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नई दिल्ली: अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन (Antony Blinken) बुधवार को दिल्ली में थे और इस दौरान उनकी सबसे मुलाकात हुई. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. विदेश मंत्री एस. जयशंकर से उनकी मुलाकात हुई और भारत के National Security Advisor अजीत डोभाल के साथ भी उन्होंने बैठक की. इन सभी बैठकों में भारत और अमेरिका के बीच सहयोग को बढ़ाने पर बात की गई. लेकिन इस सबके बीच एक और बैठक हुई, जिस पर बहुत कम लोगों ने गौर किया. ये बैठक एंटनी ब्लिंकन और भारत की सिविल सोसायटी के लोगों के बीच हुई.
इसमें सामाजिक कार्यकर्ता, वकील और दलाई लामा के प्रतिनिधि शामिल हुए. इस छोटी सी बैठक में अमेरिका के विदेश मंत्री ने भारत के आंतरिक मुद्दों पर बात की. ये मुद्दे थे.. मीडिया की स्वतंत्रता, भारत सरकार के कृषि कानून, जिनके खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन कर रहे हैं, इसके अलावा लव जिहाद, नागरिकता संशोधन कानून और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर भी इस बैठक में चर्चा की गई.
ये वो मुद्दे हैं, जिनका अमेरिका से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन ये अमेरिका की बहुत पुरानी आदत है, जिसमें वो अपनी ऑफीशियल विजिट को एक तरह के औचक निरीक्षण में बदल देता है और फिर बताता है कि किस देश का लोकतंत्र कितना स्वस्थ है और उसमें कितनी कमियां हैं. और अमेरिका के विदेश मंत्री ने भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाया है.
लेकिन हमारा सवाल ये है कि अगर भारत के विदेश मंत्री अमेरिका के दौरे पर जाएं और वहां की सिविल सोसाइटी के लोगों से नस्लवाद, अश्वेत नागरिकों के खिलाफ हिंसा, गन कल्चर और ब्लैक लाइव्स मैटर (Black Lives Matter) के मुद्दे पर बात करें तो अमेरिका का रुख क्या होगा. क्या अमेरिका ये बर्दाश्त करेगा कि भारत उसके आंतरिक मामलों में दखल दे और इन मुद्दों पर अपनी राय दे? सच्चाई ये है कि अमेरिका इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा.
इसी साल जब मई के महीने में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर अमेरिका के दौरे पर गए थे तो उन्होंने वहां अमेरिका के विदेश मंत्री और दूसरे अधिकारियों के साथ मुलाकत की थी और इसके तुरंत बाद वो भारत लौट आए थे. तब उन्होंने अमेरिका के विदेश मंत्री की तरह, वहां ब्लैक लाइव्स मैटर की मुहिम चला रहे लोगों से मुलाकात नहीं की थी और न ही उन्होंने अमेरिका की संसद में 6 जनवरी को भड़की हिंसा पर कोई एक्सपर्ट कमेंट किया था.
भारत चाहता तो वो भी एक अंपायर की तरह अमेरिका को उसकी गलतियां बता सकता था और उसके आंतरिक मामलों पर नैतिकता और लोकतंत्र का पाठ पढ़ा सकता था. लेकिन हमारे देश ने ऐसा नहीं किया. क्योंकि भारत जानता हैं कि किसी देश के आंतरिक मामलों पर उपदेश देना, उस देश की सम्प्रभुता को चुनौती देने जैसा होता है. लेकिन अमेरिका इस बात को नहीं समझता.
अमेरिका वैसे तो खुद को दुनिया में लोकतंत्र का चैम्पियन मानता है लेकिन वो ये भूल जाता है कि एक स्वतंत्र और संवैधानिक देश के आंतरिक मामलों में दख़ल देना भी अलोकतांत्रिक होता है. भारत में सिविल सोसाइटी के लोगों से मुलाकात के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका से शुरू होकर आज हर देश का लोकतंत्र परिपक्व होने की राह पर है. अब सवाल है कि जब सभी देशों का लोकतंत्र परिपक्व होने की राह पर है तो अमेरिका भारत के आंतरिक मामलों में दखल क्यों देता है? और भारत के लोकतंत्र का उपचार करने के लिए डॉक्टर क्यों बन जाता है?
हालांकि हमें सूत्रों से पता चला है कि भारत ने इस पूरे मामले पर कड़ा रुख दिखाया है और कहा है कि मानव अधिकारों का मुद्दा पूरी दुनिया के लिए एक है. और भारत को गर्व है कि उसने इन मुद्दों पर शानदार काम किया है और हमारा देश.. इस पर दूसरे देशों की मदद करने के लिए भी तैयार है.