कानपुर PM मोदी के लिए कितना जरूरी? जानें शहर की अनसुनी कहानी
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कानपुर PM मोदी के लिए कितना जरूरी? जानें शहर की अनसुनी कहानी

एक जमाने में कानपुर को मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट कहा जाता था. लेकिन अब उसी कानपुर को दुनिया का सबसे गंदा शहर माना जाता है और जैसे ही आज 11 हजार करोड़ रुपये की मेट्रो कानपुर के लोगों को मिली, उन्होंने मेट्रो के पिलर्स और स्टेशन पर थूकना शुरू कर दिया.

कानपुर PM मोदी के लिए कितना जरूरी? जानें शहर की अनसुनी कहानी

नई दिल्ली: आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कानपुर मेट्रो का उद्घाटन किया. उन्होंने बकायदा टिकट खरीदकर इस मेट्रो में यात्रा की और उनके इस सफर के दौरान मेट्रो लाइन के आसपास मौजूद घरों की छतों पर हजारों लोग इस उम्मीद में खड़े हुए थे कि शायद कहीं मेट्रो की खिड़की से पीएम मोदी उन्हें दिखाई दे जाएं. इसी तरह हजारों लोगों ने सड़क पर खड़े होकर भी उनका स्वागत किया.

  1. पीएम मोदी ने किया कानपुर मेट्रो का उद्घाटन
  2. मेट्रो स्टेशन और पिलर्स पर लोगों ने फैलाई गंदगी
  3. औद्योगिक शहर कैसे हुआ अनदेखी का शिकार? 

कानपुर में 11 हजार करोड़ की मेट्रो

आज हम आपको बताएंगे कि इस चुनाव में कानपुर का क्या महत्व है और साथ ही ये भी बताएंगे कि हमारे देश के इतिहास में कानपुर की क्या जगह है? एक जमाने में कानपुर को Manchester of The East कहा जाता था. लेकिन अब उसी कानपुर को दुनिया का सबसे गंदा शहर माना जाता है और जैसे ही आज 11 हजार करोड़ रुपये की मेट्रो कानपुर के लोगों को मिली, उन्होंने मेट्रो के Pillars और Stations पर थूकना शुरू कर दिया. ये विकास का सबसे दुखद पहलू है, जिसके बारे में भी आज हम आपको बताएंगे. 

प्रधानमंत्री ने IIT कानपुर के दीक्षांत समारोह में भी हिस्सा लिया. इस समारोह के दौरान कुछ छात्र दूसरे हॉल में थे और वर्चुअली प्रधानमंत्री को सुन रहे थे. इसलिए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के बाद इन छात्रों से भी मुलाकात की. वो इस दौरान छात्रों से हल्के फुल्के अन्दाज में बातचीत करते हुए भी नजर आए. प्रधानमंत्री मोदी ने इस कार्यक्रम से आत्मनिर्भर भारत का मंत्र भी देश को दिया.

मेट्रो से होगा शहर का विकास

आज प्रधानमंत्री मोदी ने कानपुर में अपनी रैली के दौरान सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से भी बात की. लेकिन वापसी के दौरान खराब मौसम की वजह से प्रधानमंत्री का विमान कानपुर से नहीं उड़ा बल्कि वो सड़क मार्ग से पहले लखनऊ गए और वहां से विशेष विमान से दिल्ली लौटे हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कानपुर को मेट्रो का जो तोहफा दिया है, उस पर कुल 11 हज़ार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. इससे ट्रैफिक की समस्या से परेशान लोगों को तो राहत मिलेगी ही साथ ही उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले कानपुर में निवेश की भी सम्भावनाएं बढ़ जाएंगी. किसी भी शहर में निवेश इस बात पर निर्भर करता है कि वहां Connectivity कैसी है. दूसरी बात बीजेपी को उम्मीद है कि कानपुर की मेट्रो बहुत सारे लोगों को मतदान केन्द्र ले जाने में भी उसकी मदद करेगी. कानपुर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का पड़ोसी जिला है और यहां औद्योगिक इकाइयां काफी ज्यादा हैं.

देश का औद्योगिक केंद्र है कानपुर

अब औद्योगिक इकाइयां ज्यादा होने से ये जिला पूर्वांचल के दूसरे जिलों को खुद से सीधे कनेक्ट करता है. क्योंकि इन जिलों में व्यापार का मार्ग कानपुर से होकर ही गुजरता है. आप इसे समझिए कि कानपुर छोटे शहरों और जिलों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है. इसलिए यहां जो भी बदलाव होगा, उसका असर बाकी जिलों पर भी पड़ेगा. कानपुर में कुल 10 विधान सभा सीटें हैं, जिनमें से 7 बीजेपी के पास हैं. इससे आप समझ सकते हैं कि कानपुर प्रधानमंत्री मोदी के लिए क्यों जरूरी है.

एक जमाने में कानपुर को Manchester of The East कहा जाता था. लेकिन अब उसी कानपुर को दुनिया का सबसे गंदा शहर माना जाता है और जैसे ही आज 11 हजार करोड़ रुपये की मेट्रो कानपुर के लोगों को मिली, उन्होंने मेट्रो के Pillars और Stations पर थूकना शुरू कर दिया. ये विकास का सबसे दुखद पहलू है. 

कैसे गुमनाम होता गया शहर?

आज आपको कानपुर के इतिहास के बारे में भी जानना चाहिए. एक जमाने में कानपुर शहर की पहचान एक बड़े और शक्तिशाली औद्योगिक क्षेत्र के रूप में होती थी. लेकिन आजादी के बाद इस क्षेत्र की इतनी अनदेखी हुई कि यहां के जिन कारखानों के किस्से पश्चिमी देशों में सुनाए जाते थे, उन पर धूल जमने लगी और कानपुर धीरे-धीरे गुमनामी में चला गया.

कानपुर का पुराना नाम कन्हैयापुर था, जो बाद में कान्हापुर बना और कान्हापुर के बाद लोग इसे कानपुर कहने लगे. मान्यता है कि इस शहर की स्थापना संचेडी के राजा हिन्दू सिंह चंदेल ने की थी, जो भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे और उन्हीं की श्रद्धा में उन्होंने इस शहर का नाम कन्हैयापुर रखा था. भगवान कृष्ण का एक नाम कन्हैया भी है. हालांकि कुछ पुराने दस्तावेजों में इसी शहर को करणापुर भी कहा गया है, जिसका संबंध महाभारत के योद्धा कर्ण से है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कर्ण ने कानपुर शहर को बसाया था और उन्हीं के नाम पर कर्ण से ये शहर कानपुर बना.

ब्रिटिश हुकूमत में लगाए गए कारखाने

18वीं शताब्दी में जब अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत के अलग अलग हिस्सों पर अपना नियंत्रण मजबूत कर रही थी, तब उसे कानपुर के बारे में पता चला. यहां स्थानीय कारोबार दूसरे शहरों की तुलना में बड़ा था और यहां से काफी कच्चा माल और अनाज दूसरे जिलों और राज्यों में पहुंचाया जाता था. इसी बात को देखते हुए अंग्रेजों ने कानपुर को अपने नियंत्रण में लेने के लिए यहां सारा जोर लगा दिया.

वर्ष 1803 आते-आते ये शहर ब्रिटिश सरकार का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था. इसी साल अंग्रेजों ने इस शहर को एक जिला घोषित किया. हालांकि तब इसे अंग्रेज Cawnpore (कॉनपोर) कहते थे. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजों ने इस शहर को छावनी में बदलना शुरू किया. यानी यहां अंग्रेजों और भारतीय सैनिकों के लिए बैरकें और तोपखाने बनाए जाने लगे. इसके अलावा अंग्रेजों ने इस शहर में लेदर और कपास की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों और कारखानों की स्थापना की और ऐसा करने के पीछे दो वजह थीं.

कारोबार के लिए अहम था कानपुर

पहला कानपुर गंगा नदी के किनारे बसा शहर है और गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है. अंग्रेजों को लगा कि अगर वो इस शहर में जिस भी सामान का उत्पादन करेंगे, उसे गंगा नदी के रास्ते कलकत्ता के बंदरगाहों तक पहुंचना आसान होगा. दूसरा कानपुर शेर सूरी मार्ग से जुड़ा हुआ था, जो कलकत्ता से लेकर पाकिस्तान तक फैला था. जो पहले अविभाजित भारत का हिस्सा था. इस मार्ग के जरिए भी अंग्रेजों के लिए व्यापार करना आसान था. अंग्रेज़ों को लगा कि अगर वो कानपुर को स्थापित कर लेंगे तो उनके लिए व्यापार भी आसान हो जाएगा और सैनिकों की पहुंच भी कानपुर के आसपास के इलाकों में बेहतर हो जाएगी.

इसी के बाद अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी में इस शहर में बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और कारखाने लगाए. इस शहर को दुनिया के नक्शे पर Manchester of The East कहा जाने लगा. 1820 के दशक में जब ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत हुई थी, तब ब्रिटेन के Manchester शहर में पहली बार दुनिया के सबसे बड़े कपड़ों के कारखाने लगाए गए थे. बाद में इसी तरह के कारखाने कानपुर में भी बने. इसलिए इस शहर को एक समय Manchester of The East कहा जाने लगा.

शहर में 17 हजार फैक्ट्री-कारखाने

हालांकि 1857 की क्रान्ति के दौरान इस शहर में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग भड़की और विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेजी मूल के लोगों को मारना शुरू कर दिया. इस घटनाक्रम से कानपुर पर अंग्रेजों की पकड़ कुछ कमजोर हुई और व्यापार पर भी इसका असर पड़ा. हालांकि बाद के वर्षों में कहानी पहले जैसी ही हो गई. आजादी के बाद भी देश के औद्योगिक क्षेत्र में कानपुर का स्थान काफी ऊपर था. लेकिन बाद में राजनीति और नेताओं की अनदेखी ने इस शहर की औद्योगिक विरासत को कमजोर करना शुरू कर दिया.

2010 आते-आते कानपुर में कई बड़ी फैक्ट्रियां और कारखाने दूसरे जिलों और राज्यों में शिफ्ट हो गए. हालांकि इस शहर की औद्योगिक ताकत कमजोर जरूर हुई है लेकिन आज भी यहां साढ़े 17 हजार फैक्ट्रियां और कारखाने हैं. पूर्वांचल में इस क्षेत्र का आज भी दबदबा है. इसलिए इस शहर में मेट्रो की शुरुआत होने से यहां काफी बदलाव दिख सकते हैं.

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