India China LAC Issue: चीन के बारे में कहा जाता है कि वो जमीन का भूखा है, दुनिया में चीन ही एकमात्र ऐसा देश इस समय है जो अपने सभी पड़ोसियों से लड़ रहा है क्योंकि उसकी नजर भूसंपदा पर है. हाल ही में ब्रिक्स में अनौपचारिक बातचीत में चीन ने शांति के साथ विवादित मुद्दों को निपटाने पर बल दिया है लेकिन सवाल वही है कि क्या वो सही नीयत के साथ कभी बात करेगा.
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India China Relationship: दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स समिट से इतर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच बातचीत हुई. बातचीत में एलएसी पर संघर्ष को रोकने के साथ साथ विवादित मुद्दों को शांति से निपटाने पर चर्चा हुई लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या चीन जमीन पर कुछ ठोस काम करेगा. एलएसी पर चीन की तरफ से उकसाने वाली कार्रवाई रुकेगी या सिर्फ ऐसे ही बात होती रहेगी. हम यहां समझने की कोशिश करेंगे कि चीन की कथनी और करनी में अंतर क्यों है.
एलएसी पर ऐतराज
दरअसल चीन, सही भावना के साथ एलएसी का सम्मान नहीं करता है. इसके अलावा जिस तरह से वो ग्रेट तिब्बत की कल्पना पर काम कर रहा है जिसमें अरुणाचल, पूर्वी लद्दाख और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों पर वो अपना हक जताता है विवाद की बड़ी वजह है. चाहे अरुणाचल प्रदेश हो, उत्तराखंड हो या पूर्वी लद्दाख हो चीन की तरफ से घुसपैठ की कोशिश समय समय पर होती रहती है. ये बात अलग है कि उसके हाथ नाकामी ही लगी है. पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील के कुछ हिस्सों पर चीन अपना दावा करता है जिसे भारत नकारता है. पूर्वी लद्दाख में पैंगोग झील के फिंगर 8 तक भारत अपना दावा करता है लेकिन चीन के मुताबिक फिंगर चार के बाद भारत का दावा गलत है. जून 2020 में जब चीनी सैनिकों ने गलवान में खूनी संघर्ष पर उतर आए उसके बाद माहौल और खराब हुआ. उसके बाद से तनाव को कम करने के लिए कई कमांडर स्तर की कई दौर की बातचीत हो चुकी है, हाल ही में चुशुल-मोल्डो सीमा पर भारतीय पक्ष की ओर कमांडर स्तर की वार्ता हुई जिसे और आगे बढ़ाने का फैसला किया गया.
चुशुल और पैंगोंग विवाद का केंद्र
दरअसल दोनों देशों के बीच विवाद का केंद्र चुशुल और डेप्सांग है, चुशुल वो इलाका है जहां ते रेजांग दर्रे में 1962 में दोनों देशों की सेनाओं में भीषण झड़प हुई थी जिसमें चीनी सैनिकों को पीछे हटना पड़ा था. बता दें कि दोनों देशों के बीच करीब 3800 किमी लंबी सीमा को तीन हिस्सों में बांटा गया है. पहला हिस्सा ईस्टर्न सेक्टर जिसमें अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम. दूसरा हिस्सा मिडिल सेक्टर जिसमें उत्तराखंड और तीसरा हिस्सा वेस्टर्न सेक्टर जिसमें लद्दाख आता है. विवाद की बड़ी वजह ईस्टर्न और वेस्टर्न सेक्टर में है. सिक्किम अरुणाचल की सीमा करीब 1346 किमी, हिमाचल और उत्तराखंड में 545 किमी और और वेस्टर्न सेक्टर में 1547 किमी लंबी सीमा है.
1959 में झाउ एन लाई ने कही थी यह बात
अगर ऐतिहासिक तौर पर चीनी दावे की बात करें तो 1959 में राष्ट्रपति झाउ एन लाई ने कहा था कि भारत के कब्जे में चीन का 13 हजार वर्ग किमी है. लेकिन भारत का पक्ष है कि चीन कुल 90 हजार वर्ग किमी पर दावा करता है, जिसमें लद्दाख का करीब 38 वर्ग किमी चीनी कब्जे में है. 1959 में ही झाउ एन लाऊ ने पहली बार कहा था कि वो मैक्मोहन लाइन को नहीं मानते हैं. बता दें कि मैक्मोहन लाइन के जरिए ही चीन और भारत की सीमा निर्धारित की गई है. 1914 में मैक्मोहन ने तत्कालीनी ब्रिटिश इंडिया और चीन के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची जिसमें अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया.पूर्वी लद्दाख में करीब 12 जगहों पर विवाद की बात कही जाती है जिसमें पैंगोंग लेक भी शामिल है. यह झील समुद्र तल से करीब 4200 मीटर की उंचाई पर है और कुल लंबाई 135 किमी है. अगर एरिया की बात करें तो 600 वर्ग किमी में झील का विस्तार है. इसके ज्यादातर हिस्से पर चीन का कब्जा है जबकि भारत के हिस्से में एक तिहाई हिस्सा ही आता है, उस हिस्से पर भी चीन अपना दावा करता है.