फर्जी सॉफ्टवेयर से IRCTC की वेबसाइट में सेंधमारी, 5 लाख कीमत के कंफर्म टिकट बरामद
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फर्जी सॉफ्टवेयर से IRCTC की वेबसाइट में सेंधमारी, 5 लाख कीमत के कंफर्म टिकट बरामद

RPF डीजी अरुण कुमार के मुताबिक अभी जो भी ट्रेनें चल रही हैं उसमें कई ट्रेनें ऐसी हैं जिनमें वेटिंग लिस्ट बहुत ज्यादा रहती है. लिहाजा यह गैंग उन्हीं ट्रेनों को टारगेट करता था जिनके रूट पर यात्रियों की ज्यादा भीड़ रहती थी. अरुण कुमार के मुताबिक कोरोना काल के दौरान ही 900 से ज्यादा टिकट दलालों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: ऐसे समय में जब देश में सिर्फ 230 स्पेशल ट्रेनें ही अभी चल रही हैं. तब भी टिकट के दलाल फर्जी टिकट से खूब कमाई कर रहे हैं. इसका खुलासा देशव्यापी अभियान चलाकर खुद रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स यानी आरपीएफ ने ही किया है. 

RPF डीजी अरुण कुमार के मुताबिक अभी जो भी ट्रेनें चल रही हैं उसमें कई ट्रेनें ऐसी हैं जिनमें वेटिंग लिस्ट बहुत ज्यादा रहती है. लिहाजा यह गैंग उन्हीं ट्रेनों को टारगेट करता था जिनके रूट पर यात्रियों की ज्यादा भीड़ रहती थी. अरुण कुमार के मुताबिक कोरोना काल के दौरान ही 900 से ज्यादा टिकट दलालों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है.

फर्जी सॉफ्टवेयर रियल मैंगो को ऑपरेट करने वाले और इसके जरिए टिकट की दलाली करने वाले 50 लोगों को आरपीएफ ने देशव्यापी अभियान चलाकर 1 दिन में ही गिरफ्तार किया है. इस सॉफ्टवेयर को पहले रेयर मैंगो के नाम से ऑपरेट किया जा रहा था.

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आरपीएफ के फील्ड स्टाफ को इसकी भनक तब लगी जब 9 अगस्त को कुछ दलालों के खिलाफ आरपीएफ ने कार्रवाई शुरू की. RPF ने जब कुछ संदिग्धों को पकड़कर तहकीकात की तो पता चला कि कैसे एक बड़ा गैंग फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट में सेंध लगाकर रिजर्व टिकट बेच रहा है.

कैसे काम करता था ये गैंग?
टिकट बुक करने से लेकर टिकट बेचने तक का पूरा काला कारोबार 5 लेयर पर काम कर रहा था. आरपीएफ के डीजी अरुण कुमार के मुताबिक फेक सॉफ्टवेयर को नष्ट कर दिया गया है.

दलाल रियल मैंगो सॉफ्टवेयर के जरिए IRCTC की वेबसाइट में सेंध लगाते थे. सॉफ्टवेयर के जरिए ये लोग v3 बाईपास कर देते थे और V2 कैप्चा को बाईपास कर देते थे. मोबाइल ऐप के जरिए बैंक ओटीपी Synchronise कर देते थे और और ऑटोमेटिक तरीके से रिक्वेस्ट फॉर्म में फिल करते थे. Software Autofill से पैसेंजर और पेमेंट डिटेल फॉर्म में हो जाती थी. सॉफ्टवेयर से आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर मल्टीपल आईडी से लॉगइन करते थे. फर्जी सॉफ्टवेयर सिस्टम एडमिन और उसकी टीम, मावेन्स (Mavens), सुपर सेलर, सेलर्स और एजेंट के जरिए 5 स्तर पर चलता था. सबसे खास बात तो यह है कि सिस्टम एडमिन टिकट का पैसा बिटकॉइन के जरिए रिसीव करता था.

मुख्य अपराधी पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार
अरुण कुमार के मुताबिक आरपीएफ ने इसके मुख्य सरगना सिस्टम डेवलपर के साथ ही पूरी टीम को गिरफ्त में लिया है. इसके 5 सॉफ्टवेयर को ऑपरेट करने वाले मुख्य अपराधी पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किए गए हैं.

इसके पहले पिछले साल दिसंबर 2019 से लेकर मार्च 2020 तक आरपीएफ में इसी तरह का अभियान चलाया था और कई फर्जी सॉफ्टवेयर का भंडाफोड़ किया था. इस कार्रवाई में भी आरपीएफ 140 लोगों को गिरफ्तार किया था. अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर रेल मंत्रालय और आईआरसीटीसी का सिस्टम इतना कमजोर या लचर क्यों है जिसके चलते ऐसे फर्जी सॉफ्टवेयर सेंध लगाने में कामयाब हो जाते हैं.

आम आदमी पर मार
इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है. जिसको ट्रेन में कंफर्म टिकट नहीं मिलता और उसके हक में सिर्फ वेटिंग टिकट ही आता है. हालांकि रेलवे की तरफ से बार-बार दलील दी जाती है कि वह सिस्टम को फुल प्रूफ कर रहे हैं. लेकिन हर बार होता यही है कि फर्जी सॉफ्टवेयर बनाकर कोई भी आईआरसीटीसी की वेबसाइट में सेंध लगा लेता है.

यह हाल तब है जब कोरोना के चलते 230 स्पेशल ट्रेनें ही चल रही हैं. अंदाजा लगाइए, जब देश में सामान्य रूप से ट्रेनें चलने लगेंगी तब किस तरह से फर्जी सॉफ्टवेयर की गैंग एक्टिव होगी. हालांकि अच्छी बात यह है कि रेलवे और आरपीएफ समय-समय पर इनके खिलाफ अभियान चलाकर इनको बेनकाब कर रहे हैं. 

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