कर्नाटक संकट: बहुमत परीक्षण की मांग वाली याचिका पर कल सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
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कर्नाटक संकट: बहुमत परीक्षण की मांग वाली याचिका पर कल सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

इससे पहले राज्य कांग्रेस अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव और मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने अर्जी दायर कर 17 जुलाई के आदेश को स्पष्ट करने की मांग की थी. 

अर्जी में कहा गया है कि बहुमत खो चुकी सरकार सदन में वोटिंग को टालने में लगी है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट तुरंत बहुमत परीक्षण का आदेश दे.

नई दिल्ली : कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार से समर्थन वापस लेने वाले दो विधायक आर शंकर और एच नागेश की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ अर्जी पर सुनवाई करेगी. दरअसल, अर्जी में कहा गया है कि बहुमत खो चुकी सरकार सदन में वोटिंग को टालने में लगी है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट तुरंत बहुमत परीक्षण का आदेश दे.

इससे पहले राज्य कांग्रेस अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव और मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने अर्जी दायर कर 17 जुलाई के आदेश को स्पष्ट करने की मांग की थी. अर्जी में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट करे कि 15 विधायकों को सदन की कार्यवाही से छूट देने का आदेश पार्टी व्हिप जारी करने के संवैधानिक अधिकार का हनन है. अर्जी में पार्टी व्हिप जारी करने के संवैधानिक अधिकार का मुद्दा उठाया गया है जबकि राज्यपाल के बहुमत साबित करने का समय तय किए जाने को भी ग़लत बताया गया है.

17 जुलाई सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि कर्नाटक के इस्तीफा देने वाले 15 विधायक सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं हैं, उनकी इच्छा हो तो जाएं. कोर्ट ने ये भी कहा था कि स्पीकर को अधिकार है कि वो तय करे कि कितनी समय में विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेना है, लेकिन 15 बागी विधायकों को शक्ति परीक्षण में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. इस मामले जुड़े बड़े संवैधानिक सवाल पर कोर्ट ने आगे विस्तार से सुनवाई की जरूरत बताई थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के अधिकार को देखते हुए इस्तीफे पर कोई समयसीमा तय नहीं की थी. 

इससे पहले बागी विधायकों की तरफ से पेश वरिष्‍ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि विधायकों को इस्तीफा देने का मौलिक अधिकार है इसे नहीं रोका जा सकता. संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक इस्तीफा तुरंत स्वीकार करना होगा. जब तक इस पर फैसला नहीं होता तक तक उन्हें सदन में पेशी से छूट दिया जाए. इस पर विधानसभा स्पीकर की तरफ से दलील दी गई थी कि अयोग्यता और इस्तीफा पर फैसला का अधिकार स्पीकर का है. जब तक स्पीकर अपना फैसला नहीं दे देता तब तक सुप्रीम कोर्ट उसमें दखल नहीं दे सकता. इस पर चीफ जस्टिस ने बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी की दलीलों पर टिप्पणी की थी. उन्‍होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट स्पीकर को नहीं कह सकता है कि वह विधायकों के इस्तीफ़े या अयोग्य ठहराने की कार्रवाई किस तरह करें, 

कोर्ट स्पीकर को इसके लिए रोक या बाधित नहीं कर सकती है. हमारे सामने सवाल महज इतना है कि क्या कोई ऐसी संवैधानिक बाध्यता है कि स्पीकर अयोग्य करार दिए जाने की मांग से पहले इस्तीफे पर फैसला लेंगे या दोनों पर एक साथ फैसला लेंगे.विधानसभा स्‍पीकर की तरफ से पेश वरिष्‍ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि स्पीकर को जो इस्तीफा दिया गया है, वह वैध नहीं है. अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा कि 15 में से 11 बागी विधायकों ने अपना इस्तीफा 11 जुलाई को स्पीकर को दिया. सभी विधायकों के खिलाफ अयोग्य करार दिए जाने की कार्यवाही उनके इस्तीफे से पहले ही शुरू हो चुकी थी. स्पीकर के सामने सभी विधायक 11 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से पेश हुए. उससे पहले नहीं. 4 विधायक तो आज तक पेश नहीं हुए है.

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