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Supreme Court puts Sedition Law on hold: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक आदेश में 152 साल पुराने राजद्रोह कानून (Sedition Law) को निष्प्रभावी कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा कर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती, तब तक इस कानून का इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहेगा. कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से कहा है कि वो फिलहाल राजद्रोह कानून (धारा- 124ए) के तहत एफआईआर दर्ज करने से परहेज करें.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कोर्ट ने कहा कि जो मामले पहले से राजद्रोह (Sedition Law) के तहत दर्ज किए गए है, उनमे जांच जारी नहीं रहेगी. इसी बीच कोई दंडात्मक कार्रवाई भी इस कानून के आधार पर नहीं होगी. कोर्ट ने साफ किया है कि जो पहले से ही इस आरोप के तहत जेल में बंद है, वो जमानत के लिए कोर्ट का रुख कर सकते है और आगे चलकर कोई नया केस इस आरोप के तहत दर्ज होता है तो आरोपी राहत के लिए कोर्ट का रुख कर सकते है. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम उम्मीद करते है कि संबंधित कोर्ट हमारे आज के आदेश को देखते हुए राहत देने पर विचार करेंगे.
राजद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का ये अंतरिम आदेश है और अगले आदेश तक ये दिशानिर्देश जारी रहेगे. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को राजद्रोह कानून की समीक्षा के लिए तो वक्त दे दिया, लेकिन साथ ही ये कहा कि तब तक इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहेगा. सरकार ने कहा कि समीक्षा करने में कम से कम जुलाई तक का वक्त लगेगा. कोर्ट ने मामले की सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ्ते के लिए लगाई है. जब तक कोर्ट का कोई अगला आदेश नहीं आएगा, तब तक कानून के अमल पर रोक रहेगी.
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कपिल सिब्बल ने इन दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि कानून (Sedition Law) रद्द होना चाहिए. इस पर कोर्ट ने साफ किया कि हम राजद्रोह कानून की वैधता पर विचार नहीं कर रहे है. हम सिर्फ इस पर विचार कर रहे है कि जब तक राजद्रोह कानून की वैधता पर सरकार विचार कर रही है, इस दरमियान क्या किया जा सकता है.
9 मई को सरकार ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया था कि वो राजद्रोह कानून को लेकर सजग है और वो खुद इसकी समीक्षा करेगी. लिहाजा कोर्ट को इस मसले पर सुनवाई की जरूरत नहीं है. 10 मई को जब इस मामले को लेकर सुनवाई हुई तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने एक बार फिर कानून की समीक्षा करने का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया. इस पर कोर्ट के केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा कर रही है, इसके तहत दर्ज मुकदमों को स्थगित नहीं किया जा सकता.
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा कि राजद्रोह जैसे संज्ञेय अपराध में मुकदमा दर्ज करने से नहीं रोका जा सकता. इसके बजाए सरकार दिशानिर्देश जारी कर सकती है कि कोई भी नया केस सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP) की अनुमति के बाद ही दर्ज होगा. वो बाकयदा गिरफ्तारी से पहले लिखित कारण दर्ज करेंगे. बाद में कोर्ट भी समीक्षा करेगा कि आरोप सही है या गलत. ऐसी स्थिति में कानून के दुरूपयोग की स्थिति में कोर्ट भी जवाबदेही तय कर सकेगा.
सरकार का कहना था कि जहां तक लंबित केस का सवाल है, हम हर केस में अपराध की गंभीरता का अंदाजा नहीं लगा सकते. हो सकता है, वो मामले आंतकवाद या मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े हो. लेकिन, ये सब मामले कोर्ट में है, जिसे हमें जजों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. इस तरह के मामलों में कोर्ट को जमानत अर्जी पर तेजी से सुनवाई करने का निर्देश दिया जा सकता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यहां एक भी आरोपी कोर्ट के सामने नहीं है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी मामलो पर रोक का आदेश देना ठीक नहीं रहेगा.
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