विश्व मत्सय दिवस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने मछुआ समुदाय को बड़ी सौगात दी है. अब तालाबों और जलाशयों नीलामी नहीं होगी. बल्कि उसे 10 वर्ष के लिए पट्टे दिए जाएंगे. इसके आवंटन में मछुआ समुदाय धीवर (ढ़ीमर), निषाद (केंवट), कहार, कहरा, मल्लाह को प्राथमिकता दी जाएगी.
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तृप्ति सोनी/रायपुर: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मौजूदगी में आज विश्व मात्स्यिकी दिवस के अवसर पर रायपुर के साईंस कॉलेज परिसर स्थित डीडीयू ऑडिटोरियम में आयोजित मछुआरा सम्मेलन में कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे ने छत्तीसगढ़ राज्य की नवीन मछली पालन नीति में मछुआरों के हितों को ध्यान में रखते हुए संशोधन किए जाने की घोषणा की. मछली पालन नीति में संशोधन की यह घोषणा कैबिनेट के अनुमोदन की प्रत्याशा में की गई. आगामी कैबिनेट बैठक में नवीन मछली पालन नीति में संशोधन प्रस्ताव को मंजूर मिलने की उम्मीद है.
मत्सय पालकों की संख्या होगी दोगुनी
मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि मछुआ समुदाय के लोगों की मांग और उनके हितों को संरक्षित करने के उद्देश्य से मछली पालन नीति में तालाब और जलाशयों को मछली पालन के लिए नीलामी करने के बजाय लीज पर देने के साथ ही वंशानुगत-परंपरागत मछुआ समुदाय के लोगों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया गया है. तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों के जलक्षेत्र आवंटन सीमा में 50 फीसद की कमी कर ज्यादा से ज्यादा मछुआरों को रोजी-रोजगार से जोड़ने का प्रस्ताव है. उन्होंने कहा कि प्रति सदस्य के मान से आवंटित जलक्षेत्र सीमा शर्त घटाने से लाभान्वित मत्स्य पालकों की संख्या दोगुनी हो जाएगी.
इन लोगों को दी जाएगी प्राथमिकता
नवीन मछली पालन नीति में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार मछली पालन के लिए तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों की अब नीलामी नहीं की जाएगी. बल्कि 10 साल के पट्टे पर दिए जाएंगे. तालाब और जलाशय के आवंटन में सामान्य क्षेत्र में ढ़ीमर, निषाद, केवट, कहार, कहरा, मल्लाह के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को तथा अनुसूचित जनजाति अधिसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को प्राथमिकता दी जाएगी. मछुआ से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो अपनी अजीविका का अर्जन मछली पालन, मछली पकड़ने या मछली बीज उत्पादन का कार्य करता हो, उसे वंशानुगत-परंपरागत धीवर (ढ़ीमर), निषाद (केंवट), कहार, कहरा, मल्लाह को प्राथमिकता दिया जाना प्रस्तावित है.
इस हिसाब से किया जाएगा आवंटन
इसी तरह मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति अथवा मछुआ व्यक्ति को ग्रामीण तालाब के मामले में अधिकतम एक हेक्टेयर के स्थान पर आधा हेक्टेयर जलक्षेत्र तथा सिंचाई जलाशय के मामले में चार हेक्टेयर के स्थान पर दो हेक्टेयर जलक्षेत्र प्रति सदस्य/प्रति व्यक्ति के मान से आवंटित किया जाएगा. मछली पालन के लिए गठित समितियों का ऑडिट अभी तक सिर्फ सहकारिता विभाग द्वारा किया जाता था. प्रस्तावित संशोधन में सहकारिता एवं मछली पालन विभाग की संयुक्त टीम ऑडिट की जिम्मेदारी दी गई है.
जानिए कौन कौन करेगा पट्टा
त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था अंतर्गत शून्य से 10 हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र के तालाब एवं सिंचाई जलाशय को 10 वर्ष के लिए पट्टे पर आवंटित करने का अधिकार ग्राम पंचायत का होगा. जनपद पंचायत 10 हेक्टेयर से अधिक एवं 100 हेक्टेयर तक, जिला पंचायत 100 हेक्टेयर से अधिक एवं 200 हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक, मछली पालन विभाग द्वारा 200 हेक्टेयर से अधिक एवं 1000 हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र के जलाशय, बैराज को मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को पट्टे पर देगा. नगरीय निकाय अंतर्गत आने वाले समस्त जलक्षेत्र नगरीय निकाय के अधीन होंगे, जिसे शासन की नीति के अनुसार 10 वर्ष के लिए लीज पर आवंटित किया जाएगा.
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