छत्तीसगढ़ में भी नवरात्रि के उत्सव की धूम है. माता की महिमा ही ऐसी होती है कि इंसान तो इंसान जानवर भी उनकी भक्ति में लीन नजर आते हैं. कुछ ऐसा ही नजारा महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में देखने को मिल रहा है. जहां एक भालू का परिवार हर दिन माता के दर्शन करने जंगल से पहुंचता है और आरती में भी शामिल होता है. खास बात यह है भालू के परिवार का एक न एक सदस्य हर दिन माता के दर्शनों के लिए जरूर पहुंचता है.
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जन्मजय सिन्हां/महासमुंद। नवरात्रि का उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. मां दुर्गा की झांकियां देखने भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है, मां की महिमा ही कुछ ऐसी होती है, जहां इंसान तो क्या जानवर भी उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में नवरात्रि में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है. जहां गांव में स्थित मां चण्डी मंदिर में जामवंत का परिवार भी माता की आरती में रोजाना शामिल होने पहुंच रहा है. जो पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. यह नजारा देखने हर दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है.
भालू का परिवार आरती में शामिल हो रहा
दरअसल, घूंचापाली गांव में बने चंडी मां के मंदिर में हर दिन एक भालू का परिवार माता के दर्शनों के लिए पहुंचता है और आरती में भी शामिल होता है . इंसानों के लिए भले ही यह नजारा अचरज में डालने वाला है, लेकिन घूंचापाली गांव में स्थित मां चण्डी के मंदिर में इन दिनों यह नजारा आम है. यहां जंगली भालुओं का एक परिवार कभी दो की संख्या में तो कभी चार की संख्या में हर शाम माता के दरबार में पूजा अर्चना के लिए आता है. ये जंगली भालू यहां प्रसाद खाते हैं और बिना किसी को परेशान किए जंगल में वापस चले जाते है.
यही भालू जब जंगल में होते है तो हिंसक व्यवहार करते है लेकिन मंदिर की चौखट में आते ही उनके व्यहार में परिवर्तन आ जाता है. क्योंकि यहां जंगली भालू भी मां के भक्त हो जाते है. मां चण्डी के दरबार मे ये नजारा देखनें यहां श्रद्धालू दूर दूर से आ रहे हैं. स्थानीय लोग इसे जामवंत का परिवार भी बताते हैं. बता दें कि भगवान श्रीराम की सेना में वृझराज जामवंत भी थे, भालू को उन्ही के वंश का माना जाता है.
भालू के इंतजार में बैठे रहते हैं लोग
मंदिर में भालू के इंतजार में श्रद्धालु घंटो बैठे रहते हैं और यहां आनें वाले श्रद्वालूओं का मानना है कि ये मां की ही महिमा है कि भालू का परिवार यहां हर दिन आता है और पूजा में शामिल होता है. प्रसाद खाता है और बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल की ओर लौट जाता है. ये माता का ही चमत्कार है कि, इंसानों की तरह ये भालू भी माता के भक्त हैं.
डेढ़ सौ साल पुराना मंदिर
बता दें कि महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव की पहाड़ी पर स्थित मां चण्डी मंदिर का तकरीबन डेढ सौ साल पुराना इतिहास रहा है. मां चण्डी की प्रतिमा यहां प्राक्रतिक है. मां चण्डी यहां स्वयमेव प्रकट हुई हैं. आसुरी शक्तियों और देवीय आपदाओं की रक्षक मानी जाने वाने वाली मां चंडी देवी का मंदिर स्थान प्राकृतिक रूप से जंगल और पहाडियों से घिरा है. यहां दूर दूर से लोग अपनी मनोकामना ले कर आते हैं और उनकी मनोकामना मां के आशीर्वाद से यहां पूरी भी होती है. मंदिर के पुजारी नें बताया कि यहां आनें वाले भालू भी माता के भक्त हैं और रोज शाम को आरती में शामिल होनें आते हैं. ये भालू आज तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए है.