20 साल बाद सपना साकार! अब सालभर पूरी तरह देश से जुड़ा रहेगा लद्दाख
Advertisement
trendingNow1746812

20 साल बाद सपना साकार! अब सालभर पूरी तरह देश से जुड़ा रहेगा लद्दाख

ये इकलौता ऐसा रास्ता होगा जिसके जरिए भारी बर्फबारी में भी लेह और कारगिल का सड़क मार्ग खुला रहेगा. इस रास्ते पर आने वाले इकलौते पास शिंगुला पर टनल बनाने का काम शुरू हो रहा है जिसमें तीन साल का समय लगेगा. 

पूरा होने जा रहा है लद्दाख को लेकर देखा गया 20 साल पुराना सपना.....

नई दिल्ली : हिंदुस्तान में 20 साल पहले देखा गया सपना पूरा होने जा रहा है. अब लद्दाख (Ladakh) को साल भर देश से जोड़े रह पाना संभव हो जाएगा. दरअसल रोहतांग पास (Rohtang Pass) के नीचे से निकलने वाली टनल के शुरू होते ही लद्दाख तक पहुंचने का सबसे छोटा और सबसे आसाना रास्ता भी खुल जाएगा. ये रास्ता होगा मनाली से हिमाचल के दार्चा, शिंकुला पास से होते हुए लद्दाख की जांस्कार वैली (Zanskar Valley) के जरिए आगे बढ़ेगा. 

  1. पूरा हो रहा है 20 साल पहले देखा गया सपना 
  2. हर मौसम में लद्दाख पहुंचने में होगी आसानी
  3. तीन साल में पूरा होगा शिंगुला टनल का काम
  4.  

नए रूट की खासियत
इस रास्ते में बर्फबारी कम है और ज्यादातर रास्ता नदी के साथ-साथ चलता है. इसलिए ये इकलौता ऐसा रास्ता होगा जिसके जरिए भारी बर्फबारी में भी लेह और कारगिल का सड़क मार्ग खुला रहेगा. इस रास्ते पर आने वाले इकलौते पास शिंगुला पर टनल बनाने का काम शुरू हो रहा है जिसमें तीन साल का समय लगेगा. लेकिन इस टनल के बनने से पहले ही ये रास्ता लद्दाख के लिए तीसरा रास्ता बनने को तैयार है.

अभी तक कारगिल (Kargil) या लेह (Leh) पहुंचने के लिए दो ही रास्ते थे. एक रास्ता श्रीनगर (Srinagar) से ज़ोज़िला पास पार करके कारगिल और लेह पहुंचने का है और दूसरा रास्ता मनाली से रोहतांग (Manali-Rohtang), लाचुंग ला (Lachung La), बारालाचला और तंगलांग ला होते हुए लेह और उसके बाद कारगिल पहुंचने का. लेकिन दोनों ही रास्ते साल के कुछ ही महीने खुले रहते हैं बाकी समय ऊंचे दर्रों पर भारी बर्फबारी के कारण बंद रहते हैं. 

रणनीतिक अहमियत
कारगिल युद्ध के समय ही एक तीसरे रास्ते की योजना बनाई गई थी जिसके ज़रिए साल भर लद्दाख का सड़क मार्ग खोला जा सके. ये आबादी के लिए भी फायदेमंद था और सेना के लिए भी जिसे गर्मियों के चार महीने में ही पूरे साल की रसद जमा करनी होती थी. अगर दुश्मन एक रास्ता बंद कर दे तो सेना के लिए संकट और बढ़ जाता है जैसा 1999 में कारगिल में हुआ था. रास्ता लंबा भी है. लेह से मनाली की दूरी 475 किमी है लेकिन चार दर्रों को अच्छे मौसम में भी पार करके सफर पूरा करने में दो दिन तक का समय लग जाता है. 

ये भी पढ़ें- बांग्लादेश के निर्वासित पूर्व मेजर ने भारत के खिलाफ उगला जहर, हिंदू आबादी को दी धमकी

अभी 200 प्वाइंट पर एवलांच का खतरा
मनाली से दार्चा होते हुए 16600 फीट ऊंचे शिंकुला दर्रे को पार करके सड़क लद्दाख की ज़ांस्कार घाटी में उतरती है. यही इस सड़क का सबसे ऊंचा स्थान है. लेकिन यहां बर्फबारी कम होती है केवल एक जगह एवलांच का खतरा है. वहीं पुराने लेह-मनाली हाईवे पर 200 जगहें ऐसी हैं जहां पर एवलांच का खतरा है. इस सड़क को लेह से 100 किमी दूरी खलत्से में लेह-श्रीनगर हाई वे से जोड़ा गया है. यानी मनाली से कारगिल जाने के लिए साल भर खुली रहने वाली इस सड़क से दूरी 485 किमी रह जाएगी जो पहले 700 किमी थी. इस सड़क पर केवल एक पास और पहाड़ों के नीचे से जाने के कारण ये दूरी भी 9-10 घंटे में तय हो जाएगी. 

लेह से मनाली तक इतनी कसर बाकी
16 रोड्स बॉर्डर टास्क फोर्स के कमांडर मनोज कुमार जैन के मुताबिक लेह को इस सड़क से जोड़ने से मनाली की 475 किमी की दूरी घटकर लगभग 400 किमी रह जाएगी लेकिन इसके लिए अभी निम्मू से आगे 30 किमी के रास्ते को जोड़ना है. यहां पहाड़ों को काटकर सड़क बनाने का काम पूरी रफ्तार से चल रहा है. अगले तीन साल में शिंगुला पर टनल भी बन जाएगी और तब तक हम बचे हुए रास्ते को भी पूरा कर लेंगे. फिर लेह से मनाली जाना कुछ घंटों का सुरक्षित सफर बन जाएगा.

ये भी देखें-

Trending news