भारत सरकार ने आज कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच समय को बढ़ा दिया है. साथ ही ये बताया है अगले हफ्ते से स्पूतनिक वी की बिक्री भारत में शुरू हो जाएगी. इसके अलावा खबर पढ़कर आप जान पाएंगे कि कौन सी कोरोना वैक्सीन ज्यादा प्रभावी है.
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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन (NTAGI) द्वारा की गई 7 सिफारिशों में से एक पर मुहर लगा दी. इसके तहत अब कोविशील्ड (Covishield) वैक्सीन की दो डोज के बीच 12 से 16 हफ्ते का अंतर होगा, जो पहले 6 से 8 हफ्ते हुआ करता था. अब आपके मन में ये सवाल होगा कि केंद्र ने ये फैसला कहीं वैक्सीन की कमी के कारण तो नहीं लिया? तो अब हम आपको इसके बारे में बताते हैं.
वैक्सीन की दो डोज के बीच कितना अंतर होना चाहिए ये फैसला सरकार पर नहीं बल्कि वैज्ञानिकों पर निर्भर करता है. इसके लिए NTAGI बनाया गया है. कल इस समूह के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में 7 बातें कही थीं, और वैक्सीन की दो डोज के बीच समय बढ़ाने की सिफारिश भी इसी का हिस्सा थी. वैज्ञानिकों की इसी रिसर्च के आधार पर सरकार ने ये निर्णय लिया, और कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच समय को बढ़ा दिया गया. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर वैक्सीन की दो डोज के बीच ज्यादा अंतर हो तो इससे वैक्सीन का असर प्रभावी रहता है. यानी ऐसा कहना गलत होगा कि वैक्सीन की कमी के कारण ये समय अवधि बढ़ाई गई है.
बड़ी बात ये है कि जिस कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच ये समय बढ़ाया गया है, वो वैक्सीन दूसरे देशों में भी लग रही है. ब्रिटेन में इस वैक्सीन की दो डोज के बीच 12 हफ्तों का समय रखा गया है. ब्राजील में भी इसकी दो डोज 12 हफ्तों के समय अंतराल पर लगाई जा रही हैं. बांग्लादेश में ये समय 8 से 12 हफ्ते है. स्पेन में 12 से 16 हफ्ते है. जबकि यूरोप के दूसरे देशों में भी इस वैक्सीन की दो डोज के बीच 12 हफ्तों का समय रखा गया है. यानी ऐसा नहीं है कि अकेले भारत में कोविशील्ड की दो डोज 12 से 16 हफ्तों के बीच लगेंगी. कई देशों में ऐसा ही हो रहा है. हां भारत ने ये फैसला काफी देरी से लिया और सरकार का कहना है कि पहले इस पर हमारे देश के वैज्ञानिकों की सहमति नहीं थी.
सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो दिसंबर तक देश में 216 करोड़ वैक्सीन की डोज उपलब्ध होंगी. यानी दिसंबर तक देश की 80 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की दोनों लग चुकी होंगी. सरकार ने ये जानकारी ऐसे समय में दी है जब कई तरह की स्टडी में ये अनुमान लगाया गया है कि भारत में आधी आबादी को ही वैक्सीन लगाने में ढाई साल का समय लग सकता है. ऐसे में अगर आपको लग रहा है कि आपको वैक्सीन नहीं लग पाएगी, तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है. रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी (Sputnik-V) अगले हफ्ते से राज्य सरकारों और प्राइवेट अस्पतालों के लिए उपलब्ध हो जाएगी. यानी अब आपके पास कोरोना वायरस के खिलाफ दो नहीं तीन वैक्सीन मौजूद होंगी.
यहां जो बात आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है, वो ये कि स्पूतनिक वी का इफिसी रेट ( Efficacy Rate) सबसे ज्यादा है. ये 91.6 प्रतिशत है. जबकि भारत में बनी कोवैक्सीन का इफिसी रेट 81 प्रतिशत है, और कोविशील्ड 70.4 प्रतिशत प्रभावी है. यहां एक बात हम आपको स्पष्ट कर दें कि इफिसी रेट ट्रायल के नतीजों के आधार पर तय होता है. लेकिन वैक्सीन का सक्सेस रेट (Success Rate) तभी पता चलता है, जब वो लोगों को लगाई जाती है.
आप एक बार फिर से ये जानकारी नोट कर सकते हैं कि अब से कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच 12 से 16 हफ्तों का समय होगा. यानी पहली डोज के बाद आपको कोविशील्ड की दूसरी डोज 84 से 112 दिनों में लगवानी है. लेकिन कोवैक्सीन की दो डोज के बीच समय पहले जैसा ही है. इसकी दो डोज 4 से 6 हफ्तों के बीच आपको लगवानी है. हालांकि बहुत से लोग ये पूछ रहे हैं कि अगर उन्होंने पहली डोज लगवा ली है और दूसरी डोज वो नहीं लगवा पा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना है? तो आज हम आपके इस सवाल का जवाब भी लेकर आए हैं.
पहली बात अगर आपने वैक्सीन की पहली डोज ले ली है और दूसरी डोज आपको नहीं लग पा रही है तो आपको घबराना नहीं है. आपको सबसे पहले ये समझना है कि वैक्सीन की दूसरी डोज क्यों लगाई जाती है? बहुत से लोगों को लगता है कि कुछ हफ्तों के बाद पहली डोज का असर शरीर में खत्म हो जाता है, इसलिए दूसरी डोज लगवानी होती है. जबकि ये जानकारी पूरी तरह गलत है. सही जानकारी ये है कि पहली डोज का शरीर में असर बना रहता है, और दूसरी डोज इसलिए लगाई जाती है ताकि आपके शरीर में वायरस के खिलाफ तैयार किया गया रक्षा कवच और मजबूत हो जाए. दो डोज इसलिए हैं क्योंकि ये वायरस से डबल ताकत के साथ लड़ती हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पहली डोज का असर खत्म हो जाता है इसलिए दूसरी डोज लगाई जाती है.
इसलिए सबसे पहले आपको घबराना नहीं है. अगर दूसरी डोज लगने में देरी हो रही है तो आप इसके लिए इंतजार कर सकते हैं. अब तो वैज्ञानिकों ने कोविशील्ड की दो डोज के बीच समय भी बढ़ा दिया है. दूसरी बात अगर आपको वैक्सीन की दूसरी डोज के लिए अपने घर के आसपास अपॉइंटमेंट नहीं मिल रही है तो आप दूसरे इलाकों और राज्यों में भी वैक्सीन लगवाने के लिए अपॉइंटमेंट ले सकते हैं. इस दौरान बस आपको एक ही बात का ख्याल रखना है कि आपको उसी वैक्सीन की दूसरी डोज लगे जिसकी पहली डोज लगी थी. तीसरी बात अगर आप तय समय में दूसरी डोज नहीं लगवा पाते तो इस स्थिति में भी आपको कोई खतरा नहीं है. वैज्ञानिकों का कहना है जो समय अभी दो डोज के बीच बताया गया है वो इसलिए है ताकि वैक्सीन प्रभावी बनी रहे. इसलिए पहली कोशिश आपको ये करनी है कि तय समय में दूसरी डोज लग जाए और अगर समय निकल जाता है तो भी आपको डरना नहीं है. डॉक्टरों का कहना है कि आप 2 से 4 हफ्तों की देरी से भी दूसरी डोज़ लगवा सकते हैं.
आज बच्चों के लिए भी एक शुभ समाचार है. वो ये कि बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन के ट्रायल को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने मंजूरी दे दी है. भारत बायोटेक (Bharat Biotech) के प्रस्ताव पर एक्सपर्ट कमेटी ने कल 2 से 18 साल के बच्चों के लिए वैक्सीन के परीक्षण की अनुमति मांगी थी. इस परीक्षण में 515 बच्चे बतौर वॉलेंटियर हिस्सा लेंगे. इनकी उम्र 2 से 18 साल के बीच होगी. इन बच्चों के शरीर में सिरिंज के जरिए वैक्सीन की दो डोज इंजेक्ट की जाएंगी. इन दो डोज के बीच 28 दिन का अंतर होगा. भारत बायोटेक का ये ट्रायल अगले हफ्ते से शुरू हो सकता है.
अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगस्त या सितंबर तक बच्चों के लिए भी वैक्सीन आ सकती है. बताते चलें कि भारत में कुल आबादी का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा 18 साल से कम उम्र के बच्चों का है. जबकि 11 से 17 साल की उम्र के बच्चों की आबादी साढ़े 17 करोड़ है. इसीलिए ये एक शुभ समाचार है. इस समय देश में वैज्ञानिक कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं. इससे सबसे बड़ा खतरा बच्चों को ही है. ऐसे में अगर तीसरी लहर से पहले बच्चों के लिए कोई वैक्सीन आ जाती है तो इस खतरे से हमारा देश ज्यादा बेहतर तरीके से लड़ पाएगा.
आज कल आप बहुत लोगों को ये कहते हुए सुनते होंगे कि अस्पतालों में लोगों को लूटा जा रहा है. बड़ी-बड़ी कंपनियां पैसा कमा रही हैं. बीमा कंपनियां इंश्योरेंस पॉलिसी बेच रही हैं. दवाइयां और मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियों की सेल बढ़ गई है. इस तरह की बातें आज कल आप बहुत सुनते हैं. लेकिन जो समझने वाली बात है वो ये कि इस मुसीबत की घड़ी में आम आदमी का क्या कर्तव्य बनता था. आम आदमी से हमारा मतलब ऐम्बुलेंस के ड्राइवरों से है, सब्जी बेचने वालों से है, केमिस्ट शॉप चलाने वालों से है, श्मशान घाट और कब्रिस्तान में काम करने वालों से हैं और उन बाकी सभी लोगों से है, जो भले ही छोटा-मोटा रोजगार करते हैं. लेकिन हमारी रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े रहते हैं. इन लोगों को ऐसे समय में क्या करना चाहिए था? संकट को देखते हुए इन्हें लोगों की मदद करनी चाहिए थी, लेकिन दुर्भाग्यवश आज ये लोग आपसे पैसा कमा रहे हैं.
यानी जो समय एक दूसरे के काम आने का था, उस समय में ये लोग कमाई कर रहे हैं. इस सप्लाई चेन से जुड़े लोग आपसे पैसा बनाने में जुटे हुए हैं. इन लोगों को आपकी मजबूरी में अपना मुनाफा नजर आ रहा है. ऐम्बुलेंस के ड्राइवर मरीजों से मनमाने पैसे वसूल रहे हैं. सब्जी बेचने वाले उन सभी चीजों को ऊंची कीमतों पर बेच रहे हैं, जिनकी मांग ज्यादा है. इन लोगों को जैसे ही पता चला कि नारियल पानी, नींबू और आंवला में विटामिन सी, कैल्शियम और फाइबर भरपूर मात्रा में होता है, तभी से इन चीजों की कीमतें बढ़ गई हैं. कई परिवारों का कहना है कि वो अब नींबू नहीं खरीद रहे हैं क्योंकि इससे उनका खर्चा बहुत हो रहा है. लोगों का कहना है कि वो पहले अपना पेट भरें या इन चीजों से Vitamin-C की मात्रा पूरी करें?
सोचिए पहले हमारे देश का समाज इसलिए पहचाना जाता था क्योंकि यहां लोग एक दूसरे के प्रति काफी सजग रहते थे, और मदद पड़ने पर एक दूसरे का हाथ भी बंटाते थे. लेकिन आज समाज की रुपरेखा बदल गई है और अब बहुत से लोग अपना हाथ मदद देने के लिए नहीं बढ़ाते, बल्कि पैसे लेने के लिए उन हाथों का इस्तेमाल करते हैं. इसे भी आप इस उदाहरण से समझिए.
इस समय अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों पर कतार लगी है. इस वजह से लकड़ियों की कीमतें बढ़ गई हैं. एक अनुमान के मुताबिक एक शव के अंतिम संस्कार में 7 से 9 मन लकड़ी की जरूरत होती है. एक मन का मतलब है 40 किलोग्राम यानी इस हिसाब से 300 से साढ़े 300 किलोग्राम लकड़ी की जरूरत होती है. पहले श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए 10 रुपये किलोग्राम में लकड़ी मिल जाती थी और पूरा खर्च आता था ढाई से 3 हजार रुपये. लेकिन अब ये खर्च 6 से 7 हजार रुपये हो गया है. क्योंकि लकड़ियों की जमाखोरी हो रही है. सरल शब्दों में कहें तो आज सस्ते से सस्ता अंतिम संस्कार भी 7 से 8 हजार रुपये में होता है और कई लोगों के लिए इतने पैसे जुटाना आसान काम नहीं है. शायद हो सकता है कि इसी वजह से लोग गंगा नदी में अपनों की लाशें बहा रहे हैं. ऐसी संभावना है.
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