DNA Analysis: क्या संसद में 'असंसदीय शब्दों' के नाम पर सरकार की आलोचना वाकई हो गई है बैन? जानें क्या है बड़ा सच
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DNA Analysis: क्या संसद में 'असंसदीय शब्दों' के नाम पर सरकार की आलोचना वाकई हो गई है बैन? जानें क्या है बड़ा सच

Controversy over Unparliamentary Words: क्या संसद में असंसदीय शब्दों के नाम पर सरकार की आलोचना वाकई बैन कर दी गई है. इस संबंध में गुरुवार को दिनभर सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें चलती रहीं. आपको इस बारे में अब अंदरुनी सच्चाई जाननी चाहिए. 

DNA Analysis: क्या संसद में 'असंसदीय शब्दों' के नाम पर सरकार की आलोचना वाकई हो गई है बैन? जानें क्या है बड़ा सच

DNA on Controversy over Unparliamentary Words: लेखक Mark Twain ने एक बार कहा था कि सच जब तक जूते के फीते बांध रहा होता है, झूठ तब तक आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है. ऐसा ही किस्सा भारतीय राजनीति में देखने को मिल रहा है. ये झूठ अब भी किसी नेता के बयानों में, किसी टीवी चैनल पर या किसी डिज़ायनर बुद्धिजीवी के ट्विटर हैंडल पर तैर रहा होगा.  

असंसदीय शब्दों की सूची पर मचा हंगामा

गुरुवार सुबह से देश में एक अफ़वाह बहुत चर्चा में थी कि सरकार ने संसद में विपक्ष की जुबान पर ताला लगा दिया है और एक ऐसी शब्दावली बना दी है जिसके बाद विपक्ष के पास संसद में सरकार के खिलाफ़ बोलने के लिये कुछ नहीं रह जाएगा. उसके नेता ना तो सरकार की निंदा कर सकेंगे, ना ही उसकी नीतियों की आलोचना कर सकेंगे और ना ही प्रधानमंत्री और मंत्रियों पर व्यक्तिगत आरोप लगा सकेंगे. जब वो ऐसा कुछ भी करना चाहेंगे तो उन्हें इसके लिये ज़रूरी शब्द ही नहीं मिलेंगे. ना तो हिंदी में और ना ही इंग्लिश में.

दरअसल लोकसभा सचिवालय ने वर्ष 2021 के दौरान संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही से विलोपित यानी Delete किये गये असंसदीय शब्दों की एक सूची जारी की है. ये वो शब्द हैं जो वर्ष 2021 में संसद और विधानसभा की कार्यवाही के दौरान किसी खास विषय और विशेष संदर्भ में माननीय सदस्यों द्वारा कहे गए थे. स्पीकर के पास ये अधिकार होता है कि सदन में बोले गये किसी शब्द या किसी प्रसंग को वो असंसदीय (Unparliamentary words) मानते हैं तो उसे वो कार्यवाही से हटा सकते है. लोकसभा सचिवालय ने वर्ष 2021 की कार्यवाही में बोले गये ऐसे शब्दों की 50 पन्नों की एक लिस्ट लोकसभा की वेबसाइट पर अपलोड की

गलत तरीके से जनता में फैलाया गया भ्रम

इस पूरे मामले का सच्चा पक्ष क्या है, वो बताने से पहले हम आपको इसका वो पक्ष बताते हैं, जो झूठ से भरा है. 50 पन्नों की इस असंसदीय शब्दों की सूची में से हमने शब्दों की 2 सूचियां बनाई हैं ताकि आपको समझने में आसानी हो कि भ्रम कहां था या कहां से फैलाया गया. इस सूची में तानाशाह, जुमलाजीवी, विनाश पुरुष, तड़ीपार, जयचंद, बाल बुद्धि, शकुनी, अराजकतावादी और क्रूर जैसे कई शब्द हैं जिन्हें असंसदीय बताया गया है.

यहां आपको याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है कि ये शब्द संसद के अंदर कभी भाषण में, तो कभी हंगामे के दौरान कौन इस्तेमाल करता रहा है, किसके लिये इस्तेमाल करता रहा है और किन संदर्भों में इस्तेमाल करता रहा है. अब हमने इन 50 पन्नों की सूची में से असंसदीय शब्दों (Unparliamentary words) की जो दूसरी सूची बनाई है उसे भी देखें. इन शब्दों में ज्यादातर वो हैं जो आम बोलचाल में इस्तेमाल होते हैं.  इन शब्दों में सीनाजोरी, दोहरा चरित्र, हड़पना, दलाली, संवेदनहीन, शर्मिंदा, विश्वासघात, भ्रष्ट, नाटक-नौटंकी, पाखंड, ढिंढोरा पीटना और चांडाल चौकड़ी जैसे शब्द रखे गए हैं.

सरकार नहीं, स्पीकर छांटते हैं ऐसे शब्द

एक बार आपको भी देखकर लगेगा कि भला इनमें क्या असंसदीय है? अगर किसी के डबल स्टैंडर्ड पर दोहरा चरित्र शब्द इस्तेमाल नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? अगर संवेदना नहीं दिखाने पर संवेदनहीन शब्द इस्तेमाल नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? थोड़ी देर के लिये आम आदमी के मन में ऐसे सवाल उठने जायज़ हैं, क्योंकि वो ना तो संसद का सदस्य है ना विधानसभा का. ...लेकिन वर्षों से संसद में बैठने वाले, उसकी एक-एक प्रक्रिया को समझने वाले माननीय सांसद असंसदीय शब्दों को हटाने की प्रक्रिया से भला कैसे अनजान हो सकते हैं?

विपक्षी दलों ने एक साथ एक सुर में इस असंसदीय शब्दों (Unparliamentary words) की सूची को समझने की बजाए इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया और ये नैरेटिव खड़ा किया कि सरकार ने इन शब्दों पर बैन लगाकर आलोचना की आज़ादी पर प्रतिबंध लगा दिया है. विपक्ष ने कहा कि सरकार नहीं चाहती कि उसकी निंदा हो, उसे भ्रष्ट या संवेदनहीन बताया जा सके. लोकसभा में शब्दों को असंसदीय घोषित करने और उन्हें कार्यवाही से हटाने का अधिकार स्पीकर का होता है, लेकिन यहां विपक्ष ने ये जताने की पूरी कोशिश की, कि ये काम सरकार ने कराया है.

संसद-विधानसभाओं के लिए रुटीन बात

लोकसभा की कार्यवाही से असंसदीय शब्दों (Unparliamentary words) को बैन करने का सच क्या है, अब हम आपको वो बताते हैं. अब इस मामले का सच भी जान लीजिए. संसदीय कार्यवाही में असंसदीय माने गये शब्दों को हटाने की एक प्रक्रिया है. ऐसे शब्द सदन के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किये जाते हैं. लोकसभा सचिवालय वर्ष 1954 से 2009 तक ऐसे शब्दों को बुकलेट के रुप में प्रकाशित करता रहा है.. जो असंसदीय मानकर कार्यवाही से हटाए गए. ऐसे शब्दों की पूरी डिक्शनरी है जो करीब ग्यारह सौ पन्नों की है. इसमें नए शब्द जुड़ते रहते हैं. 

ज़ी न्यूज़ से खास बातचीत में लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि इन शब्दों को एक विशेष संदर्भ में असंसदीय घोषित किया जाता है. संसद में किसी भी शब्द के बोलने पर बैन नहीं है. उसे असंसदीय ठहराना इस पर निर्भर करता है कि वो किस संदर्भ में बोला गया है. इसका ये मतलब नहीं है कि वो शब्द अब लोकसभा, राज्यसभा और किसी विधानसभा में बोला ही नहीं जा सकता. सदस्यों को संसदीय मर्यादा के अनुकूल अपनी बात कहने की पूरी आज़ादी हमेशा से रही है और आगे भी रहेगी.

'सदन में किसी भी शब्द को बोलने पर पाबंदी नहीं'
 
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के इंटरव्यू से 4 बातें स्पष्ट हैं. पहली- सदन के अंदर किसी भी शब्द के बोलने पर पाबंदी नहीं है. दूसरी- शब्द उसके संदर्भ के आधार पर असंसदीय घोषित होता है. तीसरी- असंसदीय घोषित किये गये शब्द पर कार्रवाई नहीं होती है और चौथी- स्पीकर के निर्णय में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है.

अंत में आपको इस पूरे विषय का दिलचस्प पहलू बताते हैं. असल में जिन शब्दों को असंसदीय (Unparliamentary words) बताने पर कांग्रेस शोर मचा रही है, आलोचना करने की आजादी का हनन बता रही है, उन शब्दों को राजस्थान और छत्तीसगढ़ की विधानसभाओं में भी असंसदीय ठहराया गया था. इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, उसी की पार्टी का चुना हुआ स्पीकर है. 

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