DNA ANALYSIS: असली और नकली गांधी के बीच बुनियादी अंतर को जानिए
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DNA ANALYSIS: असली और नकली गांधी के बीच बुनियादी अंतर को जानिए

नेहरू-गांधी परिवार भारत का सबसे शक्तिशाली खानदान रहा है. इस खानदान ने देश पर करीब 50 वर्षों तक राज किया है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस परिवार को नेहरू गांधी परिवार क्यों कहा जाता है?

DNA ANALYSIS: असली और नकली गांधी के बीच बुनियादी अंतर को जानिए

नई दिल्ली: दो अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती मनाई गई. सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में उन्हें याद किया गया. महात्मा गांधी का जीवन 79 वर्षों का था. लेकिन उनका जीवन अपने आप में एक युग था जिसे आप 'गांधी युग' कह सकते हैं. इस युग ने दुनिया को इस हद तक प्रभावित किया कि वो ग्लोबल ब्रांड बन गए.

महात्मा गांधी ने भारत और पूरी दुनिया को कैसे हमेशा के लिए बदल दिया. इसके बारे में आज आपको तमाम न्यूज़ चैनल और अखबार बता रहे होंगे. लेकिन आज हम आपको गांधी जी के विषय में कुछ नया बताना चाहते हैं. इस कहानी की शुरुआत होती है, गांधी सरनेम के साथ. जिसे भारत का सबसे शक्तिशाली सरनेम माना जाता है और आज भारत का जो राजनीतिक परिवार इस सरनेम का इस्तेमाल करता है, उसे तो कई लोग भारत की फर्स्ट फैमिली भी कहते हैं. नेहरू-गांधी परिवार भारत का सबसे शक्तिशाली खानदान रहा है. इस खानदान ने देश पर करीब 50 वर्षों तक राज किया है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस परिवार को नेहरू-गांधी परिवार क्यों कहा जाता है और महज गांधी सरनेम की बदौलत ये घराना इतना शक्तिशाली कैसे बन गया? इस विषय पर विश्लेषण करने का ख्याल हमें एक ट्वीट को देखकर आया, जिसे कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट किया था.

इस ट्वीट में लिखा है-

लाठियों से गांधी न तब डरे थे,
लाठियों से गांधी न अब डरेंगे
.

यानी कांग्रेस पार्टी राजनीति के गांधी परिवार की तुलना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से कर रही है और इस तुलना का आधार वो झूठ है जिसका सच कभी देश के सामने आने ही नहीं दिया गया. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी जैसे नाम सुनकर एक बार को लगता है कि ये सभी लोग शायद महात्मा गांधी के वशंज हैं या फिर इनका गांधी जी के साथ कोई गहरा संबध रहा है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है.

आज के गांधी और उस जमाने के गांधी
इंटरनेट पर जब आप गांधी सरनेम के विषय में रिसर्च करते हैं तो पता चलता है कि भारत में करीब 1 लाख 56 हजार लोग अपने नाम के आगे गांधी सरनेम लगाते हैं, ये संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन जिस तरह से इस सरनेम का दोहन एक राजनीतिक घराने ने किया है, वैसा शायद ही किसी ने किया हो.

ये बहुत बड़ी विडंबना है कि आज के दौर के गांधी बड़े-बड़े सरकारी बंगलों में रहते हैं और सुविधाओं का दोहन करते हैं, जबकि असली गांधियों को कोई जानता भी नहीं. भारत सहित दुनिया के ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि नेहरू गांधी परिवार ही महात्मा गांधी का असली वंशज हैं. लेकिन ये बात पूरी तरह से गलत है. महात्मा गांधी के वंशज कौन हैं, ये आज हम आपको बताएंगे. लेकिन उससे पहले आप ये समझ लीजिए कि आज के गांधी और उस जमाने के गांधी कैसे एक दूसरे से न सिर्फ अलग हैं, बल्कि आचरण के नजरिए से एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं.

सबसे बड़ा अंतर है परिवारवाद
अक्सर लोग समझ लेते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य महात्मा गांधी के ही रिश्तेदार हैं. ये एक तरह का फेक नैरेटिव है. इसलिए असली और नकली गांधी के बीच के बुनियादी अंतर को जानना हम सबके लिए जरूरी है.

- सबसे बड़ा अंतर है परिवारवाद यानी Dynasty. महात्मा गांधी परिवारवाद के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने अपने परिवार के लोगों को कभी भी प्रमोट नहीं किया. लेकिन नकली गांधी शुरू से ही परिवारवाद में विश्वास करते रहे हैं. नेहरू से इंदिरा गांधी, इंदिरा गांधी से राजीव गांधी, राजीव गांधी से राहुल और प्रियंका गांधी, ये एक सिलसिला है जो चल रहा है. स्थिति ये है कि गांधी परिवार के बाहर किसी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

- महात्मा गांधी हमेशा राजनीति से दूर रहे. वो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े नेता थे, लेकिन उनके लिए ये राजनीति का जरिया नहीं था. इसीलिए आजादी के बाद वो कांग्रेस पार्टी को खत्म कर देना चाहते थे. लेकिन नकली गांधियों का तो पेशा ही राजनीति है. उनका लगभग पूरा खानदान ही राजनीति में है.

- असली और नकली गांधी का तीसरा सबसे बड़ा अंतर है- पद की भूख. महात्मा गांधी ने कभी भी कोई पद नहीं लिया. वर्ष 1885 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई थी. गांधी सिर्फ एक बार वर्ष 1924 में इसके अध्यक्ष बने थे. स्वतंत्रता के बाद वो चाहते तो राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कुछ भी बन सकते थे. दूसरी तरफ नकली गांधी परिवार सिर्फ पद का भूखा है. इसी कारण कांग्रेस पार्टी आज मात्र 52 सांसदों पर सिमट गई है. फिर भी उन्होंने अध्यक्ष पद को परिवार के बाहर नहीं जाने दिया.

- चौथा सबसे बड़ा अंतर है सादगी. ये असली गांधी के जीवन का मंत्र था. वो न्यूनतम आवश्यकताओं पर आधारित जीवन जीते थे. उन्होंने कभी कोई बंगला या प्रॉपर्टी नहीं बनाई. लेकिन नकली गांधी बड़े-बड़े बंगलों में रहते हैं. उनके नाम पर दिल्ली और देश के कई शहरों में महंगी प्रॉपर्टी हैं. नकली गांधी जनता के सामने भले ही सादगी का दिखावा करते हों, लेकिन निजी जिंदगी में उनकी लाइफस्टाइल बड़ी ही शान-ओ-शौकत वाली है.

महात्मा गांधी की पारवारिक वंशावली
महात्मा गांधी हमारे आदर्श हैं. पूरा देश उन्हें राष्ट्रपिता कहता है लेकिन जब पारवारिक वंशावली का जिक्र होता है तब उनके फैमिली में आपको इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी या राहुल गांधी का नाम देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि इनका गांधी जी के असली परिवार से कोई संबंध नहीं है.

महात्मा गांधी के 4 बेटे थे. हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास. महात्मा गांधी के 154 वंशज दुनिया के 6 देशों में रह रहे हैं. इनमें से कोई डॉक्टर है, कोई प्रोफेसर है, कोई इंजीनियर है, कोई वकील है, तो कोई वैज्ञानिक है.

आपने महात्मा गांधी के वंशजों में से 3 लोगों के नाम शायद सुने होंगे. इनमें पहला नाम है, महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी का. जिन्होंने 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा था.

इसके अलावा वर्ष 2017 में उप राष्ट्रपति पद के चुनाव में महात्मा गांधी के एक और पोते गोपाल कृष्ण गांधी ने भी चुनाव लड़ा था. वो विपक्ष के उम्मीदवार थे, हालांकि वो चुनाव हार गए थे.

महात्मा गांधी के एक और परपोते तुषार गांधी ने भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई थी. उन्होंने 1992 में मुंबई से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था.

जो असली गांधी हैं, उन्हें कोई नहीं जानता
ये बहुत बड़ी विडंबना है कि गांधी सरनेम का इस्तेमाल करके लोगों ने बड़ी बड़ी सत्ताएं बना लीं. लेकिन जो असली गांधी हैं, उन्हें कोई नहीं जानता. करीब 4 वर्ष पहले मई 2016 में DNA में हमने आपको एक रिपोर्ट दिखाई थी. जिसमें हमने आपको महात्मा गांधी के पोते कनुभाई गांधी के बारे में बताया था. उस वक्त वो 87 वर्ष के थे. कनुभाई गांधी महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास गांधी के बेटे थे और अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रह रहे थे. वो 40 वर्षों तक अमेरिका में रहे और फिर 2014 में भारत लौटे. उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्हें वृद्ध आश्रम में रहना पड़ा.

2016 में दो महीने तक वो दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रहे और उसके बाद सूरत के एक वृद्धाश्रम में चले गए. लेकिन नवंबर 2016 में हार्ट अटैक की वजह से उनकी मृत्यु हो गई.

आपको जानकर हैरानी होगी कि कनुभाई ने अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA और अमेरिका के डिफेंस डिपार्टमेंट में भी काम किया था.

लेकिन अफसोस इस बात का है कि इतना शानदार काम करने के बाद भी इन दोनों को अपना अंतिम समय वृद्ध आश्रम में बिताना पड़ा और जीवन की विषमताओं के बीच कनुभाई गांधी की मृत्यु हो गई. गांधी सरनेम लगाकर राजनीति करने वालों ने इस शब्द को ही हाईजैक कर लिया, जबकि असली गांधी की बात कोई नहीं करता. 

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा में काम कर चुके कनुभाई गांधी को जब अपने दादा महात्मा गांधी का घर याद आया, तो अपनी पत्नी के साथ देश लौट आए, कुछ वक्त सूरत के आश्रम बिताया और फिर कुछ दिनों पहले दिल्ली के पास इस वृद्धाश्रम में आ गए.

कनुभाई गांधी महात्मा गांधी के काफी करीब रहे हैं, इतने वर्षों तक गांधी के ही विचारों ने उन्हें सात समंदर पार भी देश से जोड़े रखा, लेकिन जब वो देश लौट आए तो न तो राजनीतिक गांधी उनकी सुध लेने पहुंचे और न ही उनके अपने.

हालांकि ज़ी न्यूज़ पर जब कनुभाई गांधी की तकलीफ दिखाई गई तो पूरा देश कनुभाई की मदद के लिए आगे आने लगा था.

Zee News की मुहिम के बाद 2016 में ही तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, कनुभाई की पत्नी से मुलाकात करने पहुंचे थे और तब खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कनुभाई से फोन पर काफी देर तक बातचीत की, गुजराती में उनका हाल चाल जाना और कुछ पुरानी यादों को साझा किया.

कनुभाई गांधी महात्मा गांधी के बेटे रामदास की संतान थे, कनुभाई और शिवा लक्ष्मी की अपनी कोई औलाद नहीं थी. हालांकि आश्रम में मिले प्यार ने कुछ हद तक ये कमी पूरी कर दी थी. लेकिन महात्मा गांधी और उनके विचारों को लाठी बनाकर सियासी सड़क पर चलने वाले देश के राजनीतिक गांधियों ने असली गांधी की सुध कभी नहीं ली.

कनुभाई गांधी सिर्फ इतना चाहते थे कि राजनीति करने वाले चाहें तो उनकी मदद ना भी करें, लेकिन गांधी के नाम का सिर्फ राजनीतिक इस्तेमाल न हो, बल्कि सच में राजनीति के गांधी असली गांधी से सन्मति हासिल करें. लेकिन अफसोस ऐसा हो नहीं पाया.

स्पेलिंग में फेरबदल
कहते हैं कि जब आप किसी शब्द की स्पेलिंग में कोई गलती कर देते हैं या इसमें कोई बदलाव कर देते हैं तो इसका मतलब पूरी तरह से बदल जाता है.

उदाहरण के लिए अगर आप दिवाली शब्द में ल पर ई की जगह आ की मात्रा लगा दें तो वो दिवाला हो जाता है जो बर्बादी और कंगाल हो जाने का सूचक है. इसी प्रकार अंग्रेजी का एक शब्द है, आइडल यानी IDOLजिसका अर्थ होता है आदर्श. इसकी स्पेलिंग है I.D.O.L अगर आप इसमें O को हटा दें और L के आगे E लगा दें तो इसका उच्चारण तो आइडल ही होता है लेकिन इसका अर्थ बदल जाता है. इस नई स्पेलिंग के साथ आइडल का अर्थ हो जाता है बेकार, निष्क्रिय या आलसी.

लेकिन क्या स्पेलिंग में ऐसे ही फेरबदल करके, किसी अर्थ के अलावा किसी देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को भी बदला जा सकता है ? गांधी परिवार के संदर्भ में देखेंगे तो इसका जवाब हां में ही नजर आता है. गांधी सरनेम के सहारे आज राजनीति का गांधी परिवार अपनी तुलना महात्मा गांधी के संघर्षों से करता है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की संतानें है. जैसा कि आप जानते होंगे राजीव गांधी की मां इंदिरा गांधी थीं. राजीव गांधी के पिता का नाम फिरोज जहांगीर गांधी था यानी राजीव गांधी को ये सरनेम उनके पिता फिरोज गांधी से मिला था. लेकिन क्या फिरोज गांधी का सरनेम वाकई में गांधी था ?

 फिरोज जहांगीर गांधी का बर्थ सर्टिफिकेट
स्वीडन के एक मशहूर लेखक बर्टिल फॉक ने कुछ वर्ष पहले फिरोज जहांगीर गांधी को लेकर एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है, फिरोज द फॉरगॉटेन गांधी. इसमें वो लिखते हैं कि फिरोज गांधी का जन्म बॉम्बे के एक पारसी परिवार में हुआ था और उनके पिता का नाम जहांगीर फरदूस जी गांधी था.

हमें फिरोज जहांगीर गांधी का एक बर्थ सर्टिफिकेट यानी जन्म प्रमाण पत्र भी मिला है. इस बर्थ सर्टिफिकेट के मुताबिक उनका जन्म 12 सितंबर 1912 को हुआ था. इस जन्म प्रमाण पत्र में उनके पिता का नाम लिखा है, Jehangir Furdoos Ji Ghandhy और मां का नाम लिखा है रतन बाई. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो इसमें गांधी की स्पेलिंग G.A.N.D.H.I नहीं बल्कि G.H.A.N.D.H.Y लिखी है. इस जन्म प्रमाण पत्र के मुताबिक बॉम्बे के जिस अस्पताल में उनका जन्म हुआ था उसका नाम है, पारसी लाइंग इन हॉस्पिटल

ये अस्पताल 1960 के दशक में बंद हो गया था. जिस पुस्तक का हमने जिक्र किया उसके लेखक का दावा है कि जब फिरोज गांधी राजनीति में सक्रिय हो गए और उनकी भूमिका बढ़ने लगी तो उस समय के अखबारों ने उनके नाम की स्पेलिंग को GHANDHY से बदलकर GANDHI कर दिया.

उदाहरण के लिए 8 दिसंबर 1933 को उस समय के द लीडर नाम के एक अंग्रेजी अखबार में इलाहाबाद में फिरोज गांधी की गिरफ्तारी की खबर छपी थी. इस खबर की हेडलाइन में Feroze GHANDHY की जगह Feroze GANDHI लिखा हुआ था. अखबार में छपी उस खबर की एक तस्वीर इस समय आपकी स्क्रीन पर है।

यानी उस समय के मीडिया ने फिरोज GHANDHY के नाम में मिलावट की शुरुआत कर दी थी. हालांकि फिरोज GHANDHY फिरोज GANDHI कैसे बने. इसे लेकर अलग अलग लेखकों और इतिहासकारों की राय अलग अलग है. कुछ लोग ये भी दावा करते हैं कि फिरोज GHANDY ने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अपना सरनेम बदला था.

गांधी सरनेम से से जुड़ी कई अहम जानकारियां भी हैं. इससे जुड़े कुछ और तथ्य हम आपको बताएंगे. लेकिन पहले ये समझ लीजिए कि जब फिरोज जहांगीर गांधी का सरनेम GHANDHY से बदलकर गांधी हो गया तो कैसे ये सरनेम उनके परिवार के नाम के साथ भी हमेशा के लिए जुड़ गया और कैसे आज का गांधी परिवार नाम की स्पेलिंग में हुए इसी हेर फेर को आधार बनाकर खुद को असली गांधी बताता है.

फिरोज जहांगीर Ghandhy की फैमिली ट्री 
फिरोज जहांगीर Ghandhy की फैमिली ट्री को देखें तो उनके पिता का नाम जहांगीर फरदूसजी Ghandhy और मां का नाम रतिमाई Ghandhy था.

उनके पिता जहांगीर Ghandhy पेशे से मरीन इंजीनियर थे. जहांगीर फरदूसजी गुजरात के भरूच से थे, जबकि उनकी मां रतिमाई सूरत से थीं. फिरोज Ghandhy पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे, फिरोज के दो भाई दोराब Ghandhy और फरीदून जहांगीर Ghandhy थे. उनकी दो बहनें थीं जिनका नाम था-तेहमिना करशप और अलू दस्तूर . गांधी जयंती के दिन फिरोज जहांगीर Ghandhy की वंशावली बताने का मकसद यही है कि फिरोज जहांगीर Ghandhy का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी या उनके परिवार से खून का रिश्ता नहीं था और न ही कोई संबध अगर फिरोज जहांगीर Ghandhy की फैमिली ट्री में कोई पूरी तरह फिट बैठता है वो है राजीव गांधी, संजय गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और वरुण गांधी.

फिरोज जहांगीर Ghandhy का पुराना मकान गुजरात के भरूच शहर में है. जहां पर वो पहले रहते थे. फिलहाल इस मकान में ताला लगा हुआ है. राहुल गांधी यदि कभी भरूच जाते हैं तो उन्हें यहां जरूर जाना चाहिए. हो सकता है, उन्हें यहां अपने खानदान को जानने और समझने का मौका मिले.

दादा फिरोज गांधी को कभी ट्विटर पर याद नहीं किया
राहुल और प्रियंका हर मुद्दे पर  ट्विटर पर सक्रिय रहते हैं. देश के महापुरुषों को जयंती और पुण्यतिथि पर याद करते हैं, परनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू हों या दादी इंदिरा गांधी, उन्हें हमेशा याद करते हैं लेकिन दादा फिरोज गांधी को कभी उन्होंने ट्विटर पर याद नहीं किया.

राहुल गांधी ने ट्विटर वर्ष 2015 में जॉइन किया था और 4 हजार 9 सौ से अधिक Tweet कर चुके हैं, लेकिन इनमें एक भी ट्वीट दादा फिरोज गांधी पर नहीं है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्विटर फरवरी 2019 में जॉइन किया था. वो 1 हजार से ज्यादा ट्वीट कर चुकी हैं लेकिन कभी भी उन्होंने अपना दादा को ट्वीट करके याद नहीं किया.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार के लिए प्रयागराज गईं थी तब अपने पुश्तैनी घर आनंद भवन में रुकी थीं लेकिन वहां से 3 किलोमीटर दूर फिरोज गांधी की समाधि तक वो नहीं गईं. राहुल गांधी वर्ष 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अपने दादा की समाधि पर गए थे.

गांधी परिवार, पारसी है या फिर हिंदू ?
फिरोज गांधी की गुमनामी तलाश करते हुए पिछले वर्ष हम प्रयागराज के पारसी कब्रिस्तान तक पहुंचे थे. यहां 100 से ज्यादा कब्रें मौजूद हैं और इन्हीं में से एक कब्र है, फिरोज गांधी की. राजनीतिक हितों की खातिर फिरोज गांधी को जीते जी और फिर उनकी मृत्यु के बाद भी गुमनामी के अंधेरे में पहुंचा दिया गया.

अपने आप को दत्तात्रेय गोत्र का कौल ब्राह्मण बताने वाले राहुल गांधी के दादा फिरोज जहांगीर की कब्र प्रयागराज के मम्फोर्डगंज इलाके में मौजूद है. जिसे फिलहाल गांधी परिवार भूला चुका है.

ये एक पारसी कब्रिस्तान है यहां 100 से ज्यादा पारसी कब्रे हैं और उन्हीं में से एक कब्र है फिरोज जहांगीर गांधी की. Zee news की टीम जब इस कब्रिस्तान में पहुंची, तो इस कब्र पर सफाई का काम शुरू हो गया. पीढ़ियों से इस कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले लोग फिरोज गांधी की कब्र के बारे में कहते हैं कि दूसरे परिवार के लोग आते हैं वो नहीं आते, पुण्यतिथि वगैरह पर कांग्रेस वाले आते हैं.

प्रयागराज के स्थानीय लोगों के मन में भी ये सवाल है कि गांधी परिवार के लोग, फिरोज जहांगीर गांधी की कब्र को क्यों भूल गए हैं ? 

हमारी मुलाकात पंडित मदन लाल शर्मा से हुई. ये कश्मीरी ब्राह्मणों के तीर्थ पुरोहित हैं. उनके पास नेहरू खानदान के हर सदस्य की पूरी जानकारी है.

प्रयागराज में कांग्रेस के नेता भी ये स्वीकार करते हैं कि फिरोज गांधी पारसी थे और उनके पूर्वज ईरान से आए थे. लेकिन कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि फिरोज गांधी से शादी के बाद भी इंदिरा गांधी पारसी नहीं बल्कि हिंदू ही थीं. लेकिन कश्मीरी ब्राह्मणों और नेहरू परिवार के पुरोहित मदन लाल शर्मा ये मानते हैं कि फिरोज गांधी पारसी थे. इस हिसाब से उनके पुत्र राजीव गांधी भी पारसी थे. लेकिन गांधी परिवार हिंदू परंपराओं को मानता है.

अगर एक तरह से देखा जाए तो ये बहस आज तक जारी है कि गांधी वंश को नेहरू वंश कहा जाए या फिरोज जहांगीर वंश कहा जाए. गांधी परिवार, पारसी है या फिर हिंदू ?

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