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नई दिल्ली: आज हम आपको राजस्थान से आई एक ऐसी खबर के बारे में बताएंगे, जो आपको चौंका देगी. इस खबर को जान कर आपको ऐसा लगेगा कि जैसे आप आज बैंक के लॉकर्स में कीमती चीजें रखते हैं, आभूषण रखते हैं, वैसे ही अब आपको लॉकरों में पानी भी रखना पड़ेगा. पानी इतना कीमती हो जाएगा कि आप उसे तालों में रखेंगे क्योंकि, राजस्थान में कुछ ऐसा ही हो रहा है.
ये खबर राजस्थान के अलवर से आई है, जहां पानी, आभूषण से भी ज्यादा कीमती हो गया है. इन इलाकों में पानी की इतनी किल्लत है कि लोग उसे अपने घरों में टैंकर में छिपाकर और तालों में सुरक्षित रखने लगे हैं.
हालांकि पानी की ये समस्या सिर्फ राजस्थान के इन कुछ गांवों तक सीमित नहीं है. पूरे विश्व में ही पीने के पानी की समस्या है.
अंतरराष्ट्रीय संस्था वाटर एड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2030 तक दुनिया के 21 शहरों के नलों में पानी नहीं होगा और वर्ष 2040 तक 33 देश पानी के लिए तरसने लगेंगे. इनमें भारत का नाम भी शामिल है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर के कुल ग्राउंड वाटर का 24 प्रतिशत हिस्सा भारत के लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. ग्रामीण भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच साफ पानी तक नहीं है. इसके अलावा दुनिया भर के 10 प्रतिशत लोग भारत में प्यासे रह जाते हैं.
यानी आज के दौर में पीने का पानी सबसे ज्यादा कीमती है. आप एक टाइम का खाना बंद कर सकते हैं, लेकिन पानी पीना बंद नहीं कर सकते.
आज इस पर हमने राजस्थान के इन गांवों से आपके लिए एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट से आपको पता चलेगा कि अगर आज पानी की कीमत नहीं समझी गई, तो भविष्य में हर जगह पानी को इसी तरह तालों में बंद रखा जाएगा.
राजस्थान के गोपालपुरा गांव में कुएं सुखे पड़े हैं. बावड़ियों में एक बूंद पानी नहीं है. तालाबों की सूखी मिट्टी बताती है कि यहां पिछले कई सालों से पानी की एक बूंद तक नहीं दिखी. गर्मी में तापमान 43 डिग्री सेल्सियस हो गया है. सोचिए, राजस्थान के अलवर के इन गांवों में रहने वाले लोगों को पानी कहां से मिलता होगा.
जो चीज सबसे कीमती होती है. उसी को छिपाकर या तालों में रखा जाता है. अलवर के कुछ गांवों में लोग अपने घरों में पानी को तालों में कैद रखते हैं ताकि कोई उसे चुरा न सके.
गोपालपुरा गांव के लोग पानी के स्रोतों पर ताले जड़कर रखते हैं क्योंकि, पानी की कीमत यहां पर इंसानों से ज्यादा है. अगर आप यहां पीने के लिए पानी मांगें तो शायद कई बार मांगने के बाद एक गिलास पानी मिलेगा, मिल भी जाए को गनीमत समझिए.
हालात ये है कि गोपालपुरा ही नहीं, इस इलाके के कई गांवों में पानी की किल्लत है. पानी की कमी और उसको पाने के लिए होने वाली जद्दोजहद इतनी बड़ी है कि इन गावों में कोई अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता.
गोपालपुरा और उसके आसपास के गांवों में पानी पर ताले लगाने की परंपरा सालों पुरानी है क्योंकि, पिछले लगभग 15 सालों से इस इलाके में पीने का पानी आसानी से नहीं मिल रहा. हालात ये हैं कि यहां के युवा कोरोना संक्रमण के नारे पर भी व्यंग करते दिखते हैं जिसमें बार बार हाथ धोने की सलाह दी जाती है.
सोचिए जिस इलाके में पीने के पानी की इतनी किल्लत हो. वहां पर खेती के लिए पानी कहां से मिलता होगा. चंबल का पानी देने का वादा लोगों के लिए सफेद हाथी जैसा हो गया है और हालात ये हैं कि खेती करने वाले किसान कर्ज लेकर बोरिंग करवाते हैं जिसमें लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं.
अलवर के इन इलाकों में पानी के कई स्रोत थे, चाहे वो कुएं हों, तालाब हों या फिर बावड़ियां, किसी का भी रख-रखाव नहीं किया गया, जिसकी वजह से वो भी सूखते चले गए.
इन्हीं की वजह से बारिश का पानी जमीन के नीचे के जल स्तर को बनाए रखता था, लेकिन उसमें लापरवाही बरती गई और अब हालात ये हैं कि लोग इन इलाकों से पलायन कर रहे हैं.
पानी की समस्या उन इलाकों में समस्या नहीं मानी जाती जहां नल खोलने पर पानी आने लगता है. ये समस्या उन लोगों को मालूम होती है जो एक बाल्टी पानी के लिए कई किलोमीटर पैदल चलते हैं, जिन्हें एक एक गिलास पानी सोच-समझकर और नाप तोल कर इस्तेमाल करना होता है. ऐसे ही इलाकों में पानी को कीमती माना जाता है और उसे चोरों से बचाने के लिए तालों में रखा जाता है.