आम आदमी की सेवा के लिए न्यायपालिका को सुधार नहीं क्रांति की जरूरत : जस्टिस गोगोई
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आम आदमी की सेवा के लिए न्यायपालिका को सुधार नहीं क्रांति की जरूरत : जस्टिस गोगोई

इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चार वरिष्ठ जजों में जस्टिस रंजन गोगोई भी शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस रंजन गोगोई ने एक कार्यक्रम में कहा कि कोर्ट उम्मीद की आखिरी किरण है (फाइल फोटोः आईएनएस)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस रंजन गोगोई ने गुरुवार को कहा कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के योग्य बनाए रखने के लिए ‘‘ सुधार नहीं एक क्रांति ’’ की जरूरत है. जस्टिस गोगोई ने साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायपालिका को और ‘‘ अधिक सक्रिय ’’ रहना होगा. जस्टिस गोगोई ने यहां तीन मूर्ति भवन के प्रेक्षागृह में ‘‘ न्याय की दृष्टि ’’ विषय पर तीसरे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में कहा कि न्यायपालिका ‘‘ उम्मीद की आखिरी किरण’’ है और वह ‘‘ महान संवैधानिक दृष्टि का गर्व करने वाला संरक्षक ’’ है. इस पर समाज का काफी विश्वास है. 

उन्होंने समाचार पत्र ‘ इंडियन एक्सप्रेस ’ में ‘ हाउ डेमोक्रेसी डाइज ’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘‘... स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा करने वाली अग्रिम पंक्ति हैं ... . ’’ उन्होंने न्याय प्रदान करने की ‘‘ धीमी प्रक्रिया ’’ पर चिंता जतायी और कहा कि यह ऐतिहासिक चुनौती रही है. 

लेख में जस्टिस गोगोई ने हाल ही में हुई कुछ घटनाओं का जिक्र भी किया है. उन्होंने लिखा है कि क्या यहीं संवैधानिक नैतिकता की धारणा है जो में दिल्ली में सरकार बनाम एलजी के मामले में देखने को मिली और अब सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर चल रही सुनवाई में देखी जा रही है.

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जस्टिस गोगोई ने न्यायपालिका के संदर्भ में संवैधानिक इतिहास और सुप्रीम कोर्ट का जिक्र भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का रोल लगातार विकसित हुआ है. उन्होंने कहा कि 70-80 के दशक में मूल संरचना के सिद्धांत का विस्तार हुआ. ऐसे ही 1980 में आर्टिकल 21 का और 1990 के दशक तक सुशासन न्यायालय तक एक हद तक हम पहुंचे.

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आपको बता दें कि इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चार वरिष्ठ जजों में जस्टिस रंजन गोगोई भी शामिल थे. इसके बाद प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने 16 जनवरी को इन चारों न्यायाधीशों से मुलाकात की.

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इन न्यायाधीशों ने संवदेनशील प्रकृति वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई के लिये आबंटन सहित अनेक गंभीर आरोप लगाये थे. शीर्ष अदालत के सूत्रों ने बताया कि प्रधान न्यायाधीश ने सवेरे न्यायालय का कामकाज शुरू होने से पहले न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ से करीब 15 मिनट तक मुलाकात की थी.

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