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नई दिल्ली: इन दिनों कथित कोल क्राइसिस (Coal Crisis) के चलते बिजली संकट (Electricity Crisis) गहराने की आशंका को लेकर सियासत तेज है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के केंद्र सरकार को भेजे गए लेटर के बाद मामले पर सियासत तेज हो गई. हालांकि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह (RK Singh) ने केजरीवाल के दावों को अफवाह करार दिया. अब सवाल उठता है कि क्या वाकई कोल क्राइसिस है और इसकी वजह से बड़ा बिजली संकट गहरा है?
कथित कोयला संकट (Coal Crisis) पर पड़ताल के दौरान जो सच सामने आया वो सियासी दावों से बिल्कुल अलग है. सरकार के बड़े सूत्रों का कहना है कि कोयले की कोई कमी नहीं है बल्कि राज्यों की मांग के अनुसार सप्लाई देने की पूरी कोशिश की जा रही है. अभी भी 4 से 5 दिन का कोल स्टॉक है. सरकारी सूत्र के मुताबिक अभी 1.94 मिलियन टन प्रति दिन की मांग पूरी की जा रही है. अगले कुछ दिनों में 2 मिलियन टन तक सप्लाई पहुंचा दी जाएगी. कुल मिलाकर कोयले की कमी के कारण बिजली बंद नहीं होगी. यानी राज्यों की जितनी मांग है उससे ज्यादा सप्लाई आज भी हो रही है और इस मात्रा को और बढ़ा दिया जायेगा. गर्मी के पीक समय में कोल इंडिया के पास 100 मिलियन टन का स्टॉक था. इससे ऊपर स्टॉक नहीं रख सकते क्योंकि ज्यादा स्टोर करने पर उसमें आग लगने की संभावना बहुत ज्यादा होती है.
कोयला के इस संकट के पीछे कुछ प्राकृतिक और कुछ राज्यों की लापरवाही कारण बना. एक तो बरसात का मौसम इस बार लंबा चल गया. अक्टूबर महीने तक बरसात का मौसम बना रहा. इससे उत्पादन और ढुलाई दोनों पर असर पड़ा है. दूसरा कारण बना राज्यों की लापरवाही. राज्य सरकारें अमूमन 15 दिन का स्टॉक रखती हैं लेकिन अप्रैल महीने से लगातार केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखा कि अपना स्टॉक स्टोर कर लें लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. कोल मंत्रालय ने अपने पत्र में लिखा कि 100 मिलियन टन कोयला पड़ा हुआ है, आप इसे उठा लीजिए जब किसी राज्य सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो फिर पॉवर मंत्रालय ने पत्र लिखा. बावजूद इसके राज्यों ने स्टॉक नहीं बनाया. वैसे हर साल बरसात के मौसम आने से पहले ही राज्य सरकारें अपने लिए कोयले का स्टॉक बना लेती हैं लेकिन इस साल अधिकतर राज्यों ने वो स्टॉक नहीं रखा.
राज्य सरकारें अपने लिए कोयले का स्टॉक क्यों नहीं बना पाईं, इसके पीछे भी अजब कहानी है. सूत्रों के अनुसार राज्य सरकारों ने इसलिये स्टॉक नहीं बनाये क्योंकि उनको अंतरराष्ट्रीय बाजार से कोयला 60 डॉलर प्रति मीट्रिक टन मिल रहा था. इसलिये न तो उन्होंने कोल इंडिया से कोयला लिया और न ही हर राज्य को आवंटित कोल खदान से उत्पादन बढ़ाया लेकिन पिछले कुछ दिनों में ये आयातित कोयला तीन गुना महंगा हो गया. यानी इसकी कीमत 60 डॉलर से बढ़कर 193 डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई. अब सभी के हाथ पांव फूल गए. महंगा कोयला खरीद नहीं सकते थे और कोल इंडिया के आग्रह पर भी कोयले का स्टॉक नहीं बनाया था ऐसे में कोयले का रोना शुरू हो गया. इसके अलावा ये भी जानना जरूरी है कि आयातित कोयले में कमी होने के कारण उस पर आधारित थर्मल पॉवर प्लांट से उत्पादन लगभग 12 फीसदी कम हो गया जबकि देसी कोयले पर आधारित प्लांट से उत्पादन लगभग 24 फीसदी बढ़ा.
कोल इंडिया का राज्यों पर भारी बकाया
राज्य सरकारें कोयले का स्टॉक नहीं कर पाईं इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत बढ़ने के अलावा कोल इंडिया का भारी बकाया भी एक बड़ा कारण रहा. 10 राज्यों पर ही कोल इंडिया का लगभग 21000 करोड़ रुपया बकाया है. कोल इंडिया का जिन राज्यों पर बकाया है उनमें से कुछ के आंकड़े इस तरह हैं-
1. राजस्थान पर लगभग 278 करोड़ बकाया है.
2. महाराष्ट्र को 2600 करोड़ रुपये देना है.
3. तमिलनाडु पर 1100 करोड़ रुपये बकाया है.
4. बंगाल को कोल इंडिया को लगभग 2000 करोड़ रुपये देने हैं.
5. पंजाब पर कोल इंडिया का 1200 करोड़ रुपया बकाया.
6. मध्य प्रदेश पर 1000 करोड़ रुपये बकाया है.
7. कर्नाटक पर 23 करोड़ रुपये बकाया है.
8. छतीसगढ़ पर लगभग 125 करोड़ बकाया है.
9. आंध्र प्रदेश पर लगभग 250 करोड़ रुपया बकाया है.
कोयले के उत्पादन में और बढ़ोतरी हो सकती है
भुगतान नहीं करने के कारण ऐसे राज्यों को कोल इंडिया से कोयले का रेगुलेशन झेलना पड़ रहा है. सूत्रों के अनुसार किसी राज्य सरकार या थर्मल पॉवर प्लांट का कोयला नहीं रोक गया है लेकिन उसे रेगुलेट जरूर किया गया यानी जिसने बकाया राशि दी उसको प्राथमिकता दी जा रही है. सरकारी सूत्रों के अनुसार कोयले के उत्पादन में और बढ़ोतरी हो सकती थी, अगर झारखंड सरकार कोल इंडिया को 34 मिलियन टन कोयले के रिजर्व को उत्पादन करने की अनुमति दे देती. इसके अलावा पॉवर की मांग भी बढ़ी है जिसके कारण से बिजली की सप्लाई पर कहीं न कहीं असर पड़ा है लेकिन सरकार का कहना है कि पूरी स्थिति मांग और आपूर्ति और स्टॉक को ध्यान में रखते हुए 1 महीने में पूरी तरह से काबू में आ जायेगी.
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