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नई दिल्ली: आज 26 जनवरी है और भारत अपना 73वां गणतंत्र मना रहा है. आपमें से बहुत सारे लोग सुबह जल्दी उठ कर गणतंत्र दिवस की परेड देखेंगे और बहुत सारे लोग देर से सोकर उठेंगे, क्योंकि उनके लिए ये दिन, सिर्फ एक छुट्टी का दिन है.
ऐसे तमाम लोगों ने पहले से ही ये सोचना शुरू कर दिया होगा कि वो 26 जनवरी को कहां पार्टी करेंगे? कौन सी फिल्म देखेंगे? और कहां घूमने जाएंगे? लेकिन एक गम्भीर और भारी भरकम सवाल, जिससे आप हमेशा बचना चाहते हैं, वो ये है कि क्या आप आजादी के लगभग 75 साल बाद इस गणतंत्र की स्थिति से खुश हैं? दुनिया में और भी कई ऐसे देश हैं, जो 1947 के बाद आजाद हुए हैं और आज हमसे बेहतर स्थिति में हैं.
आज हम आपको बताएंगे कि चीन ने, दक्षिण कोरिया ने, सिंगापुर ने और इजरायल ने ऐसा क्या खास किया, जो हम नहीं कर पाए. भारत की सबसे बड़ी गलती ये रही कि हमने एक राष्ट्र के तौर पर अपना रोडमैप, पश्चिमी देशों की नकल करके कॉपी पेस्ट कर लिया. हमने अपनी स्थितियों का, अपनी कमजोरियों का और अपनी ताकत का आंकलन किया ही नहीं. अपने संविधान से लेकर चुनाव तक, सबकुछ Copy Paste कर लिया. इसलिए आज गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हम इस बात का विश्लेषण करेंगे कि क्या भारत आज एक कॉपी-पेस्ट वाला देश बन कर रह गया है?
1947 के जिस दौर में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी, उसी दौर में कई और देश आजाद हुए थे. वर्ष 1949 में चीन में पहली बार Communist शासन आया. वर्ष 1945 में कोरिया को जापान से आजादी मिली. साल 1948 में कोरिया का विभाजन हो गया. यहीं से दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया नाम के दो देश दुनिया के नक्शे पर आए.
वर्ष 1948 में इजरायल की एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापना हुई और वर्ष 1965 में Malaysia से अलग होकर सिंगापुर एक देश बना. लेकिन आज भारत को छोड़ कर ये बाकी देश काफी विकसित और अमीर बन चुके हैं. आज भारत Electronics के सामान और गाड़ियों के लिए दक्षिण कोरिया और चीन की कम्पनियों पर काफी हद तक निर्भर है. जबकि इजरायल से भी हमारा देश हथियारों का आयात करता है.
आज World Innovation Index में चीन 12वें, दक्षिण कोरिया पांचवें, सिंगापुर आठवें और इजरायल 15वें स्थान पर है. जबकि भारत इस सूची में इन देशों से काफी दूर 46वें स्थान पर है. इससे पता चलता है कि भारत में इनोवेशन को ज्यादा महत्व नहीं मिला और नेताओं ने इस दिशा में कोई कदम उठाए. इसी तरह चीन की प्रति व्यक्ति आय 7 लाख 82 हजार रुपये, दक्षिण कोरिया की 23 लाख 72 हजार रुपये, सिंगापुर की लगभग 45 लाख और इजरायल की 33 लाख रुपये है. जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय केवल एक लाख 45 हजार रुपये है.
यानी भारत इन देशों से आज बहुत पीछे है. इसकी वजह है, इन सभी देशों के नेताओं की सोच. इन नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए नीतियां नहीं बनाईं या Copy Paste करके दूसरे देशों को फॉलो नहीं किया. बल्कि इन नेताओं ने अपने देश को महान बनाने के लिए विकास का मॉडल बनाया.
सिंगापुर ने तय किया कि बोलने के अधिकार से ज्यादा विकास का अधिकार जरूरी है. उन्होंने अपने देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाईं और हर आने वाले संकट के बारे में पहले ही सोचा. जबकि हमारे यहां के नेता खुद को Visionary तो कहते रहे लेकिन देश के लिए उनके पास कोई Vision ही नहीं था.
हमारे देश की भौगौलिक स्थिति तो काफी अच्छी थी, लेकिन सिंगापुर समुद्र के बीच 63 छोटे-छोटे आइलैंड से मिल कर बना है. यानी आजादी के समय यहां न तो फैक्ट्री थी और न ही खेती का कोई साधन, इससे बेरोजगारी ज्यादा थी और शिक्षा का स्तर भी काफी नीचे था. लेकिन सिंगापुर की आजादी के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले ली क्वान यू ( Lee Kuan Yew) ने काफी अलग नीति अपनाई.
वह लगातार 31 वर्षों तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे और उन्होंने सिंगापुर को Third World Country से दुनिया के विकसित देशों में से एक बना दिया. हालांकि सिंगापुर में लोकतंत्र है, फिर भी सरकार में आम जनता की भागीदारी को लेकर ली कुआन यू के विचार अलग थे. उन्होंने कहा था कि रवांडा, बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे देशों में भी लोकतंत्र है. लेकिन लोकतंत्र के बावजूद वहां का समाज सभ्य नहीं है. किसी भी देश के लोगों का सबसे पहले आर्थिक विकास होना चाहिए. वहां के नेता चाहे जो भी कहें, नागरिकों को घर, दवाइयां, नौकरी और स्कूलों की जरूरत है.
वर्ष 1980 में Singapore Airlines की पायलट यूनियन ने हड़ताल की थी. तब ली कुआन यू ने उनकी मांगों को मानने के बदले, उन्हें काम पर वापस लौटने की चेतावनी दी थी और ये भी कहा था कि अगर हड़ताल तुरंत खत्म नहीं हुई तो वो Singapore Airlines को बंद करके नए सिरे से शुरू करने के लिए तैयार हैं. इसके बाद हड़ताल खत्म हो गई थी.
Nutshell में कहा जाए तो आजादी के बाद सिंगापुर के सामने एक देश के रूप में एक नहीं दर्जनों चुनौतियां थी, लेकिन देश के कुशल नेताओं के नई नई योजनाएं बनाई और उनको पूरा किया. आज सिंगापुर एक देश के रूप में विकसित देशों में शामिल है और भारत के लिए सिगांपुर 8वां सबसे बड़ा निवेश करने वाला देश है.
लेकिन वहीं दूसरी तरफ, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को दूरदर्शी नेता कहा जाता था. लेकिन हमारा सवाल यहां ये है कि जब नेहरू दूरदर्शी नेता थे तो उन्होंने जनसंख्या, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय व्यवस्था और पुलिस-प्रशासन जैसे मुद्दों पर ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए जिनकी देश को सबसे ज्यादा जरूरत थी.
जब भारत आजाद हुआ तब हमारे देश की कुल आबादी 36 करोड़ थी जो आज 135 करोड़ हो चुकी है. यानी लगभग 100 करोड़ की आबादी बढ़ी है. जबकि 1949 में चीन की आबादी 54 करोड़ थी, जो आज 141 करोड़ है. ये और भी ज्यादा हो सकती थी, अगर चीन जनसंख्या नियंत्रण के लिए 1980 के दशक में One Child Policy नहीं लाता.
साल 1965 में दक्षिण कोरिया की आबादी 2 करोड़ थी, जो आज पांच करोड़ है. सिंगापुर की आबादी 1948 में लगभग 19 लाख थी, जो आज 57 लाख है. इजरायल की आबादी भी 1948 में 8 लाख थी, जो आज 92 लाख है. इजरायल की आबादी इसलिए तेजी से बढ़ी, क्योंकि वहां दूसरे देशों से यहूदी धर्म को मानने वाले लाखों लोग आए थे.
भारत इन देशों से इसलिए पिछड़ गया क्योंकि हमारे देश ने इनोवेशन के बजाय Copy Paste के सिद्धांत को अपनाया. 26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ, तब इस संविधान में शासन प्रणाली की व्यवस्था उन्हीं अंग्रेजों से प्रभावित थी, जिन्होंने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक शासन किया. इसी तरह राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया आयरलैंड से ली गई थी.
संविधान लिखा होना चाहिए, ये भी हमारे देश ने अमेरिका से सीखा और आज दुनियाभर में भारत में सबसे बड़ा लिखित संविधान मौजूद है. सरल शब्दों में कहें तो उधार पर लिए गए सिद्धांतों ने भारत का स्वभाव तय करने में बहुत बड़ी गलती कर दी. होना ये चाहिए था कि भारत के लोगों की जरूरतों के हिसाब से इस देश की व्यवस्था तय होती और फिर भारत अपना भाग्य खुद लिखता. लेकिन हमारे देश के नेता पश्चिमी देशों से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने उनकी संस्कृति, उनकी भाषा और उनके सिद्धांतों के सामने पूरी तरह सरेंडर कर दिया.
इस मानसिकता का नतीजा ये हुआ कि पिछले 7 दशकों में भारत, आत्मनिर्भर बनने के बजाय दूसरे देशों पर पूरी तरह निर्भर हो गया.
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