Google ने लोकप्रिय कवयित्री महादेवी वर्मा को इस खास Doodle से किया याद
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Google ने लोकप्रिय कवयित्री महादेवी वर्मा को इस खास Doodle से किया याद

सर्च इंजन गूगल ने शुक्रवार को स्वतंत्रता सेनानी, महिला अधिकार कार्यकर्ता और हिंदी की लोकप्रिय कवयित्री और ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजी जा चुकीं महादेवी वर्मा को उनके जन्मदिन पर याद किया.

महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल 1982 को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था

नई दिल्ली: सर्च इंजन गूगल ने शुक्रवार को स्वतंत्रता सेनानी, महिला अधिकार कार्यकर्ता और हिंदी की लोकप्रिय कवयित्री और ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजी जा चुकीं महादेवी वर्मा को साहित्य में उनके अतुलनिय योगदान के लिए याद किया. महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य में उनके इस उत्कृष्ट योगदान के लिए 27 अप्रैल 1982 को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया. इस दिन को याद करते हुए गेस्ट कलाकार सोनाली जोहरा ने महादेवी वर्मा का डूडल तैयार किया है, जिसमें महादेवी वर्मा पेड़ की छांव में कुछ लिखते हुए नजर आ रही हैं.

  1. गूगल ने महादेवी वर्मा को किया याद
  2. महादेवी वर्मा पर बनाया खास डूडल
  3. रचनाओं में दिखता था नारीवादी दृष्टिकोण

रूढ़िवादी परिवार में हुआ जन्म
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ था. उनकी शादी महज नौ साल की उम्र में 1916 में हो गई थी. वह शादी के बाद अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए अपने घर में ही रहीं. महादेवी वर्मा को लेखक बनने के लिए प्रोत्सहन उनकी मां की ओर से मिला. उनकी मां ने ही महादेवी को संस्कृत और हिंदी में लिखने को प्रोत्साहित किया. संस्कृत में मास्टर डिग्री की पढ़ाई करने के दौरान ही महादेवी वर्मा ने संस्कृत में अपना पहला छंद लिखा. इसे बाद में उनकी दोस्त व रूममेट रहीं प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने खोजा था. तब जाक उनकी ये रचना दुनिया के सामने आ पाई थी.

रचना में होता था नारीवादी दृष्टिकोण
महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य में छायावाद आंदोलन के आधारभूत कवियों में से एक माना जाता है. उनकी अधिकतर कविताएं और निबंध नारीवादी दृष्टिकोण पर केंद्रित होते हैं. महादेवी वर्मा की आत्मकथा 'मेरे बचपन के दिन' ने उस समय के बारे में लिखा है, जब एक लड़की को परिवार पर बोझ समझा जाता था. उनके काम को मैगजीन्स और किताबों में जगह मिली. उनकी लघु कथाओं को भी छापा गया. उनके कई कार्य कालजयी साबित हुए. हिंदी साहित्य महादेवी वर्मा के बिना अधूरा है.

महादेवी वर्मा हमेशा सीधा-साधा जीवन ही जीती रहीं. वे हमेशा सफेद सादी साड़ी में नजर आती थीं. कहा जाता था कि महादेवी वर्मा अपने लेखन में इतनी डूबी रहती थीं कि वे शीशा तक नहीं देखती थीं.

महादेवी वर्मा को 1956 में पद्मभूषण, 1979 में साहित्य अकादमी फैलोशिप और 1988 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया. उनका 11 सितंबर 1987 को निधन हो गया था.

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