DNA ANALYSIS: तालिबान की क्रूरता के सामने बेबस हुई ममता, विदेशी सैनिकों को भी रुला गए मां के आंसू
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DNA ANALYSIS: तालिबान की क्रूरता के सामने बेबस हुई ममता, विदेशी सैनिकों को भी रुला गए मां के आंसू

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से लोगों में जबरदस्त दहशत है. वे किसी भी हालत में वहां से निकल जाना चाहते हैं. इसके लिए वे हर तरह की कोशिश कर रहे हैं.

DNA ANALYSIS: तालिबान की क्रूरता के सामने बेबस हुई ममता, विदेशी सैनिकों को भी रुला गए मां के आंसू

नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे भारी वस्तु क्या होती है? वो है किसी भी बाप के कन्धे पर उसके बेटे की अर्थी. सबसे बड़ा दुख है, किसी भी मां का जीते जी अपने बच्चे से बिछड़ जाना. अफगानिस्तान (Afghanistan) इस समय इन दोनों दुखों से घिरा हुआ है. 

  1. अमेरिकी सैनिकों की ओर उछाल दिया बच्चा
  2. अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं लोग
  3. अमेरिकी सैनिकों की आंखों में भी आंसू

अमेरिकी सैनिकों की ओर उछाल दिया बच्चा

अफगानिस्तान में अपने बच्चे की जान बचाने के लिए उसे काबुल एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैनिकों की ओर उछाल दिया. ये बच्चा किसी मां के गर्भ में 9 महीने तक पला होगा. फिर कई महीनों तक इसकी मां ने इसे कलेजे से लगाकर रखा होगा लेकिन 9 सेकेंड में अचानक सबकुछ बदल गया. काबुल एयरपोर्ट की इस दीवार के एक तरफ तालिबान की क्रूरता है और दूसरी तरफ बेहतर जिंदगी की एक उम्मीद. इसी उम्मीद में शायद इस मां ने अपने बच्चे को अमेरिकी सैनिकों को सौंप दिया.

अमेरिकी सैनिकों को अपना बच्चा सौंपते हुए इस मां का कलेजा फट गया होगा. वो चीखी तो नहीं होगी लेकिन उसकी आत्मा रो पड़ी होगी. ये मां अपने बच्चे को आखिरी बार जी भरके देख लेना चाहती होगी. लेकिन धीरे धीरे भीड़ ने इस मां को पीछे धकेल दिया. ये अफगानिस्तान की किसी एक मां की कहानी नहीं है. सैंकड़ों मां-बाप. किसी भी तरीके से अपने बच्चों को काबुल एयरपोर्ट के अंदर भेजना चाहते हैं. 

कुछ दिन पहले तक ये छोटे बच्चे शायद हर रात अपनी मां के साथ चिपककर सोते होंगे और खुद को सुरक्षित समझते होंगे. जिस दिन काबुल पर तालिबान का कब्ज़ा हुआ. उसी दिन इनकी मां ने ये सोच लिया होगा कि वो अपने बच्चों को तालिबानियों की हिंसा का शिकार नहीं होने देंगी.

अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं लोग

पहले अफगानिस्तान (Afghanistan) के सैंकड़ों मां बाप ने ये कोशिश की कि वो किसी तरह से अपने बच्चों के साथ एयरपोर्ट के अंदर घुस जाएं. ये सोचकर कि कोई ना कोई विमान कभी ना कभी उड़ान भरेगा और इन्हें अफगानिस्तान से बाहर ले जाएगा. जब एयरपोर्ट के अंदर घुसना मुश्किल होता गया तो इन मां बाप ने खुद बाहर रहने का और अपने बच्चों को एयरपोर्ट के अंदर भेजने का कठोर फैसला लिया. अब काबुल एयरपोर्ट के अंदर पहुंच चुके बच्चे रो रहे हैं और बाहर खड़ी उनकी माएं चीख रही हैं. आपको भी ये चीखे कई रातों तक सोने नहीं देंगी.

काबुल एयरपोर्ट और इन लोगों के बीच ऊंची ऊंची दीवारें और लोहे की तारें हैं. ये लोग इन दीवारों को किसी भी कीमत पर लांघ जाना चाहते है क्योंकि ये लोग शरिया नहीं शरण चाहते हैं. वे लोग चीख-चीख कर अमेरिकी सैनिकों से विनती कर रहे हैं कि उन्हें एयरपोर्ट के अंदर आने दिया जाए क्योंकि तालिबान उसे मारने आ रहा है.

अमेरिकी सैनिकों की आंखों में भी आंसू

जिन बच्चों को इन माओं ने किसी तरह से एयरपोर्ट के अंदर भेज दिया है. वो बच्चे अब शरणार्थी कहलाएंगे. अब ये बच्चे शायद फिर कभी अपने मां बाप से मिल नहीं पाएंगे. ये माएं कभी इन बच्चों को अपने सीने से नहीं लगा पाएंगी. जो अमेरिकी सैनिक इन बच्चों को अंदर खींच रहे हैं. उनकी आंखों में भी आंसू हैं. वो ये समझ नहीं पा रहे कि क्या इसी दिन के लिए उन्होंने 20 वर्षों तक तालिबान से लड़ाई लड़ी थी .

20 वर्ष पहले जब अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान (Afghanistan) आए थे. तब वहां तालिबान का राज समाप्त हो गया था. उस दौरान अफगानिस्तान में जन्म लेने वाले बच्चों ने एक बेहतर जीवन का सपना देखा होगा. कोई खिलाड़ी बनना चाहता था. कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर तो शायद कोई वैज्ञानिक बनना चाहता था. फिर 20 वर्षों के बाद सब कुछ एक बार फिर से बदल गया है.

ऐसा ही सपना 19 वर्ष के जकी अनवरी ने भी देखा था. जो अफगानिस्तान की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए खेलता था. इसी महीने की 16 तारीख को सबकुछ बदल गया. अमेरिकी एयरफोर्स के विमान पर लटकने के लिए जो भीड़ काबुल एयरपोर्ट पर दौड़ रही थी. उस भीड़ में जकी अनवरी भी शामिल था. 

उड़ते जहाज से गिरकर खत्म हो गया फुटबॉलर

जकी किसी तरह विमान से लटकने में कामयाब हो गया. धीरे-धीरे विमान Take Off करने के लिए Runway पर दौड़ने लगा. तब शायद जकी अनवरी ने विमान के किसी हिस्से को जोर से पकड लिया होगा.

जिस विमान से जकी अनवरी लटका हुआ था. उसका नाम है C-17 Globe Master. जिसे Take Off करने के लिए 250 से 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से RunWay पर दौड़ना पड़ता है. जब ये विमान हवा में पहुंच जाता है तो इसकी स्पीड 800 किलोमीटर प्रति घंटा हो जाती है.

विमान के अंदर इस गति का एहसास हो या ना हो. लेकिन विमान पर लटके जकी अनवरी को ऐसा लगा होगा जैसे आसमान उसे अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहा है. ऊंचाई बढ़ने के साथ साथ ऑक्सीजन की कमी होने लगी होगी और इस बीच उसका हाथ छूट गया होगा. 

इसके बाद जिस काबुल से वो भागना चाहता था. उसी जमीन की तरफ वो तेज़ी से गिरने लगा और जमीन से टकराते ही उसकी मौत हो गई. जकी अनवरी उन दो लोगों में शामिल था, जो इस उड़ते हुए विमान से नीचे गिरे थे.

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अफगानिस्तान में हरेक व्यक्ति डर के साये में

ये सिर्फ ज़की अनवरी की मौत नहीं है बल्कि अफगानिस्तान (Afghanistan) के हज़ारों युवाओं के सपनों की मौत है. जो लोग एयरपोर्ट में घुस पा रहे हैं. उन्हें भी ये नहीं पता कि वो जीवित बचेंगे या नहीं. जो लोग एयरपोर्ट के बाहर हैं, उन्हें कभी भी तालिबानी अपनी गोलियों का निशाना बना सकते हैं.

कुछ दिन पहले ही अफगानिस्तान की महिला फुटबॉल टीम की कप्तान ने अपनी टीम के खिलाड़ियों से अपील की थी कि वो सोशल मीडिया पर अपनी फुटबॉल खेलते हुए तस्वीरें Delete कर दें. अपनी Kit को जला दें और कहीं गायब हो जाएं. अगर तालिबान ने उन्हें पहचान लिया तो सभी को मार दिया जाएगा.

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