सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) पर पिछले 11 महीनों से प्रदर्शन कर रहे किसानों में शामिल कुछ निहंग सिखों (Nihang Sikh) ने एक व्यक्ति की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी. इससे किसान आंदोलन के असल लक्ष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
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नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली के पास जिस सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) पर पिछले 11 महीनों से किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) चल रहा है. वहीं पर कुछ निहंग सिखों (Nihang Sikh) ने एक व्यक्ति की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी है. उस व्यक्ति को सिर्फ मारा नहीं गया बल्कि तड़पा तड़पा कर मारा गया.
निहंग सिखों (Nihang Sikh) के हाथों मरने वाले व्यक्ति का नाम लखबीर सिंह था. वह पंजाब के तरणतारण जिले का रहने वाला था. लखबीर सिंह एक दलित था. हमारे देश में दलितों के नाम पर खूब राजनीति होती है और दलितों पर हिंसा के बहाने हमारे देश के विपक्षी नेता राजनीति करने का एक भी मौका नहीं गंवाते. लेकिन लखबीर सिंह की हत्या पर सब चुप हैं और अब इसमें किसी को दलित एंगल दिखाई नहीं दे रहा.
निहंग सिखों (Nihang Sikh) ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के आरोप में उसका हाथ और पैट काट दिया था. इसका कटा हुआ हाथ इसके पास ही पड़ा था. आस पास खड़े निहंग सिख उससे कुछ कबूलवाने की कोशिश कर रहे थे. वायरल हुए वीडियो में निहंग सिख कह रहे थे कि उसने पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान किया था. इसलिए इसके हाथ और पैर काट दिए गए.
वीडियो में दिख रहा निहंग सिख (Nihang Sikh) बार बार कह रहा था कि उनके गुरु का अपमान करने वालों को ऐसे ही सजा दी जाएगी. सवाल ये है कि अगर इस व्यक्ति ने सिखों के धार्मिक ग्रंथ का अपमान किया भी था तो इसे पकड़कर पुलिस को सौंपा जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया और उसे मौके पर ही जो सज़ा दी गई, वो आपको तालिबान की याद दिला देगी. आरोपियों का इससे भी मन नहीं भरा तो उन्होंने लखबीर सिंह को उसके कटे हुए हाथ के साथ ही उलटा लटका दिया और फिर एक बार उससे दोबारा जुर्म कबूल करवाने की कोशिश हुई.
लखबीर सिंह बार बार कहता रहा कि उसने गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान नहीं किया है. हालांकि वहां खड़ा कोई भी व्यक्ति उसकी बात मानने के लिए तैयार नहीं था. इस दौरान लखबीर सिंह तड़पता रहा, चीखता रहा, दर्द से करहाता रहा लेकिन वहां खड़े लोगों ने उसकी कोई मदद नहीं की और आखिरकार उसकी मौत हो गई. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि लखबीर सिंह के शरीर पर 10 से ज्यादा चोट के निशान थे और उनकी मौत ज्यादा खून बह जाने की वजह से हुई.
इसके बाद लखबीर सिंह की लाश को सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) पर ही एक Baricade से लटका दिया गया. यहां भी जो सिख मौजूद थे, वो इसकी हत्या पर खुश थे और कह रहे थे कि उन्हें किसी का कोई डर नहीं है. जिसे जो करना हो, वो कर ले. इनमें से एक निहंग सिख को तो प्रधानमंत्री मोदी के बारे में अप शब्द कहते हुए भी सुना गया.
सिंघु बॉर्डर पर चले किसान आंदोलन में खालिस्तानी आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले का पोस्टर लगा हुआ है. भिंडरावाला भारत को तोड़कर सिखों के लिए खालिस्तान बनाना चाहता था और उसने अपने इस सपने को पूरा करने के लिए पंजाब में सैंकड़ों लोगों का खून बहाया था. अब सवाल ये है कि क्या भिंडरावाले जैसे आतंकवादी से ही प्रेरणा लेकर सिंघू बॉर्डर पर एक व्यक्ति को इस तरह से मारा गया है?
इन निहंग सिखों (Nihang Sikh) ने लखबीर सिंह की लाश को सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) से गुज़रने वाली एक ऐसी सड़क पर Baricade से लटकाया. जहां से रोज सैंकड़ों गाड़ियां गुजरती है. सवाल ये है कि एक लाश, जिसके हाथ और पैर कटे हुए हैं. उसे सार्वजनिक स्थान पर लटाकर क्या आम लोगों को डराने की कोशिश की गई? तालिबान भी लोगों के मन में डर पैदा करने के लिए ऐसे ही किसी व्यक्ति के पहले हाथ और पैर काटता है और फिर उसे किसी सार्वजनिक स्थान पर लटका दिया जाता है.
हरियाणा पुलिस ने फिलहाल इस मामले में कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ एक FIR दर्ज कर ली है. इस मामले में एक निहंग सिख जिसका नाम सरवजीत सिंह है उसे हिरासत में ले लिया गया है.
संयुक्त किसान मोर्चा (Farmers Protest) के एक नेता का ये दावा है कि ये हत्या निहंग सिखों ने ही की है. संयुक्त किसान मोर्चा ने ये भी कहा है कि हत्या करने वालों और मारे गए व्यक्ति से उनके संगठन का कोई लेना देना नहीं है. प्रत्यक्षदर्शियों ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर बताया कि जब लखबीर सिंह की सरेआम हत्या कर दी गई. उसके बाद मौके पर पहुंचे पुलिस वाले भी इन निहंग सिखों के खिलाफ कार्रवाई करने से डर रहे थे.
इस हत्याकांड के बाद बाबा बलवान सिंह नाम के एक व्यक्ति ने Facebook पर एक वीडियो पोस्ट करके इस हत्या की जिम्मेदारी ली. साथ ही इस व्यक्ति ने इस वीडियो में लोगों को अपना फोन नंबर भी दिया और कहा कि कोई चाहें तो वो इस नंबर पर कॉल करके इस हत्या की जानकारी ले सकता है.
जो नंबर इस व्यक्ति ने दिया था, उस पर ज़ी न्यूज ने कॉल किया. उस व्यक्ति ने फोन उठाकर कहा कि वो अभी सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) पर ही मौजूद है और अगर कोई भी चाहे तो वो आकर इस बारे में बात कर सकता है. अब सवाल ये है कि अगर ये व्यक्ति सच में सिंघू बॉर्डर पर मौजूद है तो पुलिस ने अभी तक इसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया है.
इसके अलावा बाबा नारायण सिंह नाम के एक निहंग सिख (Nihang Sikh) ने भी अपनी Facebook Post में ये दावा किया था कि उसने लखबीर सिंह के पैर काटे थे. वहीं अमनदीप सिंह नाम के एक निहंग सिख ने उसके हाथ काटे थे. हालांकि बाद में इस Facebook Post को डिलीट कर दिया गया. लखबीर सिंह के घर वालों का कहना है कि वो तो सिर्फ एक सेवादार था और उस पर गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान के झूठे आरोप लगाए गए हैं.
इस पूरे मामले पर हमेशा की तरह राजनीति भी शुरू हो गई है. विपक्षी पार्टियां सरकार पर आंदोलन को बदनाम करने का आरोप लगा रही है. वहीं बीजेपी कह रही है कि अब ये आंदोलन समाप्त कर दिया जाना चाहिए.
पिछले वर्ष पटियाला में भी ऐसी ही एक घटना सामने आई थी. जब निहंग सिखों ने एक पुलिस इंस्पेक्टर का हाथ सिर्फ इसलिए काट दिया था क्योंकि उसने उन्हें सब्जी मंडी में प्रवेश की इजाजत नहीं दी थी. उस समय पंजाब समेत पूरे देश में LockDown लगा हुआ था.
इसी तरह जब 2020 की शुरुआत में दिल्ली में दंगे हुए थे, तब भी एक निहंग सिख (Nihang Sikh) हाथ में तलवार लेकर एक पुलिस वाले के पीछे दौड़ रहा था. इसी साल 26 जनवरी के मौके पर लाल किले के पास हिंसा हुई थी.तब भी कुछ निहंग सिखों ने आस पास खड़े लोगों को और पुलिस वालों को डराने की कोशिश की थी.
शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर हुई हत्या के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. याचिका में मांग की गई है कि अब इस आंदोलन को समाप्त करा दिया जाए.
जिन निहंग सिखों पर इस व्यक्ति की हत्या का आरोप है, उनका इतिहास 320 वर्ष पुराना है. वर्ष 1699 में सिखों के आखिरी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की शुरुआत की थी. खालसा पंथ के पास दो तरह के सैनिक थे. एक वो, जो साधारण कपड़े पहनते थे और दूसरे वो जो नीले रंग के कपड़े पहनते थे. नीले रंग के कपड़े पहनने वालों को ही निहंग कहा गया.
कुछ लोग मानते हैं कि निहंग (Nihang Sikh) फारसी भाषा का शब्द है. जिसका अर्थ होता है मगरमच्छ या तलवार. जबकि कुछ लोग इसकी उत्पत्ति संस्कृत के निशंक शब्द से मानते हैं. जिसका मतलब होता है निडर और शुद्ध.
खालसा पंथ में निहंग सैनिकों को शामिल करने का उद्धेश्य था आक्रमणकारियों से धर्म की रक्षा करना. 18वीं शताब्दी में जब अफगानिस्तान से आए अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कई बार आक्रमण किया तो उसे रोकने में निहंग सिखों की बड़ी भूमिका थी. निहंग सिख सैनिक बहुत शानदार योद्धा माने जाते थे. इनके बारे में कई अंग्रेज़ अफसरों ने भी लिखा था कि उन्होंने कहीं भी निहंगों से बेहतर तलवारबाज़ और तीरंदाज़ नहीं देखे.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में भी निहंगों का एक जत्था हुआ करता था. जो खतरनाक इस्लामिक आक्रमणकारियों से लड़ने में माहिर था. निहंग सिखों का धार्मिक चिह्न निशान साहिब भी नीले रंग का होता है जबकि बाकी के सिख केसरी रंग के निशान साहिब को अपना धार्मिक चिन्ह मानते हैं.
अब सवाल ये है कि जो सेनाएं एक जमाने में धर्म की रक्षा करने के लिए बनाई गई थी. उनका आज के दौर में क्या काम है? अगर ये परंपरा का हिस्सा है तो फिर परंपरा के नाम पर इन्हें कत्ले आम की इजाजत कैसे दी सकती है?
भारत को आक्रमणकारियों से बचाने में निहंगों (Nihang Sikh) की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन अगर इन्ही में से कोई अपने ही देश में लोगों के हाथ पांव काटने लगे और उनकी हत्याएं करने लगे तो फिर तालिबान और हमारे देश के लोकतंत्र में फर्क ही क्या रह जाएगा.
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सिंघू बॉर्डर पर जो कुछ हुआ, वो ये बताता है कि अब इस आंदोलन को हिंसक लोगों ने हाईजैक कर लिया है. अब इस आंदोलन में किसानों की नहीं चल रही बल्कि यहां उन लोगों का कब्ज़ा है जो भिंडरावाला जैसे आतंकवादी को अपना आदर्श मानते हैं और जो अब हिंसा के दम पर अपनी शर्तें मनवाना चाहते हैं.
इसलिए अब इस आंदोलन (Farmers Protest) को खत्म करने का समय आ गया है. किसानों को भी इस बारे में सोचना चाहिए और सरकार को भी अब सख्त कदम उठाते हुए इस आंदोलन को खत्म करवाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.
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