पीएम मोदी की योजना से रोशन हुआ भारत, जानें देश के गांव-गांव तक कैसे पहुंची बिजली?
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पीएम मोदी की योजना से रोशन हुआ भारत, जानें देश के गांव-गांव तक कैसे पहुंची बिजली?

नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) साल 2001 में पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और वर्ष 2003 में उन्होंने गुजरात के हर गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए ज्योतिर्ग्राम योजना (Jyotigram Yojana) की शुरुआत की थी.

घर-घर बिजली पहुंचाने की योजना का नाम है सौभाग्य.

Podcast- 

  1. देश के गांव-गांव तक पहुंची बिजली
  2. पीएम मोदी ने जीवन में फैलाया उजाला
  3. बुनियादी जरूरतों में बिजली भी शामिल

 नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रशासन में 20 साल पूरे होने पर आज हम आपको उनकी उस बड़ी योजना के बारे में बता रहे हैं, जो शत प्रतिशत पूरी हो चुकी है. पहले, लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान आते थे, लेकिन नए भारत में लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ बिजली भी चाहिए. आज बिना बिजली के जीवन बिताने की कल्पना नहीं की जा सकती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों की इस बुनियादी जरूरत को पूरी करने की जिम्मेदारी ली और उसे पूरा किया. इस काम को तय समय में पूरा करने के लिए गुजरात का अनुभव उनके काम आया.

सीएम बनने के बाद 2003 में शुरू की थी योजना

नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) साल 2001 में पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और वर्ष 2003 में उन्होंने गुजरात के हर गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए ज्योतिर्ग्राम योजना (Jyotigram Yojana) की शुरुआत की थी. सिर्फ 3 साल में ही इस योजना के तहत गुजरात के हर गांव में बिजली पहुंचाई गई. साल 2006 में गुजरात, भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया, जहां हर गांव में बिजली का नेटवर्क हो.

पीएम बनने पर पूरे देश के लिए शुरू की योजना

इसी तरह, साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के तीन साल बाद नरेंद्र मोदी ने देश के हर घर में बिजली पहुंचाने के लिए सौभाग्य योजना (Saubhagya Yojana) की शुरुआत की. सौभाग्य का लक्ष्य था- देश के हर गरीब और हर घर में बिजली पहुंचाना. सौभाग्य के तहत 2 करोड़ 80 लाख से अधिक घरों में बिजली पहुंची है. सरकार ने दावा किया कि 31 मार्च 2021 तक 100 प्रतिशत घरों में बिजली पहुंच गई. इसी तरह केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2017 से मार्च 2021 तक यानी साढ़े 3 साल में इस लक्ष्य को पूरा कर लिया.

कश्मीर से लेकर बिहार तक हुआ रोशन

एलओसी (LoC) के पास कश्मीर के एक गांव में बिजली की राह देखते-देखते मोहम्मद चाचा बूढ़े हो गए. शमीमा की पढ़ने की उम्र बीत गई, लेकिन ताहिरा और रिफत जैसी बच्चियों का सौभाग्य है कि वो बल्ब की रौशनी में पढ़ रही हैं. बिहार के मोतिहारी में मजदूर सुखी सहनी का परिवार आज भी झोपड़ी में रहता है, लेकिन सौभाग्य है कि बिजली का बल्ब जल रहा है. पंखे की हवा आ रही है. टीवी पर बच्चे फिल्म देख रहे हैं.

घर-घर बिजली पहुंचाने की योजना का नाम है सौभाग्य

आप ये भी सोच रहे होंगे कि इसमें सौभाग्य की क्या बात है. आपको लगता होगा कि खबर बिजली से जुड़ी है और हम बार-बार सौभाग्य शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं. ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इनके घर में जिस योजना के तहत बिजली पहुंची. उस योजना का नाम ही सौभाग्य है. और पूरा नाम प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना है.

बिजली पहुंचने से आसान हो गई लोगों की जिंदगी

साल 1947 में भारत की आजादी के बाद पहली बार बारामूला जिले के बोनियार तहसील के चौटाली गांव में बिजली के तार पहुंचे. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक साल बाद ही चौटाली गांव में बिजली आ गई और उसके बाद लोगों का जीवन बदल गया. ना सिर्फ पढ़ाई के लिहाज से बल्कि किचन रूम में खाना बनाने में भी आसानी हो गई.

एलओसी के पास के गांव को करना पड़ा 74 साल इंतजार

सोचिए, जो गांव एलओसी (LoC) के बिल्कुल पास है. वहां सुरक्षा के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था भी हो. ये हर सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. अगर पहले की सरकारों ने ध्यान दिया होता तो चौटाली गांव के लोगों को 74 साल तक बिजली का इंतजार नहीं करना पड़ता.

बिहार के गांवों में भी पहुंची बिजली

मोतिहारी के पकरिया गांव में अब भी कई परिवार हैं, जिनके पास पक्की छत नहीं है. आवास के नाम पर झोपड़ी है, लेकिन बिजली के तार इन घरों में भी पहुंच चुके हैं. धनिया देवी बताती हैं कि एक साल पहले तक मोबाइल चार्ज कराने के लिए भी बाजार जाना पड़ता था. मोबाइल चार्ज कराने के 10 रुपये लगते थे, लेकिन बिजली आई तो कई समस्याएं एकसाथ चली गईं. अब बच्चे मोबाइल पर कार्टून भी देखते हैं और टीवी पर फिल्में भी देखते हैं. इसके साथ ही बल्ब की रोशनी में पढ़ाई भी करते हैं.

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