DNA ANALYSIS: रूस के पास दुनिया का सबसे खतरनाक हाइड्रोजन बम, धरती को पल में कर सकता है तबाह
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DNA ANALYSIS: रूस के पास दुनिया का सबसे खतरनाक हाइड्रोजन बम, धरती को पल में कर सकता है तबाह

1961 में सोवियत संघ ने एक ऐसे बम का परीक्षण किया था जो हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए एटम बम से भी 3300 गुना ज्यादा शक्तिशाली था.

DNA ANALYSIS: रूस के पास दुनिया का सबसे खतरनाक हाइड्रोजन बम, धरती को पल में कर सकता है तबाह

नई दिल्ली: 75 साल पहले अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर एटम बम गिराए थे. इन दोनों हमलों में करीब ढाई लाख लोगों की मौत हो गई थी. ये पहली और आखिरी बार था जब किसी देश ने युद्ध में परमाणु बम का इस्तेमाल किया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस हमले के 16 साल बाद यानी 1961 में सोवियत संघ ने एक ऐसे बम का परीक्षण किया था जो हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए एटम बम से भी 3300 गुना ज्यादा शक्तिशाली था. अगर जापान पर ये बम गिराया गया होता तो उसकी उस समय की पूरी आबादी को 3 बार मारा जा सकता था. तब जापान की आबादी साढ़े सात करोड़ थी. अब रूस ने 60 साल पहले हुए उस परमाणु परीक्षण का वीडियो पहली बार जारी किया है. ये एक हाइड्रोजन बम था. इसे धरती पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा न्यूक्लियर ब्लास्ट माना जाता है.

परमाणु परीक्षण से 50 मेगा टन की ऊर्जा पैदा हुई थी
रूस ने ये परमाणु परीक्षण 30 अक्टूबर 1961 को आर्कटिक महासागर के एक द्वीप पर किया था. अब तक ये तस्वीरें Classified यानी गोपनीय थीं. लेकिन अब रूस की न्यूक्लियर एनर्जी एजेंसी ने इसके वीडियो को सार्वजनिक कर दिया है. इस परमाणु परीक्षण से 50 मेगा टन की ऊर्जा पैदा हुई थी. आज से पहले इस परीक्षण के जो वीडियो सामने आए थे, वो बहुत साफ नहीं थे. लेकिन अब रूस ने उस जमाने में इस परमाणु परीक्षण पर बनाई गई 40 मिनट की डॉक्यूमेंट्री फिल्म रिलीज की है. रूस में इसको 'जार' बम कहा जाता है. रूसी भाषा में 'जार' का मतलब राजा होता है.

इस बम को एक हवाई जहाज से पैराशूट की मदद से गिराया गया था. ये जमीन से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर फटा था. इसकी टाइमिंग इस तरह से रखी गई थी कि धमाका होने से पहले इसे गिराने वाला हवाई जहाज कम से कम 45 किलोमीटर दूर निकल चुका हो. लेकिन बम के फटने से पैदा हुई ऊर्जा ने प्लेन को भी अपनी चपेट में ले लिया था. और प्लेन बेकाबू होकर एक किलोमीटर तक नीचे गिरने लगा था हालांकि बाद में पायलटों ने प्लेन को संभाल लिया.

इस परीक्षण के बाद जो ऊर्जा और रोशनी निकली उसे एक हजार किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता था.

ब्लास्ट के तुरंत बाद धूल का जो गुबार उठा. उसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर थी जो आग और गर्मी निकली उसका ऊपरी हिस्सा कुछ सेकेंड में ही 20 किलोमीटर के दायरे में फैल गया. इसे Nuclear Mushroom कहा जाता है क्योंकि ये किसी मशरूम की तरह दिखता है.

धमाके के 40 सेकेंड्स के बाद इस बम से निकली आग आसमान में 30 किलोमीटर ऊपर तक गई थी और ये देखते ही देखते 90 किलोमीटर के दायरे में फैल गई. कुछ और सेकेंड के बाद आग की लपटें 30 किलोमीटर से बढ़कर 60 से 65 किलोमीटर तक पहुंच गई थीं.

इस धमाके का असर एक हजार किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया था. ये हाइड्रोजन आकार में 26 फीट लंबा था. इसका वजन 24 हजार किलोग्राम से ज्यादा था. उस समय के रूसी वैज्ञानिकों का मानना था कि इसका असली युद्ध में इस्तेमाल करना आसान नहीं होगा.

हाइड्रोजन और एटम बम में फर्क
इस समय दुनिया के 6 देशों के पास हाइड्रोजन बम हैं. ये देश हैं- रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत और नॉर्थ कोरिया.

अब आपको ये समझना चाहिए कि एक हाइड्रोजन और एक एटम बम में फर्क क्या होता है. ये दोनों ही परमाणु हथियार हैं. दोनों में ही यूरेनियम या प्लूटोनियम का इस्तेमाल होता है. एटम बम की टेक्नोलॉजी को Fission कहा जाता है. यानी जब किसी एटम बम में विस्फोट होता है तो अणु दो हिस्सों में टूटने लगते हैं और इससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है, जबकि Hydrogen Bomb की टेक्नोलॉजी को Fusion कहते हैं. इसमें अणु टूटते नहीं है बल्कि दो अणुओं के टकराने से एक तीसरा अणु पैदा होता है. इसमें भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है जो आग की शक्ल में तबाही लाती है.

Hydrogen Bomb बनाना Atom Bomb बनाने की तुलना में ज्यादा मुश्किल होता है. लेकिन ये वजन में हल्का होता है. इसलिए इसका इस्तेमाल मिसाइल में भी किया जा सकता है.

रूस के Hydrogen Bomb ने 35 किलोमीटर के दायरे में सब कुछ जलाकर राख कर दिया था. जिस दौर में रूस ने ये परीक्षण किया था वो शीत युद्ध का दौर था. इस दौरान रूस और अमेरिका आपस में सीधे तौर पर युद्ध तो नहीं लड़ रहे थे लेकिन दोनों के बीच हथियारों की होड़ लगी थी. अमेरिका ने 1954 में अपने पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था. उसी के जवाब में 7 साल के बाद रूस ने ये धमाका किया था. अब एक बार फिर दुनिया शीत युद्ध की तरफ बढ़ रही है और इस युद्ध में अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश शामिल हैं. माना जा रहा है कि रूस ने ये वीडियो जारी करके दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश की है. ये परीक्षण लगभग 60 साल तक दुनिया के सबसे बड़े रहस्यों में से एक रहा है. इस पर हमने एक वीडियो विश्लेषण तैयार किया है. ये विश्लेषण देखकर आप समझ जाएंगे कि पूरी दुनिया को तबाह करने के लिए कैसे एक परमाणु बम ही काफी है.

30 अक्टूबर 1961 को रशिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण करके पूरी दुनिया को डरा दिया था. 50 मेगाटन के हाइड्रोजन बम के इस धमाके की गूंज सैकड़ों किमी तक सुनी गई. इसकी रोशनी धरती पर उगते दूसरे सूरज के जैसी थी. कैमरे के फ्लैश की तरह एक रोशनी हुई जिसकी तीव्रता हर पल बढ़ती गई. इतनी बढ़ी कि एयरक्राफ्ट से बम गिराने वाले पायलट्स के​ लिए खास काले चश्मे पहनने के बावजूद प्लेन उड़ाना मुश्किल हो गया था. रूस ने ये धमाका करके पूरी दुनिया खासकर अमेरिका को बता दिया था कि उसको कमतर समझना भूल होगी.

परीक्षण के लिए Aircraft bomb Case का इस्तेमाल
रूस को ये उपलब्धि एक लंबे वक्त और खास टीम की मेहनत के बाद मिली. थर्मोन्यूक्लियर बम बनाने के लिए वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम बनाई गई थी जिसने खुफिया जगह पर इस बम को तैयार किया.बम के परीक्षण के लिए Aircraft bomb Case का इस्तेमाल हुआ जो खासतौर से बमों को एयरक्रॉफ्ट में लगाने के लिए तैयार किया जाता है. हाइड्रोजन बम के लिए खास केस बनाया या जो 100 मेगाटन ऊर्जा को झेल सके.

बम के पीछे पैराशूट लगाने के लिए क्लैंप भी लगाए गए थे. पैराशूट इसलिए लगाए गए थे ताकि बम अपनी तय जगह पर खास स्थिति में गिरे.

हाइड्रोजन बम के परीक्षण के लिए नोवाया ज़ेमल्या (Novaya Zemlya) को चुना गया. ये टेस्टिंग साइट एक हाइड्रोजन बम के परीक्षण के लिए सबसे सुरक्षित मानी गई थी. इसी के पास कोला पेनिनसुला एयरबेस तक ट्रेन के जरिए हाइड्रोजन बम को पहुंचाया गया. ट्रेन से ले जाने के लिए एक खास कैरेज भी बनवाया गया था और सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया था.

बस को जिस एयरक्राफ्ट से गिराया जाना था. वो रूस का TU 95 बॉम्बर एयरक्राफ्ट था. इसकी खासियत ये थी कि ये 26 टन वजनी बम को ले जाने में सक्षम था. हाइड्रोजन बम के रेडिएशन से बचने के लिए इस पर खास पेंट भी किया गया था.

हाइड्रोजन बम के धमाके की हर जांच के लिए विमान में भी खास उपकरण लगाए गए थे. इस में हीट और शॉक पल्स मांपने के यंत्र थे. साथ ही इसमें एक वीडियो कैमरा लगाया गया था जिससे धमाके की तस्वीरें ली जा सके.

इस परीक्षण की निगरानी के लिए बनाया गया कमांड पोस्ट, परीक्षण की जगह से 260 किमी दूर था. हालांकि कम्यूनिकेशन के लिए परीक्षण की जगह से 90 किमी दूर D-8 परीक्षण साइट पर भी लैब और सपोर्ट स्टाफ मौजूद था.

धमाका जहां होना था वहां पर उसकी तीव्रता मापने के लिए सभी तरह के उपकरण लगा दिए गए थे. D-8 टेस्टिंग साइट पर Belushya bay (बेलूश्या बे) में वॉरशिप भी तैनात किए गए थे. मुख्य टेस्टिंग साइट से 17 किमी दूर कैमरे लगाए गए थे ताकि धमाके की तस्वीरें ली जा सकें.

29 अक्टूबर तक इस बम से जुड़ी सभी जांच पूरी कर ली गई थी. यहां तक की एक रात पहले तक बम और एयरक्राफ्ट की हर तरीके की जांच की गई ताकि परीक्षण में किसी तरह की गलती न हो. बम को एयरक्राफ्ट से ले जाने वाले पायलट्स को भी आखिरी चंद जानकारियां दी गईं जो पहले गुप्त रखी गईं थीं.

30 अक्टूबर 1961 की सुबह TU 95 बॉम्बर ने हाइड्रोजन बम को लेकर उड़ान भरी. हाइड्रोजन बम वाले एयरक्राफ्ट के साथ एक और एयरक्राफ्ट उड़ान भर रहा था. इस खास विमान में वैज्ञानिकों की एक टीम थी और इसमें एक लैब बनाई गई थी.

वैज्ञानिकों ने तय किया था कि हाइड्रोजन बम को गिराने से पहले एयरक्राफ्ट की ऊंचाई 10 हजार 500 मीटर रहेगी जैसे ही परीक्षण स्थल आया. बम गिराने वाला सिस्टम ऑटोमैटिक मोड में चला गया. ऑटोमैटिक मोड में जाते ही डी-8 टेस्टिंग साइट से बम गिराने का फैसला लिया गया, काउंटडाउन शुरू हो गया.

पैराशूट की मदद से बम सटीक जगह पर गिरा. इस धमाके से इतनी तेज रोशनी हुई कि कोई भी कैमरा इसकी असली ऊर्जा को माप नहीं पाया. जब हाइड्रोजन बम जमीन से टकराया उस वक्त एयरक्राफ्ट 45 किमी दूर था. बावजूद इसके पायलट्स के लिए उसे देखना नामुमकिन था. धमाके के बाद आग का एक ऐसा गुंबद नजर आया जो पहली नजर में उगते सूर्य जैसा दिखा. एक ऐसा सूर्य जिसका आकार लगातार बढ़ता जा रहा था.

धमाके के बाद धूल का गुबार पहली बार में 10 किमी तक फैल गया. 40 सेकेंड के बाद बने मशरूम की शक्ल के बादल अपना आकार बढ़ाते जा रहे थे. वैज्ञानिकों के मुताबिक ये 90 किमी क्षेत्र तक फैले थे. ऐसा धमाका दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था. इतना ताकतवर बम किसी भी देश के पास ना था ना है.

धमाके से पहले की तस्वीरें और धमाके के बाद की तस्वीरें देखकर ही हाइड्रोजन बम की ताकत का अंदाजा हो जाता है. ये जगह पहचान में नहीं आ रही थी. कई किलोमीटर तक की जमीन पूरी तह से उखड़ चुकी थी. टेस्टिंग साइट पर बना अंडरग्राउंड स्ट्रक्चर पूरी तरह से तहस नहस हो गया था. इस परीक्षण के बाद रूस ने ये बता दिया था कि उसके पास 50 से 100 मेगाटन के हाइड्रोजन बम बनाने की क्षमता है.

सबसे ज्यादा परमाणु हथियार रूस के पास
इस समय पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार रूस के पास हैं. उसके पास कुल 6 हजार 375 परमाणु हथियार हैं. दूसरे नंबर पर अमेरिका है जिसके पास 5 हजार 800 परमाणु हथियार हैं. फ्रांस के पास 290, चीन के पास 320, ब्रिटेन के पास 215 , भारत के पास 150 और पाकिस्तान के पास 160 Atom Bomb हैं. इजरायल के पास 90 और नॉर्थ कोरिया के पास 30 से 40 एटम बम होने का अनुमान है.

चीन अगर अपने सारे Atom Bombs का इस्तेमाल एक साथ कर ले तो पूरी दुनिया कुछ ही सेकेंड में तबाह हो जाएगी, जबकि रूस और अमेरिका के पास जितने परमाणु हथियार हैं उनसे पूरी पृथ्वी को 20 बार नष्ट किया जा सकता है. यानी इंसान ने खुद को ही खत्म करने के लिए जरूरत से ज्यादा Nuclear Bombs बना रखे हैं. आज भी पाकिस्तान और चीन जैसे देश लगातार नए-नए परमाणु हथियार बनाने में जुटे हैं.

किसी देश पर परमाणु हमला हुआ तो उसके करोड़ों लोग मारे जाएंगे. लेकिन आपको जानकर दुख होगा कि हर साल पूरी दुनिया में 1 करोड़ लोग गरीबी और भुखमरी की वजह से मारे जाते हैं. इसलिए ये दुनिया के नेताओं को तय करना है कि उन्हें परमाणु बम चाहिए या अपने देश की जनता के लिए रोटी चाहिए.

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