EXCLUSIVE: 'आतंकवाद पर आखिरी प्रहार का वक्त आ चुका है...', अनंतनाग एनकाउंटर पर बोले शहीद विक्रम बत्रा के पिता
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EXCLUSIVE: 'आतंकवाद पर आखिरी प्रहार का वक्त आ चुका है...', अनंतनाग एनकाउंटर पर बोले शहीद विक्रम बत्रा के पिता

Jammu-Kashmir Terrorism: जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष और डीएसपी हुमायूं भट्ट शहीद हो गए. इस घटना के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. 

EXCLUSIVE: 'आतंकवाद पर आखिरी प्रहार का वक्त आ चुका है...', अनंतनाग एनकाउंटर पर बोले शहीद विक्रम बत्रा के पिता

Vikram Batra Father: आंखों में आंसू हैं, दिल में गुस्सा है और घरों में मातम पसरा है. परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है.  बच्चे अपने पापा के बारे पूछ रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों के साथ हुए एनकाउंटर में तीन घरों के चिराग बुझ गए. इस एनकाउंटर में मां भारती के वीर सपूतों कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धोनैक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट्ट ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. पूरा देश इन सूरमाओं की बहादुरी को नमन कर रहा है. लोगों का खून उबल रहा है.

आतंकियों का खात्मा करने की बात लगातार उनकी जुबान पर आ रही है. लेकिन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई थमी नहीं है. कर्नल मनप्रीत, मेजर आशीष और डीएसपी हुमायूं भट्ट के बलिदान का बदला जब तक दहशतगर्दों से लिया नहीं जाएगा, तब तक उन मांओं के कलेजे में ठंडक नहीं पहुंचेगी, जिनके जिगर का टुकड़ा सदा के लिए तिरंगे की ओट में चला गया.  

परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल

जरा कर्नल मनप्रीत सिंह के 6 साल के बेटे और 2 साल की बेटी के बारे में सोचिए. जब वो पूछेंगे कि पापा कहां हैं तो क्या जवाब देंगे. उनको तो यही लग रहा होगा कि फ्री होंगे तो पापा फोन करेंगे, छुट्टियां होंगी तो घर आ जाएंगे. परिवारवाले तो वक्त के साथ खुद को संभाल लेंगे लेकिन मासूमों को कभी अपने पिता की गोद नसीब नहीं होगी. कर्नल मनप्रीत की पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है. मां बेहाल हो रही है. रिश्तेदार परिवार को ढांढस बंधाने में जुटे हैं और सरकार से एक्शन लेने की गुहार लगा रहे हैं.  

हरियाणा के पानीपत में मेजर आशीष के घर में भी पत्नी, मां और 3 बहनों का हाल भी ऐसा ही है. उनकी चीखें कलेजे को चीर रही हैं. मेजर आशीष भी दो साल की बेटी के पिता हैं. उस मासूम को तो शायद समझ भी नहीं आ रहा होगा कि अचानक घर में ये क्या हो गया. क्यों उसकी मां, दादी और बुआएं रो रही हैं. 23 अक्टूबर को  मेजर आशीष का जन्मदिन था और उसी दिन गृह प्रवेश की तैयारी की जा रही था. मेजर धौंचक ने सबकुछ प्लान कर लिया था. लेकिन उनकी शहादत के बाद पूरा परिवार गमजदा है. जिस घर में आशीष को शिफ्ट होना था वो तो बनकर तैयार हो गया है पर अब मेजर आशीष नहीं हैं.

हुमायूं भट्ट की दो महीने की बेटी

डीएसपी हुमायूं भट्ट की तो पिछले ही साल शादी हुई थी. उनकी बेटी की उम्र तो महज दो महीने है. हुमायूं भट्ट तो अभी अपनी बेटी के साथ जी-भरकर खेले भी नहीं होंगे. भविष्य के लिए सपने संजो रहे होंगे. अपने फर्ज के आगे परिवार को कम ही समय दे पाए होंगे. उससे पहले ही दो महीने की मासूम के सिर से पिता का साया आतंकवाद के कारण उठ गया. डीएसपी हुमायूं भट्ट के पिता भी जम्मू-कश्मीर पुलिस में IG रह चुके हैं. शहादत की खबर मिलने के बाद से DSP हुमायूं भट के घर में मातम पसरा है. परिवार के लोगों का रो-रोकर बुरा हाल है. पूर्व IPS गुलाम हसन के लिए बेटे का ताबूत लेकर चंद कदम चलना भी मुश्किल हो गया. कंपकंपाते कदम आगे तो बढ़े पर वो खुद को संभाल नहीं पाए. घर की दहलीज पर एक कोने से सटकर शहीद की पत्नी और मां बिलख-बिलख कर रो रही हैं. शायद उनका दिल ये अभी भी मानने को तैयार नहीं है कि घर का चिराग इस दुनिया में नहीं रहा. घर में जहां दो किलकारियां गूंज रही थीं, अब वहां लोगों की आंखों में सिर्फ आंसू हैं.

क्या बोले GL बत्रा

इस बारे में जब हमने करगिल युद्ध के 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा से बात की तो उन्होंने कड़े शब्दों में इस कायरतापूर्ण घटना की निंदा करते हुए कहा, 'आतंकवाद पर अब ऐसा प्रहार करने का वक्त आ गया है, जैसा पहले कभी न हुआ हो. उन्होंने कहा कि हमारे जवान पहले भी शहीद होते रहे हैं. लेकिन आतंकवाद कम नहीं हुआ. इसलिए जरूरी है कि आतंकवाद और आतंकियों को सबक सिखाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि धारा 370 हटने के बाद आतंकी बौखला गए हैं. कहीं न कहीं जी20 समिट के कारण पूरी दुनिया में जो हिंदुस्तान की तारीफ हो रही है, उससे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बौखला गई है. इसलिए पाकिस्तान लगातार आतंकवादियों को हिंदुस्तान पर हमले करने भेज रहा है.'

31 जुलाई तक 11 जवानों ने दी शहादत 

मॉनसून सत्र में सरकार ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि साल 2018 से लेकर जुलाई 2023 तक 791 आतंकी घटनाओं में 184 नागरिक और 319 जवान शहीद हुए हैं. इसी साल 31 जुलाई तक 11 जवान सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं. सरकार जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर लगाम लगाने के दावे तो करती रही है लेकिन आतंकवाद को रोकने के लिए अब और कड़े कदम उठाने होंगे ताकि किसी मासूम के सिर से पिता का साया न उठे, किसी वीरांगना की मांग सूनी न हो और मां की गोद न उजड़े. 

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