DNA ANALYSIS: संयोग नहीं 'प्रयोग' था शाहीन बाग, देश को बंधक बनाने की रची गई साजिश
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DNA ANALYSIS: संयोग नहीं 'प्रयोग' था शाहीन बाग, देश को बंधक बनाने की रची गई साजिश

शाहीन बाग (Shaheen Bagh)में 14 दिसंबर 2019 से 24 मार्च 2020 तक नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चले प्रदर्शन को सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना है. विरोध के अधिकार की एक सीमा: सुप्रीम कोर्ट अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि विरोध के अधिकार की एक सीमा होती है.

DNA ANALYSIS: संयोग नहीं 'प्रयोग' था शाहीन बाग, देश को बंधक बनाने की रची गई साजिश

नई दिल्ली: शाहीन बाग (Shaheen Bagh)में 14 दिसंबर 2019 से 24 मार्च 2020 तक नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चले प्रदर्शन को सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना है.

  1. विरोध के अधिकार की एक सीमा: सुप्रीम कोर्ट
  2. धरना खत्म होने के 6 महीने बाद आया फैसला
  3. Zee News के स्टैंड पर लगी मुहर
  4.  

विरोध के अधिकार की एक सीमा: सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि विरोध के अधिकार की एक सीमा होती है. किसी भी सार्वजनिक जगह को अनिश्चितकाल तक बंद नहीं किया जा सकता. ऐसे विरोध प्रदर्शन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. पुलिस प्रशासन को ऐसी हालत में कार्रवाई चाहिए, उन्हें अदालत के आदेश की जरूरत नहीं है.

धरना खत्म होने के 6 महीने बाद आया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उम्मीद जताई है कि कि भविष्य में ऐसी स्थिति पैदा नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला शाहीन बाग धरना खत्म होने के 6 महीने 13 दिन के बाद आया है. सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को वरिष्ठ वकील संजय हेगडे और साधना रामचंद्रन को जिम्मेदारी दी थी कि प्रदर्शनकारियों से बात कर कोई समाधान निकालें, लेकिन कई राउंड की चर्चा के बाद बात नहीं बनी थी.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर जताई चिंता
जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने अपने फैसले में सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान का भी जिक्र किया है उन्होंने अपने फैसले में लिखा है कि शाहीन बाग धरने के दौरान सोशल मीडिया से समाज में ध्रुवीकरण हुआ. दोनों पक्षों के बीच ऐसी बहस छिड़ी जिसका कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला.

Zee News के स्टैंड पर लगी मुहर
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक बात और साफ हो गई है कि Zee News ने शाहीन बाग धरने के  खिलाफ जो स्टैंड लिया था वो बिल्कुल सही था. Zee News ने इस धरने को देश की राजधानी के हिस्से पर अनाधिकृत कब्जा बताया था. शाहीन बाग को 101 दिनों के लिए अलग देश की शक्ल दे दी गई थी. यहां प्रदर्शन कर रहे लोगों की इजाजत के बिना पुलिस भी अंदर नहीं जा सकती थी. 

शाहीन बाग धरने में पसंदीदा लोगों को मिलती थी एंट्री
प्रदर्शन कर रहे लोगों की पसंद के लोग ही आ जा सकते थे. जिस तरह विदेश जाने के लिए वीज़ा जरूरी होता है, उसी तरह शाहीन बाग पहुंचने के लिए वहां से जारी होने वाली पर्ची का आपके पास होना जरूरी था. प्रदर्शन कर रहे लोगों से सच्चे सवाल पूछने पर ZEE NEWS की एंट्री रोक लगा दी गई थी. उन्हीं चैनलों को कवरेज की इजाजत थी जो रिपोर्टिंग में सिर्फ उनका ही पक्ष दिखाते थे.

धरने से लाखों का जीवन बन गया था दुश्वार
 शाहीन बाग का धरना एक ऐसी रोड पर कब्जा कर शुरू किया गया था, जो दिल्ली- नोएडा और हरियाणा के फरीदाबाद की जनता के लिए लाइफ लाइन का काम करती है. रोजाना इस सड़क पर 1 लाख से अधिक वाहन गुजरते हैं, 101 दिन तक लाखों लोगों को दफ्तर पहुंचने में दिक्कत हुई. बच्चों को स्कूल पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा. शाहीन बाग के आसपास के मोहल्लों की दुकानों का कामकाम पूरी तरह ठप रहा. 

दुकानदारों को 150 करोड़ रुपये का नुकसान
धरना खत्म होते ही देश में लॉकडाउन हो गया. ऐसी स्थिति में आप दुकानदारों के बारे में सोचिए जिनका कामकाज 25 मार्च को देश में हुए लॉकडाउन से 3 महीने पहले ही ठप हो गया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक 22 फरवरी तक इस प्रदर्शन के चलते स्थानीय बिजनेस को 150 करोड़ का नुकसान हुआ, शाहीन बाग के आसपास ढाई सौ से अधिक दुकानें और Outlet's बंद हो गए. 3 हजार से अधिक लोगों की नौकरियां चली गई.  

क्या टुकड़े-टुकड़े गैंग करेगा बीते नुकसान की भरपाई
सवाल उठता है कि आखिर इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा, जिन लोगों को नौकरियां गईं उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. 101 दिन रास्ता बंद होने चलते जिन्हें लाखों लोगों को रोजाना कई किलोमीटर का चक्कर लगाकर जाना पड़ा. क्या उनका कीमती समय लौट पाएगा. प्रदर्शन  की अगुवाई कर रहा टुकड़े टुकड़े गैंग क्या इन सवालों का जवाब देगा.

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