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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi Hight Court) ने सोमवार को एक महिला को 28 सप्ताह के भ्रूण के चिकित्सीय गर्भपात की इजाजत दे दी. महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दी थी और गंभीर जन्म दोष से पीड़ित गर्भ को खत्म करने की अनुमति मांगी थी. यह अजन्मा बच्चा अविकसित मस्तिष्क वाला और अधूरे स्कल्प (खोपड़ी) का था. यह आदेश इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम 1971 में गर्भ को 20 हफ्ते के बाद हटाने पर रोक है.
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने 7 जनवरी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) से कहा था कि वह महिला के गर्भ के हटाने की फिजीबिलिटी पर रिपोर्ट पेश करे. इस मामले में महिला ने अदालत को बताया था कि 27 हफ्ते 5 दिनों के गर्भ की अल्ट्रा-सोनोग्राफी में पता चला था कि भ्रूण एनसेफली से पीड़ित था जो उसके जीवन को अक्षम बनाता है.
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डॉक्टरों ने कहा था कि एडवांस टेक्नॉलॉजी के जरिए यह महिला के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है कि वह अपनी गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय भ्रूण का गर्भपात करा सकती है. महिला ने दावा किया, '20 हफ्ते तक समयसीमा कठोर, भेदभावपूर्ण है और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है.'