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नई दिल्ली: 19 अगस्त को वर्ल्ड फोटोग्राफी डे के साथ साथ विश्व मानवता दिवस (World Humanitarian Day) भी था और अक्सर मानवता के नाम पर बड़े एनजीओ, सेलिब्रिटीज और नेता सेमिनार करते हैं, कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और तस्वीरें खिंचवाकर वहां से निकल जाते हैं. फिर इनकी PR एजेंसिया इन तस्वीरों का प्रचार करती हैं और फिर इन्हीं तस्वीरों के दम पर इन लोगों को अनुदान मिलता है और नेता सत्ता में आ जाते हैं.
कुल मिलाकर मानवता के नाम पर फोटोग्राफ खिंचवाना एक उद्योग बन गया है और इसी से कई लोगों की दुकाने चलती हैं, लेकिन मानवता का भला नहीं होता. वैसे विश्व मानवता दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई थी, लेकिन पिछले 12 वर्षों में मानवता का कोई भला नहीं हो पाया है.
संयुक्त राष्ट्र की यूनीसेफ (UNICEF) जैसी संस्थाओं के पास इस समय पूरी दुनिया में 200 से ज्यादा GoodWill Ambassadors हैं. यानी दुनिया के लगभग हर देश में इस संस्था का एक ना एक GoodWill Ambassador है, जो मानवता के लिए काम करता हैं. मानवता के नाम पर पूरी दुनिया के देशों ने 2019 में ढाई लाख करोड़ रुपये की मदद दी थी.
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अमेरिका की डोनेशन का सबसे बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान को ही जाता है, लेकिन आज भी अफगानिस्तान के 3 करोड़ 80 लाख लोग परेशानी में हैं. अफगानिस्तान समेत पूरी दुनिया के 40 लाख से ज्यादा लोग अब भी दूसरे देशों में शरण मांग रहे हैं. अफगानिस्तान के एक करोड़ 40 लाख लोग इस समय भूखमरी का सामना कर रहे हैं, अफगानिस्तान में 40 प्रतिशत फसले बर्बाद हो गई हैं, क्योंकि तालिबान के डर से लोग अपने खेतों को छोड़कर भाग गए हैं.
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पिछले कुछ सालों में किसी ना किसी युद्ध या मानव त्रासदी की वजह से दुनिया में साढ़े 8 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है. इनमें से साढ़े तीन करोड़ बच्चे थे. दुनिया भर में 10 लाख बच्चे ऐसे हैं, जिनका जन्म ही एक शरणार्थी के रूप में हुआ है. करीब सवा दो करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपना देश छोड़कर किसी और देश में शरण ली है. आपको लगता होगा कि मानवता के नाम पर दुनिया के बड़े बड़े विकसित देश इन लोगों को शरण देते होंगे, लेकिन सच ये है कि 86 प्रतिशत शरणार्थी विकासशील देशों में रहते हैं.
मानवता को बचाने की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले एनजीओ, सेलिब्रिटीज, मलाला युसुफजई और ग्रेटा थनबर्ग जैसे कथित मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का ध्यान इन आंकड़ों की तरफ नहीं जाता और इनमें से कोई भी ऐसी टूलकिट नहीं बनाता, जिससे सच में मानवता को बचाया जा सके.
अब आपको बताते हैं कि असली मानवता क्या होती है. पोलेंड की एक ओलंपिक खिलाड़ी ने अपने सिल्वर मेडल को सिर्फ इसलिए नीलाम कर दिया ताकि नीलामी से मिलने वाले पैसे से एक 8 महीने के बच्चे के दिल का ऑपरेशन कराया जाए. इस खिलाड़ी का नाम मारिया एंद्रेजिक है. मारिया का ये पहला ओलंपिक मेडल था, जो उन्होंने जैवलिन थ्रो में जीता था, लेकिन जब उन्हें पता चला कि एक 8 महीने के बच्चे के परिवार को उसके दिल के ऑपरेशन के लिए पैसों की जरूरत है तो उन्होंने अपने इस पहले ओलंपिक मेडल की नीलामी कर दी, जिसे 94 लाख रुपये में खरीदा गया. लेकिन इसके बाद मेडल की बोली जीतने वालों ने ये मेडल मारिया को वापस कर दिया. ये सच्ची मानवता होती है. इसके लिए मारिया ने ना तो तस्वीरें खिंचवाई और ना ही पीआर एजेंसियों से इसका प्रचार कराया.
दूसरी तस्वीर कतर से आई है, जहां अफगानिस्तान से गए शरणार्थियों को एक रिफ्यूजी कैंप में रखा गया है. इस रिफ्यूजी कैंप में हजारों की संख्या में लोग जमा है, जिन्हें खाने पीने के लिए भी कुछ नहीं दिया जा रहा. कतर वो देश है, जो लोगों का खून बहाने वाले तालिबानी नेता मुल्ला बरादर को किसी शाही मेहमान से कम नहीं समझता, उसकी खातिरदारी में अपनी वायुसेना के एक महंगे विमान को लगा देता है, लेकिन जब बात अफगानिस्तान के नागरिकों के प्रति मानवता दिखाने की आती है तो उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ देता है.
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