Baba Bageshwar Dham Holi 2023: पूरे देश में रंगों के त्योहार होली का जश्न बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस बीच बागेश्वर धाम में भी फागुन की धूम के बीच होली पर जबरदस्त आयोजन हुआ. त्योहार के इस मौके पर बाबा धीरेंद्र शास्त्री ने होली और धाम के इतिहास पर चर्चा की.
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Dhirendra Shastri Holi Interview: बागेश्वर धाम (Bageshwar Dham) के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) ने होली के त्योहार पर बागेश्वर धाम का इतिहास बताते हुए Zee News के साथ कई विषयों पर खुलकर बात की है. अपने अब तक के इस सबसे खास और विस्फोटक इंटरव्यू में बागेश्वर बाबा ने सनातन विरोधियों पर जमकर प्रहार भी किया. ज़ी न्यूज से बात करते हुए उन्होंने 'ठठरी के' (Thathri Ke) शब्द का मतलब बताते हुए भाषा विन्यास, गीत-संगीत और संस्कृति पर विस्तार से चर्चा की. आइए अब आपको पढ़वाते हैं बाबा के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के कुछ अंश.
सवाल: कैसे शुरू हुई होली की परंपरा?
बागेश्वर धाम के बाबा ने बताया कि झांसी से 80 किमी दूर ऐरच से होली परंपरा की शुरुआत हुई. ऐरच के पास ही हिरण्यकश्यप का राज था. उन्होंने होली की प्रासंगिकता को युगों पुराने इतिहास से जोड़ते हुए ये बताया कि आखिर होलिका कैसे जल गई. धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि जो कोई भी चाहे वो कितना ताकतवर क्यों न हो अगर वो भगवान के भक्त के साथ अपराध करता है तो उसे भगवान के रोष की अग्नि जला देती है.
होली बागेश्वर धाम वाली : राख और भस्म में क्या अंतर है? बाबा बागेश्वर ने समझाया#HoliBageshwarDhamWali #BabaKiHoli #Holi #Holi2023 #DhirendraKrishnaShastri@DChaurasia2312 pic.twitter.com/2ajZSAk8Mx
— Zee News (@ZeeNews) March 8, 2023
बुंदेलखंड की महिमा
इस भूधरा की महिमा बताते हुए बाबा ने कहा भगवान राम 12 साल तक चित्रकूट के आसपास रहे, महापुरुषों की जन्मस्थली, कालपी, वेदव्यास की जन्मस्थली है. इसलिए ये बहुत पवित्र और शक्तिशाली भूमि है. जहां उनके धाम में साक्षात हनुमान जी विराजमान हैं.
बीड़ा पान
-होली के दिन रात्रिकाल के दिन प्रसाद के तौर पर लगाया जाता है. राक्षस संकटों का नाश हो जाता है
बाबा की भभूति
-भभूति ही विभूति बनाती है. शास्त्रों में भभूति का बड़ा महत्व है. भभूति नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है.
बागेश्वर धाम
-यहां स्वयं हनुमान जी हैं. प्रथम बार यहीं स्थापना हुई. निगेटिव एनर्जी वाले यहां पॉज़िटिव हो जाते हैं
दादा ही गुरू थे
-दादा पर बागेश्वर जी की कृपा थी. दादा की महिमा देखकर आकर्षण बढ़ा.
कैसा था बचपन
-मैंने भिक्षा मांगकर बचपन गुज़रा. घर की हालत अच्छी नहीं थी. त्योहार में भी परिवार को अच्छा भोजन, कपड़ा मयस्सर नहीं था
दादा ने बाबा से जोड़ा
-हमारी हालत देखकर दादा ने बालाजी से हमें जोड़ा. कहा इससे बड़ी संपत्ति कुछ नहीं
चाय का चमत्कार
-दादा जी सिर्फ मुझे ही जूठी चाय पिलाते थे. ये एक आश्चर्य था. वो गुरु की हैसियत से शायद कुछ देख रहे थे.
'बाबा ने हनुमान से मिलाया'
-संकट में थे तो दादाजी के पास गये. मुझे हनुमान से मिलवाने का श्रेय मेरे बाबा जी को जाता है.
'मैं चमत्कारी नहीं'
-किसी तरह का चमत्कार नहीं करता हूं. सिर्फ कृपा है, जिसका वेदों में वर्णन है
पर्चे की परंपरा
-दादादजी पहले सिलेट पर लिखते थे.. धीरे-धीरे कॉपी आई और फिर 2016 से पर्चा आ गया
'बुंदेलखंड मेरी आत्मा'
-मैं कभी गढ़ा छोड़कर नहीं जाऊंगा. मैं पुनर्जन्म में भी गढ़ा ही मांगूंगा. बुंदेलखंड से पलायनवाद रुकना चाहिए
'मैं हनुमान जी का भक्त'
-हम कोई अमीर नहीं हैं. धनवान नहीं हैं. हमारे पास तो बस हनुमान हैं.
होली के रंग बागेश्वर बाबा के संग
बुंदेलखंड के एरच में भगवान नरसिंह की मूर्ति, प्रह्लाद, प्रह्लाद कुंड भी है, बड़ी मान्यता है. अनेक महापुरुष हैं यहां, सतयुग की मान्यता है उसका प्रारंभ यही बुंदेलखंड से हुआ.
'होली महोत्सव की बात सुनकर आश्चर्य होगा'
होली की परंपरा बुंदेलखंड से शुरु हुई. सतरंग में रंगने की कला बुंदेलखंड से आगे बढ़ी. झांसी से 80 किलोमीटर दूर एरच गांव में मान्यता है. जिसके बारे में शोध पत्र में लिखा है कि प्राचीन गांव एरच, डिकोली के पास था जहां कभी हिरण्यकश्यप का राज था. यहीं पर बेतवा नदी और बेंकटा पर्वत है. उसी पर्वत से प्रह्लाद को नीचे फेंका गया था. हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप दो भाई थे. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से द्वेष रखता है. जबकि उसका बेटे प्रह्लाद पर प्रभु की भक्ति का रंग चढ़ा था. उसे नारद ऋषि ने गर्भ में ज्ञान दिया था. पहलाद को नारायण भगवान की रंगत लगी थी, इसलिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसका कोई समाधान न निकला.
'खबर मोरी लै रइयो, अरे हां...बागेश्वर गड़ा के हनुमान.. ऊंची है महिमा, उंची है आभा.. संगे विराजैं सन्यासी बाबा
ये परंपरागत दरबार है. जहां दिन रात मेला है. बागेश्वर बाला की कृपा से सबकी झोली भरती है. बाला जी के दर्शन, जिसकी जितनी आस्था, उसको उतना रास्ता मिलता है. समय समय पर यहां अद्भुत चीजें होती रही हैं. विधाता ने कुछ अलग रचा है बुंदेलखंड को. यहां की खुशबू, सौंदर्य, पहाड़, भूमि सब अदभुत है.
पूरे शरीर में सिंदूर वाली होली
होली के दिन कोई भी साधक, चमेली की तेल की वजह सिंदूर को नियम विधि के साथ भगवान को चोला चढ़ाता है,
बीड़ा पान , होली के दिन रात्रिकाल के दिन प्रसाद के तौर पर लगाता है, राक्षस संकटों का नाश हो जाता है.
होली की रात साधकों की रात
हनुमान जी उस रात को पावरफुल होते हैं.
'ठठरी के का उदाहरण'
'ठठरी के' शब्द का अर्थ लोग गलत लगाते हैं. ये बुंदेलखंड का भावनात्मक शब्द है. जिसका अर्थ नककटा, ठठरी और अर्थी से लगाया जाता है. इसकी भावना में गुस्सा जाहिर होता है.
मृत्यु शाश्वत सत्य - फिल्म स्टार को बाबा का अजब जवाब
एक फिल्म स्टार का किस्सा सुनाते हुए बागेश्वर बाबा ने ठठरी और भभूति का अंतर समझाते हुए कहा कि एक बड़े कलाकार आए थे परीक्षा लेने. उनका पर्चा निकालने के पहले ही मैंने इस शब्द का प्रयोग किया तब वो सहम गए तो मैंने कहा - मृत्यु होगी इसे तो कोई नहीं रोक सकता. वो हैरान!फिर मैंने समझाया डरने की जरूरत नहीं है. ये शास्वत सत्य है.
भभूति और राख में अंतर
भस्म जो महादेव पर चढ़ जाए, जो अपने आप को मिटाकर के सनातन या ईष्ट के लिए समर्पित हो जाए, उसकी राख भी भस्म बन जाती है. राख वो है जो सनातन के काम नहीं आया , उसके शरीर के जलने के बाद जलने वाली वस्तु राख है सनातन के काम हो जाए तो वो भस्म है. लेकिन अभिमंत्रित अनुष्ठान, तिल जमा चावल, लकड़ियों का प्रयोग करके मंत्रोच्चार करके, यज्ञ से जो ऊर्जा संचित करके वो भभूति होती है, भभूति ही राख होने से बचाती है, हमें नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है, इसी कारण महादेव को भस्म चढ़ाने का बड़ा चलन है.
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