राजनीति हो तो हमारी शोर से भरी संसद और नफरत से परेशान देश का भविष्य बहुत शायराना हो सकता है. इसे आप गुलाब नबी आज़ाद के उन चार शेर से समझिए जो उन्होंने संसद में देश को सुनाए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय राजनीति का अनुभव सिर्फ 7 साल का है, लेकिन 7 वर्ष में ही उन्होंने संसदीय लोकतंत्र में जिस तरह की कंस्ट्रक्टिव पॉलिटिक्स की है, उसे राजनीति के छात्रों को जरूर समझना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार 2 बार से पूर्ण बहुमत वाली गैर कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन उनके आंसुओं को देखकर आप ये कह सकते हैं कि उनमें सत्ता का घमंड नहीं है और वो अपने विपक्षियों का सम्मान करना जानते हैं. कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- सत्ता में बैठे लोगों में घमंड नहीं होना चाहिए, उनमें विनम्रता होनी चाहिए.
इस वक्त देश में विपक्ष की जो हालत है सबको पता है. पिछले 2 चुनावों से देश को लोकसभा में विपक्ष का नेता तक नहीं मिल पाया है. लेकिन जिस तरह से गुलाम नबी आज़ाद के सम्मान में प्रधानमंत्री के आंसू छलके, वो आंसू उन नेताओं के लिए सीख हैं, जो व्यक्तिगत सम्मान के ऊपर पार्टी हित या खुद के हित को ज्यादा महत्व देते हैं क्योंकि, केंद्र और राज्यों की राजनीति में कई ऐसे मौके आए हैं, जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच रिश्ते इतने बिगड़ गए थे कि उनमें विश्वास की मात्रा बिल्कुल खत्म हो गई.
जयललिता और करुणानिधि अब भले ही इस दुनिया में नहीं है. लेकिन एक जमाने में इन दोनों के बीच राजनीतिक विरोध का स्तर इतना तल्ख था कि हालात व्यक्तिगत दुश्मनी जैसे दिखाई देते थे.
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-बिहार में लालू प्रसाद, नीतीश कुमार के बीच भी कभी 36 का आंकड़ा था. हालांकि एक पल ऐसा भी आया जब दोनों नेताओं ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा, लेकिन बाद में ये रिश्ते फिर से बिगड़ गए
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लेकिन प्रधानमंत्री ने आज जिस तरह राज्यसभा के नेता विपक्ष की तारीफ की है. उससे नेताओं की मौजूदा पीढ़ी को जरूर सीख लेनी चाहिए.