Allahabad High Court: इलाहाबाद नहीं इस जगह हुई थी हाईकोर्ट की स्थापना, रोचक है ट्रांसफर की पूरी कहानी
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Allahabad High Court: इलाहाबाद नहीं इस जगह हुई थी हाईकोर्ट की स्थापना, रोचक है ट्रांसफर की पूरी कहानी

History of Allahabad High Court: इलाहबाद उच्च न्यायालय की स्थापना ब्रिटिश काल में 1866 में की गई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के बनने की कहानी काफी दिलचस्प है जिसे इतिहास के पन्नों के जरिए आपको बताते हैं.

Allahabad High Court: इलाहाबाद नहीं इस जगह हुई थी हाईकोर्ट की स्थापना, रोचक है ट्रांसफर की पूरी कहानी

High Court Allahabad was stablish on 11 June: इलाहाबाद हाईकोर्ट को विश्व के सबसे बड़े हाईकोर्ट का दर्जा मिला है. इलाहाबाद हाईकोर्ट भारतीय न्यायिक व्ययवस्था के इतिहास का चौथा सबसे पुराना हाई कोर्ट (Oldest High Court of India) है. जिसकी स्थापना अंग्रेजों ने 1886 में की थी. 

भारत की तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत इससे पहले 1862 में सबसे पहले कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में हाई कोर्ट की स्थापना कर चुकी थी. इसके कई सालों बाद आगे चलकर ब्रिटिश इंडिया यानी भारत के हर प्रान्त का अपना हाई कोर्ट बन गया, वहीं 1950 के बाद प्रान्त का हाई कोर्ट संबंधित राज्य का हाई कोर्ट बन गया. सन 1911 के उच्च न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत हर हाईकोर्ट में जजों की अधिकतम संख्या को 16 से बढ़ाकर 20 कर दिया गया जिसमें मुख्य न्यायाधीश का पद भी शामिल था.

आगरा हाईकोर्ट कैसे बना इलाहाबाद हाईकोर्ट? 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय मूल रूप से ब्रिटिश राज में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के अन्तर्गत आगरा (Agra) में 17 मार्च 1866 को स्थापित हुआ था. इसके कार्य क्षेत्र में ब्रिटिश भारत के सभी उत्तर और पश्चिम प्रान्त आते थे. इस कोर्ट के पहले मुख्य न्यायधीश के रूप में सर वाल्टर मॉर्गन को नियुक्त किया गया था, जबकि इसके पहले रजिस्ट्रार के रूप में मिस्टर सिम्पसन की नियुक्त हुई थी. 3 साल बाद 1869 में इसे आगरा से इलाहाबाद ट्रांसफर कर दिया गया. 11 मार्च 1919 से इसका नाम बदलकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय कर दिया गया था. उस दौरान एक पूरक लेटर्स पेटेंट द्वारा इसका पदनाम बदलकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय (द हाईकोर्ट आफ जूडीकेचर ऐट इलाहाबाद) कर दिया गया. यही पदनाम आज तक दस्तावेजों में इस्तेमाल हो रहा है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक 2 नवम्बर 1925 को अवध न्यायिक आयुक्त (Oudh Judicial Commissioner) ने अवध सिविल न्यायालय अधिनियम (Oudh Civil Courts Act) 1925 की गवर्नर जनरल से स्वीकृति लेकर संयुक्त प्रान्त विधानमण्डल (United Provinces Legislature) के जरिये मंजूर करवा कर इस कोर्ट को अवध चीफ कोर्ट (Oudh Chief Court) के नाम से लखनऊ में ट्रांसफर कर दिया गया. 2 नवंबर 1925 को, अवध न्यायिक आयुक्त के फैसले को लखनऊ में अवध मुख्य न्यायालय के जरिये बदल दिया गया. 

जहां अवध सिविल कोर्ट अधिनियम 1925 (Avadh Civil Courts Act 1925) के जरिये, गवर्नर जनरल की पिछली मंजूरी के साथ इस कानून को पारित करने के लिए संयुक्त प्रांत विधानमंडल का जरिये अधिनियमित (Enacted) किया गया. 25 फरवरी 1948 को अवध के मुख्य न्यायालय को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ मिला दिया गया. वर्तमान में इलहाबाद हाई कोर्ट दो हिस्से हैं. मुख्य कोर्ट की बिल्डिंग इलाहबाद यानी आज के प्रयागराज जिले में ही है, जबकि दूसरा हिस्सा यानी इसकी दूसरी बेंच लखनऊ में स्थित है. 

यूं पड़ी वर्तमान भारतीय न्यायिक व्यवस्था की नींव

बता दें कि सन 1834 से 1861 के बीच भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम लागू होने से पहले भारत में दो प्रकार के न्यायालय कार्यरत थे. सम्राट के न्यायालय और ईस्ट इंडिया कंपनी के न्यायालय, जिनके अधिकार क्षेत्र भिन्न थे. यानी तब देश में दोहरी और जटिल न्याय प्रणाली चलन में थी. ब्रिटिश महारानी द्वारा भारत के शासन को प्रत्यक्ष रूप से संभालने की नीति ने दो प्रकार के न्यायालयों के एकीकरण की समस्या का निराकरण कर दिया था. इस तरह सभी लोगों पर लागू होने वाली भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी तथा दीवानी और आपराधिक प्रक्रिया संहिताएं पारित की गई. ब्रिटिश संसद द्वारा सन् 1861 में पारित भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम विधेयक पेश करने के समय सर चार्ल्स वुड ने ब्रिटिश संसद में कहा था कि संपूर्ण देश में केवल एक सर्वोच्च न्यायालय होगा तथा दो के बजाय केवल एक अपील न्यायालय होगा मुझे आशा है कि इस प्रकार गठित उच्चतर न्यायालय सामान्य रूप से पूरे भारत में न्यायिक प्रशासन में सुधार लाएंगे.

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