भारतीय बाजार में आएंगे गौमूत्र से बने इको फ्रेंडली पटाखे, धुएं से दिलाएंगे मुक्‍त‍ि
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भारतीय बाजार में आएंगे गौमूत्र से बने इको फ्रेंडली पटाखे, धुएं से दिलाएंगे मुक्‍त‍ि

डॉक्टर घोष ने बताया कि यह आम पटाखों जैसे नहीं हैं, जो आग लगाने पर फटते हैं. इन पटाखों का ट्रिगर आपके ही हाथ में होता है. जब चाहें आप ट्रिगर दबाकर इन पटाखों को चला सकते हैं.

 डॉक्टर सम्राट घोष अइसर लैब में अपने पटके का प्रदर्शन करते हुए. फोटो: वर्मा

चंडीगढ़: अब भारत के बाजार में ऐसे सुपर ग्रीन और ईको फ्रेंडली पटाखे आ जा रहे हैं जो प्रदूषण रहित और पर्यावरण अनुकूल हैं. इन पटाखों में गोमूत्र का इस्तेमाल किया गया है. गोमूत्र से बने यह पटाखे भारत में ही तैयार किए गए हैं. आम तौर पर इस्‍तेमाल होने वाले पटाखों के कारण धुआं और प्रदूषण बड़ी समस्‍या बनता है. इसी बात का ध्यान में रखते हुए मोहाली ईसर के प्राध्यापक डॉ. सम्राट घोष ने इन्‍हें तैयार किया है. उनके शोध से नए पटाखों का निर्माण हुआ है, जो कि दृष्टि-बाध्य और दिव्यांगजन के लिए अनुकूल हैं.

ये पटाखे मुख्यतः फ्यूज़-फ्री भी हैं, जिससे दिव्यांगजन इसका इस्तेमाल सरलता से कर पाएंगे. डॉक्टर सम्राट ने बताया कि पटाखे में गोमूत्र का इस्तेमाल एक केमिकल के तौर पर किया जाता है, जिसकी वजह से प्रदूषण नहीं होता. डॉक्टर घोष ने बताया कि यह आम पटाखों जैसे नहीं हैं, जो आग लगाने पर फटते हैं. इन पटाखों का ट्रिगर आपके ही हाथ में होता है. जब चाहें आप ट्रिगर दबाकर इन पटाखों को चला सकते हैं. इन पटाखों के फटने के बाद इनका मलबा कहीं नहीं उड़ता. साथ ही इन पटाखों को बनाने का ख़र्च सिर्फ़ और सिर्फ़ दो रुपया आता है.

डॉक्टर घोष ने बताया कि यह पटाखे उन्होंने किसी विशेष सामान से नहीं बल्कि रॉ मैटीरियल से बनाए हैं. इस पटाखे का नाम डॉक्टर घोष ने फ़ायरफ़्लाई रखा है. ये पटाखे फटते हैं और उसके बाद हवा में रॉकेट की तरह उड़ जाते हैं. शोधकार्य के लिए डॉ. सम्राट घोष ने स्वयं तकरीबन दो सौ बोतलें एकत्रि‍त की हैं. डॉक्टर सम्राट घोष ने ज़ी मीडिया को बताया कि यह पटाखा खिलौने के साथ मिलाकर बनाया है, जो कि उनके पुराने पटाखे से ज़्यादा धमाकेदार है पर इस पटाख़े में भी वही विशेषताएँ हैं, जो पुराने में है.    

डॉ. सम्राट घोष इन नए पटाखों का प्रारूप तैयार करने में पिछले दो सालों से प्रयासरत हैं. उनके द्वारा निर्मित नए पटाखे प्रयोग में लाने के लिए तैयार हैं. इसका प्रयोग फिलहाल मोहाली संस्थान के अंदर किया जा चुका है. इनका प्रयास भी सफल रहा है और जल्द ही यह पटाखे भारतीय बाजार में भी देखने को मिलेंगे.

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