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श्रीनगर: 1990 के दशक में हजारों-लाखों कश्मीरी पंडितों को कश्मीर (Kashmir) छोड़ना पड़ा था. इतना ही नहीं उस दौर में बड़ी संख्या में प्राचीन हिंदू मंदिरों को भी नुकसान पहुंचाया गया था. इनमें से ज्यादातर मंदिर 8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे. इनमें अकेले श्रीनगर (Srinagar) में 57 और अनंतनाग (Anantnag) में 56 मंदिरों को तोड़ा गया था.
इसके बाद वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाई जिसने जम्मू-कश्मीर में बंद पड़े या टूट चुके मंदिरों की गिनती की थी, इनमें से ज्यादातर मंदिर आतंकवादियों के डर की वजह से बंद कर दिए गए थे. अब इसी लिस्ट के आधार पर जम्मू-कश्मीर में तोड़े गए मंदिरों का पुनरुद्धार किया जाएगा और बंद पड़े मंदिरों को फिर से खोला जाएगा. आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर सबसे पहले जम्मू-कश्मीर के 75 धार्मिक स्थलों का पुनरुद्धार किया जाएगा.
इन्हीं में से एक है अनंतनाग में मौजूद Bomzuva गुफा, जो भगवान शिव को समर्पित है. 12वीं शताब्दी में इस गुफा के अंदर मौजूद मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित किया गया था जिसे 1990 के दौर में नुकसान पहुंचाया गया था. इसके बाद इस शिवलिंग को Archaeological Survey Of India यानी ASI ने अपने कब्जे में ले लिया और इसके बदले में गुफा के मुख्य प्रवेश द्वार पर दो नए शिवलिंग वैकल्पिक पूजा के लिए स्थापित कर दिए गए. लेकिन आज भी कश्मीर के लोग असली शिवलिंग की वापसी का इंतजार कर रहे हैं. आपमें से शायद बहुत कम लोगों को Bomzuva गुफा की ये कहानी पता होगी.
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कश्यप ऋषि के कश्मीर का इतिहास अखंड भारत के इतिहास से जुड़ा है. यहां के मंदिरों की निर्माण शैली भारत के अन्य हिस्सों में बने मंदिरों की शैली से बिल्कुल अलग है. जब 12वीं शताब्दी में ललितादित्य मंदिरों का निर्माण करवा रहे थे उस वक्त भी कश्मीर में पहले से ही कई मंदिर मौजूद थे.
ये अनंतनाग की बुमजुवा गुफा है जिसमें छोटा सा शिव मंदिर है. ये 7वीं शताब्दी का बताया जाता है. हमारी टीम ने इस मंदिर को बड़ी मुश्किल से तलाशा. बुमजुवा गुफा अनंतनाग से 7 किमी दूर है. इसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं लेकिन यहां मौजूद शिव मंदिर की बहुत मान्यता थी. इसके ऐतिहासिक महत्व की वजह से ही ये ASI की निगरानी में है.
7वीं शताब्दी से पहले ही ललितादित्य ने जब कश्मीर में बहुत से मंदिरों का निर्माण कराया था. उससे भी ज्यादा पुरानी गुफा है. शिवलिंग स्थापित हुआ करता था. 90 के दशक में जब मंदिर तोड़े गए थे, नुकसान पहुंचाया गया था, उनमें से एक मंदिर ये भी है. ASI की निगरानी में ये मंदिर आता है लेकिन वो लोग यहां आते नहीं है. यहां पर आए दिन नशा करने वाले बैठे होते हैं. शिकायतें भी की गईं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.
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बता दें कि मंदिर के परिसर में घुसते हुए 2 शिवलिंग यहां नजर आते हैं. श्रद्धालु इन्हीं शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं. लेकिन ये शिवलिंग की असली जगह नहीं है. इस मंदिर के ऊपरी स्थान पर असली शिवलिंग हुआ करता था, जो 90 के दशक में आतंकियों की कट्टरता का शिकार बन गया.
मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग को ASI की टीम अपने साथ ले गई. लेकिन यहां शिवलिंग को दोबारा स्थापित नहीं किया गया. मंदिर की स्थिति में भी कोई सुधार नहीं किया गया. तोड़फोड़ के बाद का जिस हालत में मलबा फेंका गया था उसे वैसा ही छोड़ दिया गया.
कश्मीर घाटी के ही ऐसे 792 मंदिर हैं, जिनको 90 के दशक के बाद किसी ना किसी तरीके से नुकसान पहुंचाया गया और उसी वजह से वो बंद हैं. इसमें अनंतनाग के 208 और श्रीनगर के 178 मंदिरों के अलावा कुल 11 जिलों के 792 मंदिर किसी ना किसी कारण से बंद पड़े हैं.
बता दें कि कश्मीर घाटी में मंदिरों के हालात सुधारने के लिए राज्य सरकार की ओर से गंभीर पहल कभी नहीं की गई. अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब यहां बसे कश्मीरी पंडितों की मांग है कि जीर्ण-शीर्ण हालत में मौजूद घाटी के मंदिरों को फिर से उनकी भव्यता वापस दिलाई जाए.
कश्मीर के ऐतिहासिक मंदिर ही यहां के लोगों को उनकी असली जड़ों की ओर ले जाते हैं. भले ही आतंक का दौर झेलकर दर-बदर हो चुके कश्मीरी पंडितों ने अपनी आंखों से धार्मिक स्थलों की बर्बादी देखी थी. लेकिन अब जब हालात सामान्य हुए हैं तो वो फिर से इन्हें बनते देखना चाहते हैं.
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