DNA ANALYSIS: क्या राजनीति से होगी दागी उम्मीदवारों की सफाई?
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DNA ANALYSIS: क्या राजनीति से होगी दागी उम्मीदवारों की सफाई?

 सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है कि अगर अब कोई राजनीतिक दल किसी दागी उम्मीदवार को लोकसभा या विधानसभा चुनाव में टिकट देता है तो उसे मीडिया में इसका ब्योरा देना होगा.

DNA ANALYSIS: क्या राजनीति से होगी दागी उम्मीदवारों की सफाई?

आज का दिन भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े फैसले का दिन है. सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है कि अगर अब कोई राजनीतिक दल किसी दागी उम्मीदवार को लोकसभा या विधानसभा चुनाव में टिकट देता है तो उसे मीडिया में इसका ब्योरा देना होगा, और अगर ऐसा नहीं किया गया तो ये माना जाएगा कि उस राजनीतिक दल ने कोर्ट की अवमानना की है. कोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक दलों को 48 घंटों के अंदर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का विस्तृत ब्योरा 3 प्रमुख टीवी न्यूज चैनलों और 3 प्रमुख अखबारों को देना होगा.

ताकि वो इसे दिखा सकें और प्रकाशित कर सकें. विस्तृत ब्योरे का मतलब है, राजनीतिक दलों को ये बताना होगा कि उनके उम्मीदवार के खिलाफ कितनी FIR दर्ज हुई है, कहां-कहां FIR दर्ज हुई है, किन धाराओं में FIR दर्ज हुई है, आरोप तय हुआ है या नहीं और अगर आरोप तय हो गया है तो मुकदमे की सुनवाई कहां तक पहुंची है. 

इतना ही नहीं राजनीतिक दलों को 72 घंटों के अंदर चुनाव आयोग को भी हलफनामा देकर ये बताना होगा कि ऐसे दागी उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया गया ? किसी ऐसे प्रत्याशी को टिकट क्यों नहीं दिया गया, जिसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होगी.  लेकिन अगर कोई राजनीतिक दल कोर्ट के आदेश के मुताबिक ब्योरा नहीं देता है तो इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना जाएगा. 
सुप्रीम कोर्ट ने आज ये भी कहा कि पिछले 4 लोकसभा चुनावों को देखकर लगता है कि राजनीति का अपराधीकरण लगातार बढ़ता ही जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने जिन आंकड़ों के आधार पर ये बात कही, उसे आप भी देख लीजिए. 

वर्ष 2004 की लोकसभा में 24% सांसद ऐसे थे, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. वर्ष 2009 की लोकसभा में 30% सांसद दागी थे. वर्ष 2014 में ऐसे सांसदों की संख्या 34% थी. जबकि मौजूदा लोकसभा में 43% सांसद ऐसे हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.  यानी ये संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है इसलिए सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी वाजिब है. कुल मिलाकर संसद में दागियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई. 

आपको ये भी जानना चाहिए कि लोकसभा में किस पार्टी के कितने सांसद दागी हैं. वर्ष 2019 की लोकसभा में बीजेपी के 29 प्रतिशत सांसद ऐसे हैं, जिनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं. इसी तरह कांग्रेस के 37 प्रतिशत, शिवसेना के 28%, और TMC के 18% सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

जबकि समाजवादी पार्टी के 40 प्रतिशत और बहुजन समाज पार्टी 30 प्रतिशत सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.  गंभीर आपराधिक मामलों का ये मतलब हुआ कि इन सांसदों के पर हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर आरोप हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही एक फैसला 2018 में भी दिया था. लेकिन किसी राजनीतिक दल ने अपने दागी प्रत्याशियों का कोई ब्योरा नहीं दिया. इसीलिए एक याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट को आज दोबारा दिशा-निर्देश जारी करना पड़ा. 

वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके चुनाव आयोग और केंद्र सरकार दोनों की शिकायत की थी. उनका कहना है कि इस मामले में चुनाव आयोग इसलिए फेल रहा क्योंकि वो कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करा पाया. दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्षों में कई महत्वपूर्ण कानून बनाए लेकिन सरकार ने राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए कोई कानून नहीं बनाया. 

ADR यानी Association for Democratic Reforms की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया था.  इनमें सबसे ज्यादा दागी उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के थे. 

आम आदमी पार्टी ने 70 में से 42 ऐसे उम्मीदवार चुनाव में उतारे थे, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.  इनमें से 36 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.  इसी तरह बीजेपी ने 26 दागी उम्मीदवारों को टिकट दिया था. इनमें से 17 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं.  कांग्रेस ने 18 दागियों को टिकट दिए, जिनमें 13 के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं . 

दिल्ली विधानसभा में 2015 के चुनाव में 70 में से 24 दागी उम्मीदवार चुन कर आए थे. जबकि इस बार 43 दागी उम्मीदवार चुने गए हैं.  यानी दिल्ली में दागी विधायकों की संख्या 80 प्रतिशत बढ़ गई है. 
दागी संसद में हों या सड़क पर दाग लोकतंत्र में अच्छे नहीं लगते. आपको याद होगा कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा हिंसक प्रदर्शन हुए थे. इस दौरान लखनऊ, मेरठ और मुजफ्फरनगर समेत कई शहरों में सरकारी और गैर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया. 

जिसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि इस नुकसान की भरपाई उपद्रवियों से जुर्माना वसूलकर की जाएगी. और अब ऐसा हो रहा है.  मुजफ्फरनगर और संभल समेत उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में उपद्रवियों को नोटिस भेजकर पैसे जुर्माने की रकम जमा करने को कहा गया है. 

मुजफ्फरनगर में 20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किया गया था. इस दौरान सबसे ज्यादा नुकसान सिविल लाइन थाना क्षेत्र में पहुंचाया गया था.  मुजफ्फरनगर प्रशासन ने इस मामले में 53 उपद्रवियों की पहचान की.  जिनसे 23 लाख 41 हज़ार 290 रुपये वसूले जाएंगे.  जिला प्रशासन ने सभी 53 लोगों को नोटिस भेजकर पैसे जमा करने को कहा है. 

इसी तरह संभल में ज़िला प्रशासन ने 11 दंगाइयों की पहचान कर उन्हें नोटिस भेजा है. जिनमें कुछ प्रदर्शनकारी औरतें भी शामिल हैं. प्रशासन ने इन 11 लोगों को 50 लाख रुपये के पर्सनल बॉन्ड पर दस्तख़त कर शपथ लेने को कहा है कि वो भविष्य में ऐसी किसी भी विध्वंसक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे. ये सभी 11 लोग 19 दिसंबर को संभल के पक्का बाग इलाके में नखासा में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.

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