एक निजी सर्वेक्षण से पता चला है कि महिलाएं कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न, घरेलू हिसा, छेड़खानी और तीन तलाक- इन चार अपराधों की सर्वाधिक मार झेल रही हैं.
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नई दिल्ली : महिलाओं में कानून के प्रति सजगता की कमी उनके सशक्तीकरण के मार्ग में रोड़े अटकाने का काम करती है. अशिक्षित महिलाओं को तो भूल जाइए, शिक्षित महिलाएं भी कानूनी दांवपेच से अनजान होने की वजह से जाने-अनजाने में हिंसा सहती रहती हैं. ऐसे में महिलाओं को कानूनी रूप से शिक्षित करने के लिए मुहिम शुरू करना वक्त की जरूरत बन गया है. एक निजी सर्वेक्षण से पता चला है कि महिलाएं कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न, घरेलू हिसा, छेड़खानी और तीन तलाक- इन चार अपराधों की सर्वाधिक मार झेल रही हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016-17 में दिल्ली में स्टॉकिंग के 669 मामले सामने आए, घूरने के 41 मामले और दुष्कर्म के 2,155 मामले दर्ज हुए. इसके साथ ही पति या संबंधियों की ओर से उत्पीड़न और दहेज की वजह से हुई मौतों का आंकड़ा भी बहुत बड़ा है.
अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं है महिलाएं-रिपोर्ट
वर्ष 2016-2017 में महिलाओं के प्रति गंभीर अपराधों की संख्या में 2015-16 के मुकाबले 160.4 फीसदी का इजाफा हुआ है. इसका एक प्रमुख कारण है महिलाओं के अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं रहना. उन्हें पता ही नहीं है कि किस तरह की परिस्थिति में उन्हें कहां जाना है या किसकी मदद लेनी है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं महिलाओं के उन अधिकारों के बारे में जिसकी जानकारी हर महिला को होनी चाहिए.
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हर महिला को पता होने चाहिए ये संवैधानिक अधिकार
1. समान वेतन का अधिकार: बात अगर नौकरी में वेतन या फिर मजदूरी की आती है तो महिलाओं को पुरुषों को बराबर वेतन मिलना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति वेतन और मजदूरी में लिंग के आधार पर भेदभाव करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
2. नाम ना छापने का अधिकार: यौन उत्पीड़न के मामले में अगर महिला अपना नाम नहीं छिपाना चाहती है तो उसे उसका अधिकार प्राप्त है.
3. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार: पुरुष पार्टनर या फिर रिश्तेदार द्वारा किसी महिला को परेशान किया जा जाता है तो उसके खिलाफ इस कानून के तहत कार्रवाई की जाती है. यह कानून मुख्यत महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है.
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4. मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार: 21वीं सदी में कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ हेतु यह अधिकार दिया गया है. इस अधिनियम के तहत नई मां के प्रसव के बाद 6 महीने तक महिला के वेतन में किसी प्रकार की कटौती नहीं की जाती है.
5. कानून की मदद का अधिकार : कोई भी महिला या लड़की रेप का शिकार होती है तो उसे मुफ्त कानून मदद प्राप्त करने का पूरा अधिकार प्राप्त है. इसके साथ ही रेप पीड़ित महिलाओं को फ्री शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार प्राप्त है.